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जानिए कब बनी थी तबलीगी जमात, कैसे और क्या होता है काम
तबलीगी जमात का पहला धार्मिक कार्यक्रम भारत में 1941 में हुआ था। इस कार्यक्रम में 25,000 लोग शामिल हुए थे। 1940 के दशक तक जमात का कामकाज भारत तक ही सीमित था, लेकिन बाद में इसकी शाखाएं पाकिस्तान और बांग्लादेश तक फैल गईं।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से देशभर में खौफ का माहौल बना हुआ है। इसके मामले दिल्ली में लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कोरोना से 10 लोगों के मौत की खबर सामने आई है। बताया जा रहा है कि ये लोग दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के मरकज (सेंटर) के एक कार्यक्रम में आए थे। देश और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए थे। अब केंद्र और राज्य सरकारें इन सभी लोगों को ढूंढकर उनकी जांच करने में जुटी हैं, क्योंकि इस धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मलेशिया और इंडोनेशिया के भी कुछ लोग आए थे।
तबलीगी जमात कब हुई शुरुआत
मुगल काल में कई लोगों ने इस्लाम धर्म को कबूल कर लिया था, लेकिन फिर भी वो लोग हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज को ही मान और अपना रहे थे। भारत में अंग्रेजों की हुकूमत आने के बाद आर्य समाज ने उन्हें दोबारा से हिंदू बनाने का शुद्धिकरण अभियान शुरू कर दिया, जिसकी वजह से मौलाना इलियास कांधलवी ने इस्लाम की शिक्षा देने का काम शुरू किया। इसके लिए उन्होंने 1926-27 दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित मस्जिद में कुछ लोगों के साथ मिलकर तबलीगी जमात का गठन किया। इसे मुसलमानों को अपने धर्म में बनाए रखने, इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार और इसकी जानकारी देने के लिए गठन किया गया।
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तबलीगी जमात का पहला धार्मिक कार्यक्रम भारत में 1941 में हुआ था। इस कार्यक्रम में 25,000 लोग शामिल हुए थे। 1940 के दशक तक जमात का कामकाज भारत तक ही सीमित था, लेकिन बाद में इसकी शाखाएं पाकिस्तान और बांग्लादेश तक फैल गईं। तबलीगी जमात हर साल देश में एक बड़ा कार्यक्रम करता है। इस कार्यक्रम को इज्तेमा कहते हैं। इसमें दुनियाभर के लाखों मुसलमान शामिल होते हैं।
क्या है तबलीगी जमात का मतलब
तबलीगी का मतलब है अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला। जमात का मतलब होता है समूह, यानी अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला समूह। मरकज का मतलब होता है मीटिंग के लिए जगह। दरअसल, तबलीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं जिसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है।
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हरियाणा से हुई थी शुरुआत
इलियास कांधलवी ने पहली जमात दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके के नूह कस्बे लेकर पहुंचे थे। वहां मेवाती समुदाय को नमाज, कलमा समेत इस्लामिक शिक्षा सिखाने पर जोर दिया। मुस्लिम समुदाय के लोगों को इस्लाम की मजहबी शिक्षा देने के लिए ले गए थे। तबलीगी जमात आज दुनियाभर के लगभग 213 देशों तक फैल चुका है।
तबलीगी जमात के मुख्य उद्देश्य 'छ: उसूल जैसे-कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तबलीग थे। इन्हीं उद्देश्यों को लेकर तबलीगी जमात से जुड़े हुए लोग देश और दुनिया भर में लोगों के बीच जाते हैं और इस्लाम का प्रचार-प्रसार करते हैं। बताया जाता है कि तबलीगी जमात में जाने वाला शख्स अपने पैसे खुद लगाता है।
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ऐसे होता है काम
तबलीगी जमात के मरकज से ही अलग-अलग हिस्सों के लिए तमाम जमातें जाती हैं। इनमें कम से कम तीन दिन, पांच दिन, दस दिन, 40 दिन और चार महीने की जमातें जाती हैं। तबलीगी जमात के एक जमात (समूह) में आठ से दस लोग शामिल होते हैं। इनमें दो लोग सेवा के लिए होते हैं जो कि खाना बनाते हैं। जमात में शामिल लोग सुबह-शाम शहर में निकलते हैं और लोगों और दुकानदारों से नजदीकी मस्जिद में पहुंचने के लिए कहते हैं। सुबह 10 बजे ये हदीस पढ़ते हैं और नमाज पढ़ने और रोजा रखने पर इनका ज्यादा जोर होता है।