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Krishna Bhakt Ki Kahani: कृष्ण के मनमोहक मुद्राओं और नैननक्श का बखान करने वाली कौन थी उत्तरा, किसने बनाई थी पहली बार कृष्ण की प्रतिमाएं

Krishna Bhakt Uttara Story: उत्तरा अर्जुन के बेटे अभिमन्यु की पत्नी और श्री कृष्ण की परम भक्त थीं। मान्यता है कि उत्तरा ने ही सबसे पहले श्रीकृष्ण के रंग-रूप की व्याख्या की थी।

Shreya
Written By Shreya
Published on: 20 Feb 2025 12:03 PM IST
Krishnas devotee Uttara
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Krishna's devotee Uttara (Pic Credit- Social Media)

Krishna Bhakt Uttara Kaun Thi: हिन्दू धर्म में वैसे तो 33 कोटि देवी-देवता हैं। जिनमें श्रीकृष्ण एक ऐसा चरित्र हैं जिनकी उपासना मंदिरों से लेकर संगीत, नृत्य और शिल्प कला के क्षेत्र मे बढ़चढ़ कर की जाती है। जिनकी मनमोहक मुद्राओं का बखान सुनकर कोई भी भावविभोर हुए बिना नहीं रह सकता। लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर श्री कृष्ण की छवियों को पहली बार किसने वास्तविक रूप में धरातल पर उतारा। उन्हें कागज और रंगों से लेकर पत्थरों पर किसने उनकी मुद्राओं को सबके समक्ष लाने का काम किया। आइये जानते हैं इस बारे में-

गुप्त काल से मिलते हैं प्रमाण

प्रमाणिक तौर पर श्री कृष्ण की सबसे प्राचीन चित्रकारी का श्रेय प्राचीन भारतीय कलाकारों को जाता है, लेकिन इसका सटीक प्रथम रचनाकार निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। हालांकि, ऐतिहासिक रूप से, गुप्त काल (4वीं-6वीं शताब्दी ईस्वी) में भगवान कृष्ण की मूर्तियाँ और चित्र उकेरे जाने लगे थे।

अगर बात मध्यकालीन चित्रकारी की करें, तो राजस्थान और पहाड़ी चित्रशैली (कांगड़ा, बसोहली, मेवाड़, बूंदी, किशनगढ़) में कृष्ण की सुंदरतम पेंटिंग्स बनीं। विशेष रूप से, 17वीं-18वीं शताब्दी में निहालचंद (किशनगढ़ शैली) ने श्रीनाथजी (कृष्ण) की अद्भुत चित्रकारी की थी, जो आज भी प्रसिद्ध हैं। इसके अलावा, अजंता की गुफाओं (5वीं-6वीं शताब्दी) और मुगल व राजपूत काल की मिनिएचर पेंटिंग्स में भी कृष्ण लीला से जुड़ी कई चित्रकृतियाँ पाई गई हैं।

उत्तरा को जाता है कृष्ण की छवियों के बखान का श्रेय

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मान्यता है कि इस समस्त ब्रह्मांड में सबसे पहले उत्तरा ने लिखा था। अपनी विराट छवि कैसी थी? वो कैसे दिखते थे? उनका रंग रूप कैसा था? उनकी मुस्कराहट कैसी थी? आदि इन सभी के बारे में सबसे पहले श्री कृष्ण के परम मित्र अर्जुन के बेटे अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने वर्णित किया था। महाभारत में यह उल्लेख मिलता है कि उत्तरा श्री कृष्ण की परम भक्त थीं और इसी कारण से जब उत्तरा पर संकट आया था तो श्री कृष्ण स्वयं उनकी रक्षा हेतु अश्वत्थामा से युद्ध करने निकल पड़े थे। इसी कारण से उत्तरा श्री कृष्ण को और भी मानती थीं।

यह भी उल्लेख मिलता कि जब अभिमन्यू के बेटे को उत्तरा ने जन्म दिया था तब उसके बाद उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी। जो कि सिर्फ भगवान श्री कृष्ण पर आधारित थी। उस पुस्तक में सिर्फ कृष्ण के रूप के बारे में लिखा गया था। महाभारत और पुराणों में कई घटनाएँ इस बात की पुष्टि करती हैं कि उत्तरा को श्रीकृष्ण पर अटूट श्रद्धा थी।

उत्तरा की कृष्ण भक्ति के प्रमाण

श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में परीक्षित की रक्षा की। महाभारत के युद्ध के बाद, जब अश्वत्थामा ने पांडव वंश को समाप्त करने के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक (परीक्षित) पर ब्रह्मास्त्र चला दिया, तब उत्तरा घबराकर श्रीकृष्ण की शरण में गई।

उन्होंने कृष्ण से प्रार्थना की-

“हे वासुदेव! यदि मैंने आपके चरणों की सच्ची भक्ति की है, तो मेरी संतान को बचाइए।“

श्रीकृष्ण ने अपने दिव्य सुदर्शन चक्र से पांडवों के आखिरी वंशज परीक्षित की रक्षा की और उन्हें मृत्यु से बचा लिया।

