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Women Reservation Bill: इस दफे क्या अपनी परीक्षा में सफल होगा महिला आरक्षण बिल, क्या आधी आबादी को मिलेगा ये अधिकार ?
Women Reservation Bill Ke Bare Me Jankari: इस दफे क्या अपनी परीक्षा में सफल होगा महिला आरक्षण बिल, पुरुष सत्तात्मक राजनीति के पैरोकार क्या आधी आबादी को देंगें ये अधिकार।
Women Reservation Bill: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले एक बार फिर देश की राजनीति में महिला आरक्षण बिल को लेकर हवा तेज चलनी शुरू हो गयी है। जहां एक तरफ एनडीए महिला आरक्षण बिल के सहारे अपनी चुनावी नैया पार करने की योजना बना रहा है। वही कांग्रेस खेमे की तरफ इस बात को बताने की पूरी कोशिश शुरू हो गयी है कि उसके कार्यकाल में महिला आरक्षण बिल लाया गया था। पर अन्य दलों की नकारात्मक भूमिका के चलते यह बिल लटक गया। हांलाकि इस बात से पूरी तरह से इंकार नहीं किया जा सकता है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के अर्न्तविरोधो और टकराव के चलते देश की आधी आबादी को इसका लाभ अब तक नहीं मिल सका है।
महिला आरक्षण बिल के बारे में जानकारी (Women Reservation Bill Ke Bare Me Jankari)
उल्लेखनीय है कि लोकसभा के शीतकालीन सत्र से पहले अचानक संसद को विशेष सत्र बुलाए जाने की घोषणा के बाद देश की राजनीति में तूफान खड़ा हो गया है। संसद का पांच दिवसीय विशेष सत्र 18 से 22 सितम्बर तक आयोजित किए जाने की घोषणा की गयी है। इसके बाद से राजनीतिक क्षेत्र के लोग तरह तरह की कयासबाजी में लगे हुए हैं। एक नेशन एक इलेक्शन का बिल लाए जाने के साथ ही इस बात की भी संभावना व्यक्त की जा रही है। एनडीए सरकार इसके साथ ही 10 दूसरे विधेयक भी लाने की तैयारी में है। जिसमें महिला आरक्षण बिल भी शामिल है।
महिला आरक्षण को लेकर संसद में कई बार बिल लाया जा चुका है। लेकिन राजनीतिक दलों के आपसी टकराव के कारण यइ बिल सदन में लटकता रहा है। नब्बे के दशक में महिलाओं के आरक्षण को लेकर खूब सवाल उठते रहे। तब गठबन्धन सरकारों के अर्न्तविरोध के चलते कई बार यह बिल लटकता रहा है। 1996 में राष्ट्रीय मोर्चा वाली देवगौड़ा की सरकार थी । तब यह बिल सबसे पहले संसद में आया था । लेकिन तब तक देवगौड़ा की सरकार गिर गयी। इसके बाद भाजपा के नेतृत्व वाली खिचड़ी सरकार आई। अटल विहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 13 दिन 13 महीने की सरकार में भी यह बिल ऐसे ही लटका रहा।
इसके बाद लगातार जब तीसरी बार एनडीए की सरकार का गठन हुआ तब भी कई मौकों पर महिला आरक्षण बिल की बात तो हुई पर यह बिल संसद में पारित नहीं हो सका। अंतिम बार कांग्रेस सरकार के नेतृत्व में 2010 के राज्यसभा में यह विधेयक पारित तो हुआ था। लेकिन लोकसभा में इसे समर्थन नहीं मिला था। महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108वां विधेयक 2008 में मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में 2008 में पेश हुआ था जो कि 9 मार्च को विधेयक 2010 में राज्यसभा में पारित हुआ । मगर लोकसभा में पारित नहीं हो पाया। उसके बाद 2014 में लोकसभा भंग हो गई। कांग्रेस का दावा है कि 9 मार्च 2010 को राज्यसभा में कांग्रेस नेतृत्व के प्रयासों के कारण ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पारित किया गया था। लेकिन लोकसभा में इसे समर्थन नहीं मिला।
बेहद पुराना है आरक्षण बिल का इतिहास
इन दिनों सोशल मीडिया पर उत्तर प्रदेश की पहली राज्यपाल रही सरोजनी नायडू की चिठ्ठी खूब वायरल हो रही है जिसमें उन्होंने ब्रिटिश पीएम को एक पत्र लिखकर महिलाओं के अधिकार की बात की है। यह पत्र सन 1931 के आसपास का बताया जा रहा है। इससे प्रतीत होता है कि महिलाओं को राजनीति में आरक्षण दिए जाने की मांग बेहद पुरानी है।
इसके बाद कांग्रेस की इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के समय साल 1975 में एक रिपोर्ट में हर क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति के अलावा उनके आरक्षण की बात थी। महिला आरक्षण विधेयक पहली बार 1996 में देवेगौड़ा सरकार द्वारा पेश किया गया था। लोकसभा में विधेयक के अनुमोदन में विफल होने के बाद, इसे गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली एक संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया, जिसने दिसंबर 1996 में अपनी रिपोर्ट पेश की।
