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क्या है आरसीईपी, क्यों हो रहा है विरोध?
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी या रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) पर समझौता होना है। आरएसएस समेत कई संगठनों ने इस समझौते का विरोध किया है। इन संगठनों का कहना है कि आरसीईपी कृषि पर आधारित लोगों की आजीविका, बीजों पर उनके अधिकार के लिए खतरा बन सकता है।
नील मणि लाल
लखनऊ: चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी या रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) पर समझौता होना है। आरएसएस समेत कई संगठनों ने इस समझौते का विरोध किया है। इन संगठनों का कहना है कि आरसीईपी कृषि पर आधारित लोगों की आजीविका, बीजों पर उनके अधिकार के लिए खतरा बन सकता है। इस समझौते का सबसे बुरा असर डेयरी सेक्टर पर पड़ेगा। भारी घरेलू विरोध के बावजूद भारत और चीन मुक्त व्यापार को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। थाईलैंड की राजधानी में आरसीईपी देशों की बैठक हो रही है जिसमें भारत का प्रतिनिधत्व वाणिज्य मंत्री पियूष गोयल कर रहे हैं।
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क्या है आरसीईपी
रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप कुछ देशों का एक ग्रुप है, जिसमें ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, म्यामार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, वियतनाम और आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। इन देशों के बीच एक फ्री ट्रेड समझौता हो रहा है जिसके बाद इन देशों के बीच बिना आयात शुल्क दिए व्यापार किया जा सकता है।
भारत का आरसीईपी के कई सदस्यों- कोरिया, जापान और आसिान के दस देश - के साथ पहले से ही मुक्त व्यापार समझौता है। आरसीईपी में शामिल होने से भारत को सबसे ज्यादा फायदा चीन के बाजार से होगा।
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विरोध के स्वर
आलोचकों का कहना है कि कृषि उत्पादों के अलावा भारतीय बाजार में सस्ते चीनी मोबाइल फोन, स्टील, इंजीनियरिंग सामान और खिलौनों की भरमार हो सकती है। वहीं अधिकारियों का कहना है कि समझौते से भारतीय उद्योग की वैश्विक सप्लाई चेन तक पहुंच आसान हो जाएगी और वे आसानी से इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सामान प्राप्त कर सकेंगे। विदेशी बाजारों में पहुंच बढऩे से देश को आर्थिक मंदी का सामना करने में मदद मिलेगी।
भारतीय किसान यूनियन का कहना है कि इस समझौते को पूरी तरह लागू किया गया तो देश को इम्पोर्ट ड्यूटी के रूप में हजारों करोड़ रुपए का नुकसान होगा। यूनियन का कहना है कि आरसीईपी विश्व व्यापार संगठन से ज्यादा खतरनाक है।
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राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड का कहना है कि डेरी उत्पादों को आरसीईपी के दायरे में लाने से देश के 6.5 करोड़ दुग्ध उत्पादक किसान प्रभावित होंगे। न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया से शून्य आयात कर पर सस्ते दुग्ध उत्पाद देश में आएंगे जिससे दूध उत्पादकों पर असर पड़ेगा।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा स्वेदशी जागरण मंच ने भी डेरी उत्पादों को आरसीईपी में शामिल करने के प्रस्ताव पर आपत्ति जाहिर की है। स्वदेशी जागरण मंच ने मांग की है कि सरकार को चाहिए कि वह आरसीईपी पर हस्ताक्षर न करे। यह वर्तमान और भावी पीढिय़ों को बेरोजगारी और गरीबी की ओर धकेल देगा।