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WHO ने दी चेतावनी, दवा खरीदते समय हो जाएं सावधान, बाज़ार में खूब मिल रहीं नकली दवाएं

WHO: केंद्रीय औषधि नियामक द्वारा जारी मासिक ड्रग अलर्ट में बताया गया है कि अलग-अलग राज्यों से 1,302 दवा के नमूने लिए गए जिनमें से 1,274 नमूने गुणवत्ता मानकों के अनुरूप पाए गए लेकिन 27 नमूनों को घटिया घोषित किया गया जबकि एक नकली पाया गया।

Neel Mani Lal
Published on: 20 Jun 2023 9:42 PM IST (Updated on: 20 Jun 2023 9:54 PM IST)
WHO ने दी चेतावनी, दवा खरीदते समय हो जाएं सावधान, बाज़ार में खूब मिल रहीं नकली दवाएं
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WHO Warning over 20 medicines (Photo-Social Media)

WHO: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया भर में 300 से अधिक मौतों से जुड़ी 20 दवाओं के बारे में चेतावनी दी है। ये दवाएं भारत और इंडोनेशिया में 15 अलग-अलग निर्माताओं द्वारा बनाई गई थीं और इनमें खांसी की दवा, पैरासिटामोल और विटामिन के सिरप शामिल थे। इन बीस दवाओं में से सात भारत में बनी खांसी की दवाई हैं। डब्लूएचओ के अनुसार, भारत निर्मित कफ सिरप तीन अलग-अलग कंपनियों द्वारा बनाये गए थे : पंजाब में क्यूपी फार्माकेम, हरियाणा में मेडेन फार्मास्युटिकल्स और उत्तर प्रदेश में मैरियन बायोटेक। डब्लूएचओ ने इन दवाओं को नकली, घटिया या दूषित करार दिया है।

घटिया और नकली दवाएं

घटिया और नकली दवाओं के कई उदाहरण बीते वर्षों में सामने आ चुके हैं। इसी महीने केंद्रीय औषधि नियामक द्वारा जारी मासिक ड्रग अलर्ट में बताया गया है कि अलग-अलग राज्यों से 1,302 दवा के नमूने लिए गए जिनमें से 1,274 नमूने गुणवत्ता मानकों के अनुरूप पाए गए लेकिन 27 नमूनों को घटिया घोषित किया गया जबकि एक नकली पाया गया।

बानगी हिमाचल की

दवा निर्माण में हिमाचल प्रदेश एक अग्रणी राज्य है और यहाँ दवा बनाने की 660 कम्पनियाँ हैं। जिन 27 नमूनों को घटिया घोषित किया गया है उनमें से 15 दवाएं हिमाचल प्रदेश में बनीं हैं। इन कंपनियों में हिमाचल के बद्दी स्थित साइपर फार्मा भी है जिसे मार्च 2023 में नकली दवा उत्पादन के लिए सील कर दिया गया था। टाइफाइड और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन, बैक्टेरियल इन्फेक्शन, एलर्जी और दस्त जैसी सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली साइपर फार्मा की दवा - सेफिक्सिम और ओफ्लॉक्सासिन टैबलेट, डॉक्सीसाइक्लिन और लैक्टिक एसिड बैसिलस कैप्सूल, क्लोरफेनिरामाइन मेलेट टैबलेट और लोपरामाइड हाइड्रोक्लोराइड टैबलेट को घटिया घोषित कर दिया गया है। ड्रग कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन के अधिकारियों ने अन्य फर्मों के नाम से निर्मित अनधिकृत दवाओं की जब्ती के बाद मार्च में साइपर फार्मा को सील कर दिया था। वाराणसी स्थित एक विशेष टास्क फोर्स ने पहले इस फर्म में निर्मित करोड़ों रुपये की नकली दवाओं को जब्त किया था।

अन्य फर्मों की दवाएं जिन्हें घटिया घोषित किया गया है वे हैं - मोनामॉक्स-सीएल, निमेसुलाइड और पेरासिटामोल टैबलेट, स्पासोम-40 कैप्सूल, एमोक्सिसिलिन कैप्सूल, मिसोप्रोस्टोल, क्लैवम टैबलेट, हेपरिन सोडियम और टेरिपिल। इन्हें बनाने वाली कंपनियां बद्दी, नालागढ़, संसारपुर टेरेस, पौंटा साहिब और सोलन में स्थित हैं। इन दवाओं का उपयोग पेट दर्द, ऐंठन, ऐंठन, दर्द और बैक्टेरियल इन्फेक्शन, रक्त के थक्के, उच्च रक्तचाप और पेट के अल्सर के इलाज के लिए किया जाता है। पौंटा साहिब स्थित एक फर्म पिछले दो साल से लगातार घटिया दवाओं की सूची में शामिल हो रही है। लेकिन अभी भी इस फर्म के खिलाफ कार्रवाई का इंतजार है।

