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Andaman Nicobar Island:भारत के रहसमयी अंडमान-निकोबार द्वीप के ख़तरनाक आदिवासी, इनके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएँगे

Andaman and Nicobar Island: अंडमान निकोबार महाद्वीप की जारवा जनजाति भारत के सभी जनजातियों में सबसे पुरानी जनजाति मानी जाती है। यहाँ के लोग बहुत ही खतरनाक होते हैं और सदैव नग्न अवस्था में रहते और बाहरी लोगों से कोई सम्पर्क नहीं बनाते हैं।

Vertika Sonakia
Published on: 9 May 2023 9:43 PM IST
Andaman Nicobar Island:भारत के रहसमयी अंडमान-निकोबार द्वीप के ख़तरनाक आदिवासी, इनके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएँगे
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अंडमान निकोबार महाद्वीप की ज़ारवा जनजाति (फ़ोटोः सोशल मीडिया)

Andaman Nicobar Island: भारत का केंद्र शासित राज्य अंडमान निकोबार द्वीप 200 साल तक ब्रिटिश राज में रहा था। अंडमान निकोबार महाद्वीप के अंतर्गत 572 द्वीप हैं और इनमें से केवल 37 द्वीप समूह में ही जनसंख्या रहती है, बाकी सब खाली रहते हैं। यहाँ के आदिवासी हमेशा चर्चा में रहते हैं।
यहाँ भारत और अफ्रीका के कई आदिवासी और जनजाति समूह रहते हैं। उनके क्षेत्र को 1956 के काानून के हिसाब से संरक्षित घोषित कर रखा है। इन जनजातियों के इलाके में बाकी देश के लोगों का जाना वर्जित है। जारवा समूह के लोगों के लिए जारवा रिजर्व क्षेत्र बना हुआ हैं और वह शिकार करके अपना जीवन यापन करते हैं।

इनके इलाके में तमाम लोग जानने का प्रयास करते रहते हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि लोगों को वह अजूबा दिखते हैं तो उन्हें देखने के लिए पर्यटक वहाँ जाते हैं। कुछ लोग उनका धर्मपरिवर्तन करने के प्रयास से भी वहाँ जाते रहते हैं।

बेहद खतरनाक है यहाँ का आदिवासी समूह

एक समय पर अंडमान निकोबार में 6-7 जनजातियां पायी जाती थीं- जारवा, ओंगे, सेंटनिलीज, शोंपेज आदि। अब केवल 4 जनजाती है यहाँ बसी हुई हैं।

जारवा जनजातिः जारवा जनजाति मानव सभ्यता की सबसे पुरानी जनजातियों में से एक है। यह हिंद महासागर के टापुओं में हजारों वर्षों से निवास कर रही है। ये 50,000 वर्ष पहले अफ्रीका से यहाँ पहुंचे थे और अभी भी पाषाण युग में निवास कर रहे हैं। यह जनजाति दक्षिणी अंडमान में निवास करती है। यह अंडमान के मूल निवासी हैं और दुनिया के सबसे खतरनाक जनजातियों में से एक हैं। अंडमान में लगभग 400 से अधिक जारवा जनजाति के लोग रहते हैं। यहाँ के लोग न तो किसी बाहरी व्यक्ति से संपर्क करते हैं ना ही किसी बाहरी व्यक्ति को अपने इलाके में आने की अनुमति प्रदान करते हैं। उन्हें बाहरी लोगों से डर लगता है इसलिए वह अकेले रहना पसंद करते हैं।

जारवा संरक्षण नीती

जारवा जनजाति के संरक्षण के लिए दिसंबर 2004 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ट्राइबल अफेयर्स मंत्रालय और ट्राइबल अफेयर्स मंत्रालय के साथ मिलकर एक नीती बनाई थी। जंगल से मिलने वाले तमाम सामानों से इनकी रोजी रोटी चलते देखते हुए उनकी रिजर्व क्षेत्र को 847 वर्ग किलोमीटर से बढ़ाकर 1028 किलोमीटर कर दिया गया था। इसी द्वीप समूह पर अन्य संकटग्रस्त जनजातीय समूह के लोग भी निवास करते हैं।

जारवा जनजाति का रहन सहन

जारवा जनजाति का प्रिय भोजन सूअर का मांस है जिसके लिए वह समूह में शिकार करते हैं। यह लोग आज भी धनुष बाण की मदद से मछली सूअर आदि जानवरों का शिकार करते हैं। जारवा जनजाति के पुरुष और महिला ऊंचे ऊंचे पेड़ों पर चढ़कर मधुमक्खी का शहद इकट्ठा करके उसे भोजन में इस्तेमाल करते हैं। इन्हें लगभग 150 से अधिक पेड़ पौधे और 250 से अधिक प्रजातियों के बारे में ज्ञान है। यह अपने क्षेत्र में किसी भी प्रकार की दखलंदाजी को बर्दाश्त नहीं करते हैं। हाल ही के वर्षों में बाहरी आबादी के ज्यादा आगमन से लोगों द्वारा दिए गए कपड़े व स्वीकार कर लेते हैं। इस जनजाति के लोगों को गाने और बजाने का अधिक शौक है।

विधवा और बच्चों को लेकर जनजाति की प्रथा

यदि इनकी प्रजाति के किसी बच्चे की शक्ल और रंग इनसे नहीं मिलता तो वह उसे मार डालते हैं। यदि कोई विधवा माँ बनती है बच्चा बाहरी शख्स का लगता है तो वे उसे भी मार डालते हैं। लेकिन ऐसे मामलों में पुलिस को दखल न देने के आदेश दिए गए हैं।



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