×

Indian Dress Code: जब मनाही थी हिंदुस्तानी ड्रेस पहनने की

Indian Dress Code: 1830 में एक कानून पेश किया गया था जिसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी के सभी सदस्यों पर ये पाबंदी लगाई गई थी कि वे सार्वजनिक समारोहों में भारतीय ड्रेस नहीं पहन सकते हैं।

Neel Mani Lal
Published on: 31 July 2023 8:47 PM IST
Indian Dress Code: जब मनाही थी हिंदुस्तानी ड्रेस पहनने की
X
ब्रिटिश शासन काल में हिंदुस्तानी ड्रेस कोड: Photo- Social Media

Indian Dress Code: 1830 में एक कानून पेश किया गया था जिसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी के सभी सदस्यों पर ये पाबंदी लगाई गई थी कि वे सार्वजनिक समारोहों में भारतीय ड्रेस नहीं पहन सकते हैं। प्रख्यात लेखक एल्डस हक्सले ने लिखा है : "ऐसा लगता है जैसे कि ब्रिटिश साम्राज्य की अखंडता सीधे जादुई तरीके से काले जैकेट और कड़क कफदर शर्ट पहनने पर निर्भर थी।" एक सख्त ड्रेस कोड लागू किया जाता था। पार्टियों, क्लबों, सार्वजनिक जगहों के लिए सब जगह नियत ड्रेस कोड। एक अलग पहचान दिखाने के लिए ऐसा किया जाता था और अब भी ऐसा होता है।

भारत में ब्रिटिश शासन काल की शायद ही कोई ऐसी फोटो हो जिसमें अंग्रेज साहिब लोग या उनकी पत्नियां भारतीय परिधान पहने नजर आएं। एक एक्सक्लूसिवनेस का सिलसिला क्लबों और अन्य जगहों पर आज भी चल रहा है।

औपनिवेशिक खुमार

ड्रेस कोड का औपनिवेशिक खुमार अभी भी हमारे विशिष्ट क्लबों में कायम है, हालाँकि औपनिवेशिक स्वामी 76 साल पहले देश छोड़ चुके हैं। 1988 में, नामचीन पेंटर एमएफ हुसैन को नंगे पैर होने के कारण मुंबई के विलिंगडन क्लब में प्रवेश करने से रोक दिया गया था। एक दशक बाद पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु को भी धोती पहनने के कारण कलकत्ता स्विमिंग क्लब में रोक दिया गया था। 2017 में मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति डी हरिपरन्थमन को पारंपरिक दक्षिण भारतीय धोती पहनने के कारण तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन से हटा दिया गया।

दिल्ली जिमखाना क्लब में, भूटान के दूसरे सर्वोच्च रैंकिंग वाले भिक्षु त्सुगला लोपेन सैमटेन दोरजी को 2013 में क्लब में भोजन करने से रोक दिया गया था, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह सैंडल और पारंपरिक लामा पोशाक में थे। चप्पल पहनने वाली महिलाओं को दिल्ली जिमखाना क्लब के रिसेप्शन काउंटर पर रोका जाता है और उन्हें क्लब द्वारा उपलब्ध कराई गई सैंडल पहनाई जाती हैं। सूची लंबी है. इस तरह के भेदभाव का अंत कहीं नज़र नहीं आता।

कई साल पहले मुंबई के विलिंग्डन स्पोर्ट्स क्लब में बॉम्बे हाई कोर्ट के एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश, उसके कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश और बाद में सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश, वकीलों के रात्रिभोज में शामिल होने आए थे। चूँकि वह वहाँ कोट पहनकर नहीं आये थे इसलिए उन्हें डाइनिंग लाउंज में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई।

मानवाधिकार का भी मामला

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दस्तावेजों में कपड़ों के अधिकार को मानवाधिकार के रूप में मान्यता दी गई है। यह भोजन के अधिकार और आवास के अधिकार के साथ, पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार का हिस्सा है। आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध के अनुच्छेद 11 के तहत परिधान के अधिकार को मान्यता प्राप्त है। कपड़ों के अधिकार को मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 25 के तहत मान्यता प्राप्त है। कपड़ों की स्वतंत्रता हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत एक नागरिक का पहला अधिकार है।

Neel Mani Lal

Neel Mani Lal

Next Story