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...जब होली के लिए बनने वाले पापड़ भी बनते थे मेलजोल की वजह
सुनो होली आ रही है? कुछ तैयारी-वैयारी की या नहीं? बहुत सारा काम होगा। चिप्स-पापड़ और गुझिया न जाने क्या-क्या चीजें बनानी हैं? टाइम भी नहीं बचा है। चलो कोई बात नहीं, मार्केट से ले लूंगी यही वो बातें हैं, जो आजकल के बिजी टाइम में हर महिला के मुंह से सुनने को मिल जाती हैं।
लखनऊ: सुनो होली आ रही है? कुछ तैयारी-वैयारी की या नहीं? बहुत सारा काम होगा। चिप्स-पापड़ और गुझिया न जाने क्या-क्या चीजें बनानी हैं? टाइम भी नहीं बचा है। चलो कोई बात नहीं, मार्केट से ले लूंगी यही वो बातें हैं, जो आजकल के बिजी टाइम में हर महिला के मुंह से सुनने को मिल जाती हैं। फागुन का महीना आ गया है। मार्च के शुरू होते ही बसंती बयार आ जाती है। बागों में आम के पेड़ों पर बौर आ गए हैं। कोयलें कूकना शुरू कर चुकी हैं।
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होलिका दहन के लिए जगह-जगह चौराहों पर लकड़ियों का ढेर लगाया जा चुका है। पर चिप्स-पापड़ का नाम आते ही अभी कई घरों में सूखा पड़ा है। एक टाइम था, जब होली की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती थी। मम्मी पड़ोसन आंटियों के साथ मिलकर पहले से ही तरह-तरह के पापड़ बनाना शुरू कर देती थी। छोटे-छोटे बच्चे आलू के चिप्स काटने के लिए मम्मी से रिक्वेस्ट करते रहते थे। पर हाथ कट जाने के डर से मम्मी काटने नहीं देती थी। पर आज के बिजी शेड्यूल से मानों घरेलू चिप्स-पापड़ों की रौनक ही छीन ली हो।
अब तो हर चीज मार्केट से ही लोग खरीद लेते हैं। चाइनीज चिप्स-पापड़ों और डिजायनर गुझियाओं के चलते लोग आलसी से होते जा रहे हैं। मेहमानों के बीच रसूख जमाने के लिए कि हम भी मार्केट में बनी चीजें यूज करते हैं, लोग अपना कल्चर और अपनी संस्कृति भूलते जा रहे हैं।
अगर किसी बूढ़ी-बुजुर्ग महिला से पूछिए कि दादी पहले होली के पापड़ कैसे बनते थे? तो वो बताना शुरू करेंगी कि बेटा हम तो एक साथ 5-5 किलो आलुओं के पापड़ बनाते थे। आस-पड़ोस की सारी महिलाएं इकट्ठी होती थी। तब के टाइम पर पापड़ बनाने वाली मशीनें भी नहीं होती थी, ऐसे में हम थाली के ऊपर चकला रखकर दबाते थे। ऐसे लोगों को एक-दूसरे से मिलने का टाइम नहीं मिलता था, पर मोहल्ले में पापड़ बनाने के लिए सब एक-दूसरे की हेल्प को तैयार रहती थी।
मजा तब और बढ़ जाता था, जब घर के पुरुष भी इन सभी कामों में हाथ बंटाते थे। किसी भी चीज की कमी ही नहीं होती थी। सबसे ज्यादा ख़ास बात तो यह है कि पहले जो घरों में पापड़ बनते थे, वह काफी हेल्दी होते थे। न तो उनमें केमिकल मिलाया जाता था और ना ही कोई रंग ऐसे में उन्हें खाने वाले की सेहत पर भी कोई बुरा असर नहीं होता था।
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आज का टाइम टेक्नोलॉजी का टाइम है। सब कुछ मशीनों पर ही डिपेंड सा हो गया है। कोई मेहनत करना ही नहीं चाहता है। जिसे देखो, वह ही अपनी लाइफ में बिजी है। बच्चे पढ़ाई में बिजी हैं, मम्मी अपने काम में और पापा ऑफिस में आज के टाइम पर पड़ोसियों से उम्मीद करना तो खुद से ही बेईमानी है उन्हें क्या कहा जाए, आजकल तो शायद हम भी पड़ोसियों की हेल्प के लिए नहीं जाते होंगे। टाइम बदल चुका है। लोगों की सोच बदल चुकी है।
बिजी शेड्यूल के चलते लोगों को अपने ही काम से टाइम नहीं है। ऐसे में अगर मम्मी चिप्स-पापड़ बनाने के लिए आलू लेकर बैठती भी हैं, तो बच्चे तुरंत कन्नी काट जाते हैं। कोई पढ़ाई का बहाना बनाकर, तो कोई कुछ और सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम के बढ़ते क्रेज के चलते बच्चों को चिप्स-पापड़ जैसी चीजों से दूर ही कर दिया है। ज़रा सोचकर देखिए, वो दिन भी क्या दिन होते होंगे, जब मम्मी-पापा, भाई-बहन पड़ोसी सब मिलकर पापड़-चिप्स बनाते थे और बनाते हुए जमकर एक-दूसरे के बिगड़ते हुए पापड़ों का मजाक बनाते थे।
इससे न केवल आराम से होली की तैयारी होती थी बल्कि घर में भी खुशियों का माहौल बनता था। खैर अब ना तो हवाओं में वो बसंती बयार बची है और ना ही फिजा में वो प्यार।
बिजी शेड्यूल के चलते लोगों में जहां दूरियां सी बन गई हैं, वहीं मजबूरी में लोगों को केमिकल वाले बाजारू पापड़ भी खाने पड़ रहे हैं।