अटल विहारी वाजपेयी की सरकार में भी आ चुका है महिला बिल
इसी तरह जब देश में पिछली बार लोकसभा के चुनाव होने थे तो उसके ठीक पहले यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महिला आरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि इसे लोकसभा में पारित किया जाए। हालांकि आजाद भारत के इतिहास पर गौर किया जाए तो 1996 में पहली बार महिलाओं के आरक्षण सम्बन्धी बिल को संसद में पेश किया गया था। एनडीए सरकार ने 1998 में 12वीं लोकसभा में बिल को फिर से पेश किया। पर यह बिल अपनी कई खामियों के कारण पास नही हो सका। इसके बाद 1999 में एनडीए सरकार ने 13वीं लोकसभा में इसे फिर से पेश किया। यहीं नही, अटल सरकार के दौरान ही महिला आरक्षण विधेयक को 2003 में संसद में दो बार पेश किया गया था। 2004 में यूपीए सरकार ने इसे सामान्य न्यूनतम कार्यक्रम में शामिल किया था । उसके बाद यह क्रम जारी रहा है। राजनीतिक दल अपने लाभ हानि के तहत इस पर अपनी राजनीतिक चालें चलते रहे पर इसमें गंभीरता दिखाने का प्रयास नहीं किया गया जिसकी आवश्यकता थी।
क्या है महिला आरक्षण बिल
इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो जाएगा। इसके अलावा आरक्षित सीटों को राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में चक्रीय आधार पर आवंटित किया जा सकता है। यहीं नहीं, इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 वर्ष बाद महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा। हांलाकि पंचायती राज संस्थाओं ने महिला प्रतिनिधियों को ज़मीनी स्तर पर व्यवस्था में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई राज्यों ने चुनाव में महिला उम्मीदवारों के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण दिया है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस विधेयक में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। इसी 33 प्रतिशत में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी हैं। महिला आरक्षण विधेयक एक संविधान संशोधन विधेयक है। यही कारण है कि इसे दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना जरूरी है। इसी वजह से ये विधेयक करीब 26 साल से अधर में लटका हुआ है।
दबती रही है आधी आबादी की आवाज
आजादी के 75 सालों बाद आज भी सदनों में महिलाओंकी संख्या बेहद कम दिखाई देती है। हर चुनावों के पहले उनके अधिकारों और उनकी भागीदारी को लेकर राजनीतिक दलों की तरफ से खूब दावे किए जाते हैं। पर जब टिकट देने का मौका आता है तो सभी राजनीतिक दल इससे पीछे हटते नजर आते हैं। देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद से आज तक भारतीय राजनीति में महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी नहीं रही। 1952 में बनी पहली लोकसभा में 499 सांसदों में से महिला सांसदों की संख्या महज 24 थी। इसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में यह संख्या घटती-बढ़ती रही, लेकिन कभी भी यह संख्या 14 प्रतिशत से अधिक नहीं पाई।
पिछले लोकसभा चुनाव में जीतने वाली महिलाओं की संख्या अब तक की सबसे अधिक संख्या 78 रही। जो कि कुल सांसदों का मात्र 14.58 प्रतिशत है। इसकी तुलना में 2014 में हुए लोकसभा चुनाव 11.23 प्रतिशत महिलाएं जीती थीं। 2014 में 8,251 प्रत्याशियों में से 668 महिलाएं थीं जिनमें से 62 चुनाव जीतीं थीं। जबकि 2019 के चुनावों में 8,049 प्रत्याशियों में से 716 महिलाएं थीं। इस चुनाव में 222 महिलाएं निर्दलीय भी चुनाव लड़ीं। इनके अलावा 4 किन्नरों ने भी चुनाव में भाग्य आजमाया था जिनमें एक प्रत्याशी आम आदमी पार्टी का भी था। लेकिन उनमें से कोई भी चुनाव नहीं जीत सका।
