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कोरोना के बाद नई बीमारी: फेफड़ों को तेजी से करती खराब, अब फिर बढ़ा खतरा
इस नई बीमारी के बारे में दरअसल ऐसे पता चला कि मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी को फेफड़ों में समस्या के चलते एम्स में भर्ती किया गया था। वहीं कोरोना संक्रमण से रिकवरी के बाद पता लगा कि वह फाइब्रोसिस का शिकार हो चुके हैं।
नई दिल्ली। कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले मरीजों का रिकवरी दर इन दिनों अच्छी है। लेकिन मामले अब भी कम नहीं हो रहे हैं। ऐसे में कोविड-19 का जड़-बुनियाद से खात्मा एक आर्दश वैक्सीन के द्वारा ही संभव है। क्योंकि यदि डॉक्टर के परामर्श पर कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों को दवाएं और एंटीबायोटिक्स ना दी जाएं, तो आगे चलकर वे पल्मोनरी फाइब्रोसिस (pulmonary fibrosis) जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो सकते हैं। इस पर सामने आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस फेफड़ों को बड़ी तेजी से डैमेज करता है, जिससे आगे चलकर फाइब्रोसिस का खतरा पैदा हो सकता है।
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कोरोना इंफेक्शन से रिकवरी के बाद
अभी कुछ दिन पहले हाल ही में मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी को फेफड़ों में समस्या के चलते एम्स में भर्ती किया गया था। वहीं कोरोना इंफेक्शन से रिकवरी के बाद पता लगा कि वह फाइब्रोसिस का शिकार हो चुके हैं। पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक गंभीर बीमारी है, जिसमें फेफड़े के टिशू (ऊतक) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
ऐसे में इस बारे में टीबी हॉस्पिटल मेडिकल सुप्रीटेंडें डॉक्टर एके श्रीवास्तव का कहना है कि फाइब्रोसिस फेफड़ों के क्षतिग्रस्त होने का आखिरी स्टेज है। कोरोना वायरस मुख्य रूप से इंसान के फेफड़ों को खराब करता है, इसलिए मरीजों की रिकवरी के बाद भी लोगों को डॉक्टर्स की सलाह पर इसकी दवाएं लेना जारी रखना चाहिए।
डॉ. एके श्रीवास्तव कहते हैं, 'कोविड-19 के इलाज के दौरान डॉक्टर्स को मरीजों के फेफड़ों की रक्षा करनी होती है। कोरोना से रिकवरी के बाद मरीज को रेगुलर गाइडेंस के लिए डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए।
संबंधित दवाओं को नियमित रूप से लेना
जिससे फेफड़ों के बचाव और उसके नॉर्मल फंक्शन को समझा जा सके। इसके अलावा डॉक्टर की देख-रेख में एंटीबायोटिक्स, स्टेरॉयड या संबंधित दवाओं को नियमित रूप से लेना चाहिए।'
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फोटो-सोशल मीडिया
पल्मोनरी फाइब्रोसिस पर्मानेंट पल्मोनरी आर्किटेक्चर डिस्टॉर्शन या लंग्स डिसफंक्शन से जुड़ी समस्या है। कोविड-19 के मामले में फेफड़े वायरस से खराब होते हैं, जो बाद में फाइब्रोसिस का कारण भी बन सकता है।
लेकिन ये खतरनाक बीमारी कई और भी कारणों से हो सकती है। ये रेस्पिरेटरी इंफेक्शन, क्रॉनिक डिसीज, मेडिकेशंस या कनेक्टिव टिशू डिसॉर्डर की वजह से हो सकती है।
इसमें पल्मोनरी फाइब्रोसिस में फेफड़े के आंतरिक टिशू के मोटा या सख्त होने की वजह से रोगी को सांस लेने में काफी दिक्कत होती है। धीरे-धीरे मरीज के खून में ऑक्सीजन की कमी आने लगती है।
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इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस
फोटो-सोशल मीडिया
ऐसे में ये स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है। वहीं अधिकांश मामलों में डॉक्टर इसके कारणों का पता नहीं लगा पाते हैं। इस कंडीशन में इसे इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस कहा जाता है।
इसी कड़ी में डॉक्टर्स कहते हैं कि पल्मोनरी फाइब्रोसिस घातक एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस-2 (SARS-CoV-2) को ज्यादा गंभीर बना सकता है।
इस बीमारी में इम्यून सिस्टम पैथोजन से जुड़े अणुओं का इस्तेमाल कर वायरस की पहचान करता है, जो एंटीजन-प्रेजेंटिंग सेल (APC) रिसेप्टर्स के साथ संपर्क कर डाउनस्ट्रीम सिग्नलिंग को ट्रिगर करते हैं जिससे एंटीमाइक्रोबियल और इनफ्लामेटरी फोर्सेस को रिलीज किया जा पाएं।
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