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के पूर्वी क्षेत्र कार्यालय और सिक्किम के राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण की एक संयुक्त जांच टीम ने ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स की ब्लड प्रेशर कम करने वाली दवा टेल्मा 40 के नमूनों को गुणवत्ता में विफल घोषित किया है। ये टेस्टिंग फरवरी में की गयी थी। 2022 में भुवनेश्वर में इसी नाम से बेचीं जा रही नकली दवा पकड़ी गयी थी।

2016 में दो भारतीय दवा कंपनियों पर डायबिटीज की नकली दवाओं के निर्यात का आरोप लगा था। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने फार्मास्यूटिकल प्रॉडक्ट ऑफ इंडिया लिमिटेड और वेनवरी की जांच की थी और पाया कि इन दोनों के बीच निर्माण और निर्यात को लेकर समझौता था। दोनों कंपनियां डायबिटीज की दवा मेटफॉर्मिन हाइड्रोक्लोराइड की अवैध रूप से रीब्रांडिंग कर रही थीं और उन्हें बांग्लादेश, ब्राजील, मेक्सिको और पाकिस्तान को निर्यात कर रही थीं।

2013 में रैनबैक्सी लैबोरेटरीज को मिलावटी दवाओं के निर्माण और वितरण के लिए दोषी ठहराया गया था। अमेरिकी न्याय विभाग के साथ एक समझौते के तहत कंपनी 50 करोड़ डॉलर की जुर्माना राशि का भुगतान करने के लिए तैयार हुई थी।

कोरोना वायरस की लहर के दौरान काफी संख्या में रेमडेसिविर की नकली शीशियां बाजार में बेची गईं और निर्यात भी की गईं थीं। 2020 में डिजिटल विजन नामक कंपनी के बनाए गए सिरप के सेवन से जम्मू और कश्मीर में 17 बच्चों की मौत हो गई थी। जांच में पाया गया कि सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा काफी ज्यादा थी। गाम्बिया में हुई मौत के बाद डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में भी पाया गया कि वहां भेजे गए कफ सिरप में डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल की मात्रा सुरक्षित मानकों से अस्वीकार्य स्तर तक ज्यादा थी। जम्मू-कश्मीर की घटना के बाद भारत सरकार ने इस कफ सिरप के इस्तेमाल पर रोक लगा दी और उन उत्पादों के इस्तेमाल का निर्णय लिया गया जिनमें ये दो विषैले पदार्थ डाइथाइलीन ग्लाइकोल और इथाइलीन ग्लाइकोल शामिल नहीं किए जाते।

20 फीसदी नकली दवाएं

डीडब्लू की एक रिपोर्ट बताती है कि यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (यूएसटीआर) की एक रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीय बाजार में बिकने वाले सभी दवा उत्पादों में से 20 फीसदी नकली हैं। आधिकारिक सरकारी रिकॉर्ड से पता चलता है कि 2007 और 2020 के बीच, भारत के मात्र तीन राज्य और तीन केंद्र शासित प्रदेशों से जांच के लिए इकट्ठा किए गए नमूने में से 7500 से अधिक दवाएं गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गईं।
2018 में, सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने जानकारी दी कि भारतीय बाजार में मौजूद कुल जेनेरिक दवाओं में लगभग 4.5 फीसदी दवाएं घटिया थीं। इसके अलावा, भारत में मौजूद 12,000 से अधिक विनिर्माण इकाइयों में से महज एक चौथाई ही डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक कार्य करती हैं।

सिरप ने पहले भी ली हैं बहुत जानें

शिशुओं के लिए बहुत सी दवाएं सिरप के रूप में दी जाती हैं। सिरप कहने को तो मामूली सी चीज हैं लेकिन यही दवा जानलेवा भी साबित हो सकती है। क्योंकि इन सिरप को बनाने में बेस के रूप में आमतौर पर डायथिलीन ग्लाइकोल या एथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी) केमिकल इस्तेमाल किया जाता है वह बेहद खतरनाक होता है। 2007 में पनामा में एक कफ सिरप में डीईजी से संबंधित विषाक्तता का एक प्रकरण सामने आया था, जिसके परिणामस्वरूप 365 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई थी। 2020 में जम्मू कश्मीर में कई बच्चों की मौत विषाक्त कफ सिरप से हो गयी थी। डायथिलीन ग्लाइकोल (डीईजी) या एथिलीन ग्लाइकोल गुर्दे की खराबी और फेलियर, न्यूरोपैथी, एन्सेफैलोपैथी, कोमा और मृत्यु का कारण बनता है। पिछले 70 वर्षों में कम से कम दस डीईजी सामूहिक विषाक्तता की घटनाएँ हुई हैं। बड़े पैमाने पर ये विषाक्तता डीईजी वाले तरल या मलहम दवाओं के कारण हुई थी। डीईजी विषाक्तता तब होती है जब इसका उपयोग औषधीय उत्पादों में फार्मास्युटिकल ग्रेड ग्लिसरीन की जगह किया जाता है।

