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Khap Panchayat History: इन पंचायतों के आगे नहीं चलती किसी की, सरकारें भी इनके आगे हैं झुकतीं! आज भी है इनका दबदबा

Khap Panchayat History: खाप की शुरुआत 14वीं सदी के दौरान हुई थी। वहीं खाप शब्द का प्रयोग कानूनी कागजों में पहली बार 1890-91 में जोधपुर की जनगणना रिपोर्ट में किया गया था, जो धर्म और जाति पर आधारित थी।

Ashish Pandey
Published on: 7 Jun 2023 12:06 AM IST
Khap Panchayat History: इन पंचायतों के आगे नहीं चलती किसी की, सरकारें भी इनके आगे हैं झुकतीं! आज भी है इनका दबदबा
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Khap Panchayat History (Photo: Social Media)

Khap Panchayat History: जिसका साथ देते हैं तो फिर पीछे नहीं हटते, जिस भी मुद्दे को उठाते हैं उससे पीछे नहीं हटते, फैसला जो ले लिया वह अटल है। हम बात कर रहे हैं खाप पंचायतों की। पश्चिमी यूपी, राजस्थान, हरियाणा आदि राज्यों में इनका बड़ा जलवा है। खाप जिसके समर्थन या विरोध में खड़ी हो जाती हैं तो उसको न्याय दिलाकर ही इन्हें संतोष होता है। मतलब साफ है कि इन खाप पंचायतों का दबदबा इतना है कि इनसे कोई भी टक्कर नहीं लेना चाहता है। इन्हीं खाप पंचायतों का ही असर बताया जा रहा है कि आज बृज भूषण सिंह के घर पर पुलिस ने छापा मारा।

दरअसल तीन जून को केद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पहलवानों से मुलाकात की, जो पिछले डेढ़ महीने से दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। खास बात यह है कि गृहमंत्री से पहलवानों की मुलाकात खाप पंचायतों की तरफ से केंद्र को 9 जून तक का अल्टीमेटम देने के बाद हुई। बैठक के बाद बजरंग पूनिया ने रविवार को सोनीपत के गांव मुंडलाना में हो रही सर्व समाज की महापंचायत से निवेदन किया कि फिलहाल कोई बड़ा फैसला न लें।

इसी के बाद 5 जून सोमवार को दिल्ली पुलिस की टीम ने बृजभूषण के लखनऊ और गोंडा स्थित घर पर छापेमारी की। उनके 15 कर्मचारियों से पूछताछ की गई है। अब इस छापेमारी को बृजभूषण पर एक्शन के तौर पर देखा जा रहा है। इस कार्रवाई के पीछे खाप पंचायतों का केंद्र को दिया गया अल्टीमेटम ही बताया जा रहा है।
हम यहां आज यह जानेंगे कि खाप होती क्या है, इनका कार्य क्या होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि विवादों में रहने के बावजूद भी इसका दबदबा इतना क्यों है?

एक गोत्र या बिरादरी के सदस्यों का समूह होता है

खाप में एक गोत्र या बिरादरी के ही लोग होते हैं। कनाडा में प्रोफेसर रहे एमसी प्रधान अपनी किताब ‘द जर्नल ऑफ एशियन स्टडीज’ के पेज नंबर 664 में खाप के बारे में उल्लेख करते हुए बताते हैं कि ‘खाप‘ एक गोत्र या जाति बिरादरी के सदस्यों का एक समूह होता है। इनमें एक क्षेत्र या कुछ गांव के उस जाति से जुड़े लोग ही शामिल होते हैं, इन खाप का नेतृत्व उस जाति के बुजुर्ग और दबंग लोग करते हैं। इन खापों के प्रधान या मुखिया एक परिवार या वंश के ही लोग होते हैं। मतलब साफ है जो शख्स इस समय किसी खाप का प्रधान है आने वाले समय में उसका बेटा ही उस खाप का प्रधान या मुखिया बनता है। किसी खाप के प्रधान जब किसी मुद्दे पर सार्वजनिक फैसला लेने के लिए सभा बुलाते हैं तो इसे खाप पंचायत कहा जाता है। खाप प्रधान का चुनाव करने के लिए तय मानक या नियम नहीं होते हैं। कई बार देखा जाता है कि खाप प्रधान के पद पर एक ही परिवार या वंश के दो या उससे ज्यादा लोग भी दावा करते हैं।

