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किसान आंदोलन का पांच राज्यों के चुनाव पर क्या है असर, समझिए पूरा मामला

एक बड़े तबके का यह मानना है कि किसान चुनाव में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यदि किसानों नेताओं का थोड़ बहुत भी असर चुनाव वाले राज्यों में हुआ तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

Shreya
Published on: 17 March 2021 12:53 PM IST
किसान आंदोलन का पांच राज्यों के चुनाव पर क्या है असर, समझिए पूरा मामला
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किसान आंदोलन का पांच राज्यों के चुनाव पर क्या है असर, समझिए पूरा मामला

रामकृष्ण वाजपेयी

नई दिल्ली: नंदीग्राम और सिंगूर वह इलाके हैं जहां से किसान आंदोलन का नेतृत्व करके पश्चिम बंगाल की सबसे मजबूत राजनीतिक क्षत्रप ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस का उदय हुआ था और वाममोर्चा की सशक्त सरकार का पतन। किसान एक बार फिर पश्चिम बंगाल में हुंकार भर रहे हैं। उनका एकमात्र नारा है भाजपा को हराओ। हालांकि कांग्रेस और वामपंथी दल किसानों से एक निश्चित दूरी बनाए हुए हैं। दूरी तो खुद ममता बनर्जी भी बनाए रहीं लेकिन किसान नेता आश्वस्त हैं कि उनकी मेहनत रंग लाएगी।

यहां किसानों पर ज्यादा असर की संभावना नहीं

भाजपा की किसानों से चावल मांगने की रणनीति पर किसान नेताओं ने किसानों से कहा है कि वह चावल नहीं वोट मांग रहे हैं उनसे एमएसपी जरूर मांगना। हालांकि जानकारों का कहना है कि किसानों की रैली और रोड शो चर्चा का विषय जरूर बनी लेकिन प. बंगाल में किसानों पर ज्यादा असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि वहां बड़े किसान बहुत कम हैं। और जो छोटे किसान हैं उनके लिए किसी चीज का कोई मतलब नहीं है। इन राज्य में पैदावार भी सिर्फ खाने भर की ही होती है। इसलिए यहां के किसानों पर ज्यादा असर की संभावना नहीं है।

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भाजपा को हो सकता है नुकसान

हालांकि एक बड़े तबके का यह भी मानना है कि किसान चुनाव में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यदि किसानों नेताओं का थोड़ बहुत भी असर चुनाव वाले राज्यों में हुआ तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। और किसी के लिए न भी हो तो भाजपा के लिए किसानों का विरोध खतरे की घंटी है।

bjp (फोटो- ट्विटर)

चुनाव वाले राज्यों में असर पड़ने की संभावना

किसान आंदोलन का असर पंजाब नगर निगम चुनावों में देखने को मिल चुका है। अब प.बंगाल और केरल आदि राज्यों में भी इसका असर हो सकता है। इसलिए किसान नेताओं की चुनाव वाले राज्यों सभाओं से कुछ न कुछ असर जरूर पड़ेगा। एक बड़ा वर्ग जो किसानों से कमाई करता था, वह किसानों के पीछे खड़ा है। इस वर्ग की राजनीति पर भी पकड़ है। इसलिए इसका असर पड़ सकता है।

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वैसे असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी तथा केरल में किसान कहीं भी मुद्दा नहीं है। पहले भी कभी किसान चुनावी मुद्दा नहीं रहा है। चुनावों में प्रादेशिक मुद्दे ज्यादा हावी हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल ने समय-समय पर किसान कानूनों को लेकर केंद्र सरकार को घेरा भी है। तृणमूल इन कानूनों को केंद्र की तानाशाही से जोड़ रही है।

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