गत् लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा ने कुल 53 महिला प्रत्याशी मैदान में उतारा था, जिनमें से 34 जीत दर्ज कर लोकसभा में पहुंची। जबकि ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने 41 प्रतिशत और बीजू जनता दल ने 33 प्रतिशत महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा था।
महिला आरक्षण बिल को लेकर क्या कहती हैं ये महिला अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहीं ये हस्तियां
महिला आरक्षण विषय पर महिलाओं के अधिकारों के लिए एक अरसे से लगातार संघर्ष कर रही एडवा नेता मधु गर्ग का कहना है कि महिलाओं को उनका हक दिलवाने और उन्हें सशक्त बनाने के लिहाज से तैयार किया गया । महिला आरक्षण बिल पिछले करीब 26 साल से अपना हक पाने के लिए संघर्ष कर रहा है। वो भी स्थिति तब है जबकि केंद्र में आने वाली सरकार को गद्दी पर लाने के लिए देश की महिलाएं अपना अमूल्य वोट देकर उन्हें सत्ता रूढ़ होने का अवसर प्रदान करती हैं। पुरुष सत्तात्मक विचारधारा के चलते सरकार खुद नहीं चाहती की ये बिल पास हो। अगर ऐसा न होता तो तो पिछले करीब दस सालों से केंद्र में मौजूद वर्तमान सरकार ने अब तक इस बिल को पूर्ण रूप से अस्तित्व में क्यों नहीं आने दिया।
अब जबकि 2024 के चुनाव नजदीक हैं, तो एक बार फिर महिलाओं के भरोसे के साथ छलावा करने के लिए दोबारा से इस बिल पर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। देखा जाए तो महिलाओं ने अब तक हर उस क्षेत्र में आगे बढ़ कर अपना बेहतरीन योगदान दिया है, जहां आज तक पुरुषों का राज कायम था। फिर चाहे बात पंचायत चुनाव की हो या फिर नगर निगम चुनाव की। इन चुनावों में सफल साबित होकर पूरे देश, प्रदेश में महिलाएं स्वतंत्र रूप से पुरुषों से कहीं बेहतर काम कर रहीं हैं। इस बिल के धरातल पर आ जाने से महिलाएं कहीं ज्यादा सशक्त हो जाएंगी, उन्हें अपने अधिकारों के लिए मौन रख कर शोषण का शिकार नहीं होना पड़ेगा। रोजगार के अवसर भी उनके सामने खुलकर सामने आएंगे, जिससे वे स्वयं के साथ ही साथ अपने परिवार और समाज को भी मजबूती प्रदान करने में पूरी तरह सक्षम होंगी।
महिला आरक्षण बिल जल्द से जल्द पास होना चाहिए- मधु गर्ग
मधु गर्ग का कहना है कि अगर ये बिल आज पास हो चुका होता तो राष्ट्रीय खिलाड़ी शाक्षी मालिक से लेकर मणीपुर में जो महिलाओं के साथ हिंसा की गई, ऐसी शर्मनाक घटनाएं आज नहीं घटित होती। एडवा नेता मधु गर्ग ने अंत में कहा कि महिलाओं के हक में महिला आरक्षण बिल जल्द से जल्द पास होना चाहिए। इस बिल के आने से देश में लगातार बढ़ती जा रहीं हिंसा जैसी घटनाओं में निश्चित तौर पर भारी मात्रा में कमी आएगी।
वहीं प्रदेश अध्यक्ष उप्र राज्यकर्मचारी महासंघ एवम अध्यक्ष जवाहर भवन, इंदिरा भवन मीना सिंह का महिला आरक्षण बिल पर कहना है कि आधी आबादी का दर्जा पाने वाली महिलाओं के साथ महिला आरक्षण बिल को अधर में लटकाकर उनकी उपेक्षा की जा रही है। महिला आरक्षण बिल अगर पास होगा तो महिलाओं के लिए हर क्षेत्र में रोजी रोजगार के अवसर खुल कर सामने आएंगे, उन्हें निश्चित कोटे के तहत सरकारी नौकरियों में आगे आने की सुविधा उपलब्ध होगी। जबकि कितने सरकारी पद खाली पड़े हैं और सरकार ने भर्तियां बंद कर रखी हैं। आज कल शिक्षित महिलाओं का एक बड़ा वर्ग औने पौने वेतन पर प्राइवेट नौकरियां करने को मजबूर हैं। जहां उनका खुल कर मानसिक और शारीरिक शोषण किया जा रहा है।
रोजगार में 33 प्रतिशत छूट की भागीदारी का मौका दिया जाए - मीना सिंह
मीना सिंह का महिला आरक्षण बिल में संशोधन को लेकर कहना है कि महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में कोटा निश्चित करने के साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर ही उन्हें इस आरक्षण के तहत रोजगार में 33 प्रतिशत छूट की भागीदारी का मौका दिया जाए। इसके लिए मौजूदा सरकार को जनगणना करवाकर महिलाओं की आर्थिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार करवानी चाहिए ताकि असली हकदार को ही इसका लाभ मिल सके। सरकार से मेरा निवेदन है कि महिला हिंसा पर प्रतिबंध लगाने और आधी आबादी को सशक्त बनाने के लिए इस बिल को जल्दी से जल्दी पारित करवाकर लागू करे, इसे सिर्फ चुनावी हथियार बनाकर महिलाओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करे।