600 साल पहले हुई थी शुरुआत

इतिहास के जानकारों की मानें तो खाप की शुरुआत 14वीं सदी के दौरान हुई थी। वहीं खाप शब्द का प्रयोग कानूनी कागजों में पहली बार 1890-91 में जोधपुर की जनगणना रिपोर्ट में किया गया था, जो धर्म और जाति पर आधारित थी। कुछ जानकार मानते हैं कि ‘खाप‘ शब्द संभवतः ‘शक‘ भाषा के खतप से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक विशेष कबीले द्वारा बसा हुआ क्षेत्र।
जानकारों की मानें तो सबसे पहले खाप का नाम क्या था, यह पता नहीं है। वहीं कुछ रिसर्च पेपर में खाप का जिक्र मिलता है कि पहली खाप से 84 गांवों के लोग जुड़े थे। 1950 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के सोरेम में हुई खाप पंचायत का जिक्र भी कई रिसर्च पेपर में मिलता है।

आजादी के बाद हुई इस सर्व खाप पंचायत के प्रधान बीनरा निवास गांव के चैधरी जवान सिंह गुर्जर और पुनियाला गांव के ठाकुर यशपाल सिंह उप-प्रधान थे, जबकि सोरेम गांव के चैधरी काबुल सिंह इसके पंचायत के मंत्री थे।

चैधरी काबुल सिंह एक मात्र जाट थे

सबसे बड़ी बात यह रही कि जिन तीन लोगों के नेतृत्व में इस पंचायत का आयोजन हुआ उनमें चैधरी काबुल सिंह ही एकमात्र जाट थे। हालांकि, पिछले कुछ सालों में देखा जाए तो खाप पंचायतों में जाटों का दबदबा बढ़ा है, इसीलिए कई बार इन पंचायतों को सीधे तौर पर जाटों से जोड़ दिया जाता है।

मुख्य तौर पर तीन काम करती हैं ये पंचायतें...

-पारिवारिक और गांव के विवादों को सुलझाना।
-समाज के लोगों के बीच आपसी भाईचारे और परस्पर विश्वास को बनाए रखना।
-अपने क्षेत्र और लोगों को किसी भी बाहरी हमले से बचाना।
इन खाप पंचायतों का यह कार्य होता है। एमसी प्रधान के बताए इन तीन कामों में से आखिरी काम खाप पंचायतें आजादी से पहले करती थी, अब ये काम न के बराबर रह गया है। आज खापों का काम मुख्य रूप से आपसी विवादों को सुलझाना और यह सुनिश्चित करना है कि उनके क्षेत्र में सामाजिक और धार्मिक प्रथा सही से लागू हो।

300 से अधिक खाप सक्रिय हैं आज

हरियाणा के झज्जर जिला निवासी धनकड़ खाप के प्रधान ओम प्रकाश धनकड़ की मानें तो आज देश में करीब 300 खाप हैं। इनमें से अधिकतर नॉर्थ इंडिया के हैं। ये खाप मुख्य रूप से 5 राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान और उत्तराखंड में सक्रिय हैं। धनकड़ का कहना है कि गोत्र पर अधारित गठवाल खाप, दलाल खाप, पुनिया खाप, सांगवान खाप, दहिया खाप आदि अपने गांव और आसपास के मामले को खुद ही सुलझाते हैं। इन खापों का 100 से ज्यादा गांवों में असर है। ज्यादातर खाप पंचायत जाट इलाके में एक्टिव हैं। जाटों के अलावा गुर्जर, मुस्लिम और राजपूत समुदाय के लोगों के भी अपने खाप होते हैं।

5 राज्यों में काफी ज्यादा असर है

खाप समुदाय और समाज के स्तर पर होने वाले पारिवारिक, जगह-जमीन और दूसरे विवादों को सही समय पर सुलझा देती है। इससे ये विवाद थाने और कोर्ट तक नहीं जाता है। खाप के फैसले को मानने के लिए सामाजिक दबाव होता है। समाज और अपने समुदाय में रहने के लिए लोगों को खाप के फैसले को मानने के लिए मजबूर होना पड़ता है। खाप प्रधान ज्यादातर मामलों में सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक जुर्माना व अन्य तरह की जुर्माना लगाती है। हालांकि खाप पर कई बार दूसरे जाति और धर्म में शादी करने पर विवादित फैसला सुनाने के भी आरोप लगते हैं। इसी वजह से खाप के विरोधी उसे ‘कंगारू कोर्ट’ भी कहते हैं। हालांकि खाप नेता इस तरह के आरोपों को गलत बताते हैं। खाप नेता अब हिंदू मैरिज एक्ट में बदलाव की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वो अंतरजातीय विवाह के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन एक गोत्र और एक गांव में शादी करने पर रोक लगनी चाहिए।
विवादित फैसले

