TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

कौन सुनेगा इनकी: न पैसे न नौकरी, खेतों में आदिवासी कर रहें ये काम

गुजरात के नर्मदा जिले के पास के क्षेत्रों को राज्य के एक आदिवासी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। फिर जहां लोगों के पास आवश्यकता के सीमित संसाधन हैं। ऐसे में महामारी में लॉकडाउन के चलते ना तो उनके पास नौकरी है और ना ही पैसे।

Vidushi Mishra
Published on: 2 May 2020 11:46 AM IST
कौन सुनेगा इनकी: न पैसे न नौकरी, खेतों में आदिवासी कर रहें ये काम
X
कौन सुनेगा इनकी: न पैसे न नौकरी, खेतों में आदिवासी कर रहें ये काम

नई दिल्ली। बीते शुक्रवार को गुजरात ने महाराष्ट्र से अलग होने की 60वीं वर्षगांठ मनाई। साथ ही गुजरात के नर्मदा जिले के गांव वालों आजादी के समय से पहले के समय में चले गए हैं। हालांकि ये जो भी हुआ ये उनकी पसंद तो नहीं ही होगी, लेकिन उस समय महामारी फैलने से उन्हें यह फैसला करना पड़ा। सालों पहले जब क्षेत्र विकसित नहीं था, तो जिले के आदिवासियों ने व्यापार का बेहतरीन तरीका अपनाया था, जिसे 'सत पत' प्रणाली कहा जाता है। पुराने समय में मध्ययुग के बार्टर सिस्टम मतलब सामान के बदले सामान का व्यापार करने का ही प्रचलन था। लेकिन अब ये प्रणाली एक बार फिर से प्रसिद्धि हासिल कर रहा है।

ये भी पढ़ें...कोरोना संकट के बीच आर्मी की ये बड़ी पहल, पीएम मोदी ने दिया समर्थन

महामारी में लॉकडाउन के चलते

गुजरात के नर्मदा जिले के पास के क्षेत्रों को राज्य के एक आदिवासी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। फिर जहां लोगों के पास आवश्यकता के सीमित संसाधन हैं। ऐसे में महामारी में लॉकडाउन के चलते ना तो उनके पास नौकरी है और ना ही पैसे।

लॉकडाउन के चलते ना ही स्थानीय लोग नौकरी के लिए बाहर जा सकते हैं। ऐसे में लोगों ने जीवनयापन के लिए बार्टर सिस्टम को अपनाने का फैसला किया है। इस दौरान स्थानीय लोग आपस में दाल-चावल अन्य अनाजों की अदला-बदली करते हैं।

इसी पर आदिवासी संघ एएमयू के अध्यक्ष महेश वसावा ने कहा 'जब देश स्वतंत्र नहीं था, तब ये आदिवासी अपनी जमीन और अन्य फसलों पर चारा उगाने का काम करते थे।

ये भी पढ़ें...3961 वकीलों को मिलेगी दो-दो हजार रुपये की सहायता, खाते में पहुंचेगा पैसा

जिले के गांवों में यह प्रथा फिर से शुरू

इस तरह उन्होंने 'सत पत' प्रणाली के माध्यम से माल और अनाज का आदान-प्रदान किया और व्यापार की इस पद्धति का पालन किया। आज जब आदिवासी काम के लिए बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो यह जिले के गांवों में यह प्रथा फिर से शुरू हो गई है।'

आगे वसावा ने कहा कि गेहूं, चावल और छोले से इनका जीवन यापन नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी मांग की कि आदिवासियों को आवश्यक सेवाओं की पूर्ति भी की जाए।

इसी पर नर्मदा के अमियाली गांव के निवासी जगु देसरिया ने कहा कि अधिकतर आदिवासी लोगों को सरकार द्वारा उन्हें दिए गए धन के बारे में जानकारी नहीं है।

उन्होंने कहा, 'हमारे खेत सूखे हैं और हमारी आजीविका चली गई है। हम काम पर नहीं जा सकते। इसलिए हम आजीविका के लिए 'सत पत' को फिर से शुरू करने के लिए मजबूर हैं।'

ये भी पढ़ें...अलर्ट जारी! देश के इन राज्यों में आंधी-बारिश की चेतावनी, आ सकता है चक्रवाती तूफान



\
Vidushi Mishra

Vidushi Mishra

Next Story