डायथिलीन ग्लाइकोल

दवाओं के साइड इफ़ेक्ट के इतिहास में डायथिलीन ग्लाइकोल काफी महत्वपूर्ण रहा है। 20वीं सदी के इतिहास में दवा से हुई पहली बड़ी तबाही 1937 में अमेरिका में हुई थी और इसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल शामिल था। हुआ ये था कि एक फार्मासिस्ट ने ‘एलिक्सिर सल्फ़ानिलमाइड’ दवा पेश की, जिसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल में घुलने वाले सल्फ़ानिलमाइड शामिल थे। स्वाद, रूप और सुगंध के लिए इसका परीक्षण किया गया था, लेकिन सुरक्षा के लिए कोई परीक्षण नहीं किया गया। अंजाम ये हुआ कि दवा लेने के बाद 100 से अधिक रोगियों की तड़प तड़प कर मृत्यु हो गई। इनमें कई बच्चे शामिल थे, जिन्हें गले में खराश और खांसी के लिए रामबाण मानी जानी वाली दवा ‘सल्फ़ानिलमाइड’ दी गयी थी। इस घटना के बाद फैले सार्वजनिक आक्रोश के चलते यूएस 1938 फ़ूड, ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट अस्तित्व में आया, और अभी भी यही कानून अमेरिका में उन सभी दवाओं और उपकरणों के सार्वजनिक नियंत्रण का कानूनी आधार है, जिनका उपयोग इंसानों तथा जानवरों के निदान, इलाज या बीमारी की रोकथाम में उपयोग के लिए किया जाता है। यह कई अन्य देशों में इसी तरह के कानून के लिए एक मॉडल रहा है।

एथिलीन ग्लाइकोल विषाक्तता

डायथिलीन और पॉलीइथाइलीन ग्लाइकॉल्स को प्रोपलीन ग्लाइकॉल के सस्ते विकल्प के रूप में बच्चों के सिरप तैयार करने में बेस के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भारत और बांग्लादेश में डायथिलीन ग्लाइकोल-प्रेरित एक्यूट किडनी इंजरी (एकेआई) की घटनाओं की सूचना पहले भी मिली है। 1992-94 एक बड़े अध्ययन में, बांग्लादेश के ढाका के एक बच्चों के अस्पताल में अस्पष्टीकृत एकेआई वाले 339 बच्चों में 236 मौतें दर्ज की गईं। कुल 51 बच्चों ने एसिटामिनोफेन (पैरासिटामोल) का एक ब्रांड जिसमें डायथिलीन ग्लाइकोल होता है, लिया था जबकि शेष रोगियों में से 85 फीसदी ने बुखार के लिए एक अज्ञात सिरप का सेवन किया था। हेपेटोमेगाली, एडिमा, उच्च रक्तचाप, गंभीर एसिडोसिस, उच्च सीरम क्रिएटिनिन स्तर और अस्पताल में भर्ती रोगियों में मृत्यु दर अधिक पाई गयी थी। एक अन्य रिपोर्ट में, इंट्राकैनायल या इंट्रा ओकुलर दबाव को कम करने के लिए ‘ग्लिसरॉल’ देने के बाद एकेआई से 14 रोगियों की मृत्यु हो गई। इस सिरप के विश्लेषण से पता चला कि इसमें 70 फीसदी एथिलीन ग्लाइकॉल था।

डायथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला एजेंट है। इसके मिश्रण से बनी दवाओं के चलते हैती (1995-1996), बांग्लादेश (1990), और पनामा (2006) में बड़े पैमाने पर प्रकोप हुए थे। डीईजी एक शक्तिशाली ‘रीनल विष’ है जो मेटाबोलिक एसिडोसिस का कारण बन सकता है। मनुष्यों पर इसके प्रतिकूल प्रभावों के कारण, कई देशों में डायथिलीन ग्लाइकॉल को भोजन और दवाओं में उपयोग करने की अनुमति नहीं है।



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Neel Mani Lal

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