दुष्कर्म रोकने के लिए 15 साल की उम्र में शादी कर दी जाए

जुलाई 2010 में हरियाणा की सर्व खाप जाट पंचायत ने एक फरमान जारी कर कहा कि लड़कियों की शादी के लिए उनके बालिग होने का इंतजार नहीं करना है, उनकी शादी अब 15 साल में ही कर देनी है। यह आदेश रेप की घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने के लिए जारी किया गया था।

लड़कियों को जींस पहनने से मना किया
अगस्त 2014 में मुजफ्फरनगर के सोरम गांव में हुई एक खाप पंचायत ने लड़कियों के जींस पहनने, उनके फोन और इंटरनेट यूज करने पर बैन लगाया था। यह ऐलान कुछ लड़कयिों के घर से भागने के बाद समाधान के रूप में किया गया था।

भाई की सजा बहनों को दे दी

अगस्त 2015 में बागपत में एक खाप पंचायत ने एक अजीबो गरीब फरमान सुनाया था जिसमें दो बहनों के साथ रेप करने और उन्हें निर्वस्त्र करके गांव में घुमाने का आदेश जारी किया था। उन्हें उनके भाई के अपराध की सजा दी जानी थी। उनका भाई एक ऊंची जाति की महिला के साथ भाग गया था। खाप पंचायत के इस आदेश के बाद इसकी खूब आलोचना हुई थी, ब्रिटिश संसद तक में मांग उठी कि आरोपी की 23 और 15 साल की बहनों को पर्याप्त सुरक्षा दी जाए।

परंपराओं में हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं

फरवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने खाप से जुड़े एक मामले में कहा था कि दो रजामंद वयस्कों को अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार है। खाप पंचायत किसी वयस्क को अंतर्जातीय विवाह करने से रोक नहीं सकती। इससे नाराज होकर नरेश टिकैत ने कहा- अगर हमारी परंपराओं में हस्तक्षेप किया गया तो उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। इतना ही नहीं, अगर इस तरह के

आदेश पारित होते हैं तो हम न तो लड़कियां पैदा करेंगे और न ही लड़कियों को पैदा होने देंगे।

बेटी को जमीन देने पर समाज से बहिष्कार किया

अगस्त 2021 में राजस्थान के भीलवाड़ा में एक खाप पंचायत ने बुजुर्ग महिला पर 40 लाख का जुर्माना लगाकर उसे समाज से बाहर निकाल दिया। बुजुर्ग महिला की ये गलती थी कि वह अपनी तीन बेटियों के नाम जमीन करना चाहती थी, लेकिन महिला के ससुराल वाले यह नहीं चाहते थे।

कहां से मिलती है ऐसे फैसलों की ताकत?

खाप को असली ताकत उससे जुड़े लोगों और उनके बीच खाप की सर्वमान्यता से मिलती है। जब खाप लोगों को बुलाकर कोई फैसला लेती है तो लोकल स्तर पर प्रशासन और सरकार भी अलर्ट हो जाती है।

किसान आंदोलन को सफल बनाने में खापों ने बड़ी अहम भूमिका निभाई थी। इसी के कारण केंद्र सरकार ने जो तीन नए कृषि कानून बनाए थे, उन्हें वापस ले लिया। खाप का जलवा इसी से समझा जा सकता है कि उत्तर भारत के 5 राज्यों की राजनीति को ये सीधे प्रभावित कर सकती हैं। यही कारण है कि हर राजनीतिक दल खाप प्रधानों से बेहतर संबंध बनाए रखना चाहते हैं।
पांच राज्यों में खापों की ताकत का राजनीतिक दल भी लोहा मानते हैं। इन खापों की ताकत है इनके बात को उनके समाज के लोगों द्वारा अमल में लाना। इनकी यही ताकत है कि इनके आगे सरकार भी झुकती है।

Ashish Pandey

Ashish Pandey

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