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कहीं सिंधु घाटी की सभ्यता से तो नहीं था जनेर का संबंध
अमृतसर मार्ग पर स्थित गांव जनेर का संबंध कहीं सिंधु घाटी की सभ्यता से तो नहीं था। जी हां! इस गांव में ग्रामीणों द्वारा जाने अंजाने में की खुदाई से मिले पुरवशेषों को देखने वालों के मन में कुछ इसी तरह के सवाल उठते हैं।
दुर्गेश पार्थसारथी
मोगा: अमृतसर मार्ग पर स्थित गांव जनेर का संबंध कहीं सिंधु घाटी की सभ्यता से तो नहीं था। जी हां! इस गांव में ग्रामीणों द्वारा जाने अंजाने में की खुदाई से मिले पुरवशेषों को देखने वालों के मन में कुछ इसी तरह के सवाल उठते हैं।
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जिला मुख्यालय मोगा से लगभग 10 किलो मीटर की दूरी पर टीले पर बसे लगभग 4 हजार की आबादी वाले इस गांव में जनवरी 1968 में गांववासी गुरमेल सिंह के घर के पास स्थित मिट्टी के टीले को बराबर करते समय मिली काले रंग के त्थरों से बनी लगभग 3 फुट ऊंची अलंकृत चतुर्भुजी भगवान विष्णु की मूर्ति इस गांव के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है।
गांव के पूर्व सरपंच मेजर सिंह बताते हैं कि 1984-85 के दौरान एक स्थान पर की गई खुदाई से बड़े आकार के सिक्के और मिट्टी के बर्तानों के टुकड़ों के अतिरिक्त गुप्तकालीन ईंटें भी मिली थीं। जिसे संबंधित थाने की पुलिस द्वारा सूचित किए जाने पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया था। ग्रामीणों की माने तो एक बार केंद्रीय पुरातत्व विभाग की टीम ने इस गांव का दौरा कर सर्वे भी किया था।
गांव के मध्य में बने विष्णु मंदिर के सेवादार सुरजीत सिंह बताते हैं कि इस मंदिर में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति सन् 1970 में चोरी हो गई थी। जिसकी रिपोर्ट धर्मकोट थाने में दर्ज करवाई थी। जिसे तत्कालीन सीबीआई इंस्पेक्टर जगजीत सिंह ने दिल्ली के चोर बाजार से बरामद किया था। उसके बाद इस मूर्ति को स्थाई तौर पर मंदिर का निर्माण कर प्रतिष्ठित कर दिया गया। यही नहीं यहां के एक किसान के घर के पास बने अहाते में मकान निर्माण के लिए की जा रही खुदाई के दौरान लखौरी ईंटों की एक संयुक्त मजार मिली।
हड़प्पा कालीन हो सकते हैं मृदभांड
पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के प्राचीन इतिहास विभाग से सेवानिवृत्त डॉ. देवेंद्र हांडा कहते हैं कि जनेर से मिले कृष्ण लोहित और धूसर मृदभांडों पर अंकित लिपि और टैराकोटा विड्ज (मिट्टी के मनके) का संबंध हड़प्पाकालीन संस्कृति से हो सकता है। वहीं कृष्ण लोहित मृदभांडों का संबंध महाभारतकालीन सभ्यता से हो सकता है। जबकि विष्णु की मूर्ति के संबंध में उनका कहना है कि यह 10वीं सदी की हो सकती है। हालांकि कुछ इतिहासकार इसे गुप्तकालीन भी मानते हैं।
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डॉ. हांडा कहते हैं कि पंजाब के विभन्न भागों रोपड़, सिरकप आदि क्षेत्रों में हड़प्पाकालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। वे कहते हैं कि कालीबंगा की दूरी भी यहां से अधिक नहीं है।
जजनेर था जनेर का पुराना नाम
केंद्रीय विश्वविद्यालय बठिंडा के मध्य कालीन इतिहास विभाग के एसोसिएट डॉ. सुभाष परिहार का कहना है कि जनेर का पुराना नाम जजनेर था, जो अपभ्रंस होकर जनेर हो गया। हालांकि जनेरवासी इसे राजा जनक की नगरी बताते हैं। डॉ. रिहार कहते हैं कि ११ वीं सदी के आरंभ में तुर्क आक्रमणकरी महमूद गजनवी के साथ आया अल्वरुनी अपनी पुस्तक 'अलहिंद' में तत्कालीन भारत के रास्ते और पड़ाव का जिक्र करते हुए लिखा है कि महमूद गजनवी का एक पड़ाव जजनेर में डाला गया था।
यहां से मिले सिक्कों के बारे में डॉ. परिहार कहते हैं कि यह सिक्के नहीं टोकन हैं, क्योंकि अग्र भाग में श्री गुरुनानक देव और पृष्ठ में श्री अर्जुन देव जी के चित्र बने हैं। यह टोकन उस समय मंदिरों में चढ़ाए जाते थे।
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हो सकता है शोध का विषय
डॉ. देवेंद्र हांडा, डॉ. परिहार और प्रो. सुखदेव सिंह कहते हैं कि यदि पुरातत्व विभाग जनेर के टिलों का सर्वे करवाकर उत्खनन कार्य करवाए तो वहां सिंधु घाटी की सभ्यता के साथ-साथ गुप्त और मध्यकाल से जुड़ी कई ऐतिहासिक धरोहरें मिल सकती हैं जो प्राराची और मध्यकालीन इतिहास के शोधार्थियों के लिए अनुसंधान और अनवेषण का केंद्र हो सकता है।