उत्तरा का श्रीकृष्ण पर पूर्ण विश्वास

जब महाभारत युद्ध समाप्त हुआ और यदुवंश के विनाश के बाद पांडवों ने संन्यास लेने का निश्चय किया, तब उत्तरा ने श्रीकृष्ण को ही अपने परिवार का अंतिम सहारा माना।

वह हमेशा श्रीकृष्ण के नाम का जप करती थी और अपने पुत्र परीक्षित को भी कृष्ण भक्ति की शिक्षा दी।

भागवत पुराण में उत्तरा का उल्लेख

श्रीमद्भागवत महापुराण में कहा गया है कि जब परीक्षित को तक्षक नाग ने डसने का श्राप मिला, तब उत्तरा ने फिर से श्रीकृष्ण को याद किया और उनकी कृपा की प्रार्थना की। उत्तरा केवल श्रीकृष्ण की भक्त ही नहीं, बल्कि उनकी कृपा प्राप्त करने वालों में से एक थीं। उन्होंने अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में कृष्ण की शरण ली और हमेशा उनकी भक्ति में लीन रहीं।

श्रीकृष्ण की पहली चित्रकारी से संबंधित ये भी है पौराणिक मान्यता

श्रीकृष्ण की पहली चित्रकारी से संबंधित जो पौराणिक मान्यता मिलती है, उसके अनुसार, उत्तरा (अभिमन्यु की पत्नी और परीक्षित की माता) ने सबसे पहले संसार को भगवान कृष्ण का वास्तविक स्वरूप बताया था। इसके बाद, वज्रनाभ (श्रीकृष्ण के प्रपौत्र और परीक्षित के पुत्र) ने उनके बताए स्वरूप के आधार पर श्रीकृष्ण की मूर्तियां और चित्र बनवाए। वज्रनाभ ने तीन प्रमुख मूर्तियां बनवाई थीं, जिन्हें श्रीकृष्ण की सबसे प्रामाणिक प्रतिमाएँ माना जाता हैः-

श्रीनाथजी (नाथद्वारा, राजस्थान) कृष्ण के बालरूप की मूर्ति।

मदनमोहनजी (करौली, राजस्थान) युवावस्था के कृष्ण।

गोविंददेवजी (वृंदावन, उत्तर प्रदेश) - किशोर रूप के कृष्ण।

इसी आधार पर आगे चलकर विभिन्न चित्रशैलियों में श्रीकृष्ण की पेंटिंग्स बनाई गईं। विशेष रूप से, राजस्थानी, पहाड़ी, और मुगल मिनिएचर चित्रकला में कृष्ण के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाया गया।

कई रहस्यों और चमत्कारों से जुड़ी हैं कृष्ण की प्रतिमाएं

श्रीकृष्ण की कई रहस्यमय और प्राचीन प्रतिमाएं भारत में विराजमान हैं, जिनमें से कुछ को स्वयं वज्रनाभ ने स्थापित किया था। ये प्रतिमाएँ दिव्य और चमत्कारी मानी जाती हैं-

1. श्रीनाथजी (नाथद्वारा, राजस्थान)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह मूर्ति गोवर्धन पर्वत से प्रकट हुई मानी जाती है। 17वीं शताब्दी में जब औरंगजेब ने मंदिरों पर आक्रमण किया, तो इसे मेवाड़ के नाथद्वारा में स्थापित किया गया। इसे कृष्ण के बालरूप का स्वरूप माना जाता है।

2. मदन मोहनजी (करौली, राजस्थान)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह प्रतिमा वज्रनाभ द्वारा बनाई गई तीन प्रमुख मूर्तियों में से एक मानी जाती है। इसे श्रीकृष्ण के युवा रूप का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। मूल रूप से वृंदावन में विराजमान थी, लेकिन मुगल आक्रमण के दौरान इसे करौली स्थानांतरित कर दिया गया।

3. गोविंद देवजी (जयपुर, राजस्थान)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह प्रतिमा वृंदावन में प्रकट हुई और बाद में जयपुर के सिटी पैलेस में लाई गई। इसे श्रीकृष्ण के किशोर रूप का स्वरूप माना जाता है। प्रतिदिन आरती के समय इसका स्वरूप बदलता है, जो इसे रहस्यमय बनाता है।

4. द्वारकाधीश (द्वारका, गुजरात)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह प्रतिमा भगवान कृष्ण के राजसी स्वरूप को दर्शाती है। कहा जाता है कि यह मूर्ति स्वयं श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने स्थापित की थी। इस मूर्ति का स्वरूप आज भी रहस्य और चमत्कारों से घिरा हुआ है।

5. बालकृष्ण (उडुपी, कर्नाटक)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह प्रतिमा द्वारका से समुद्र के रास्ते उडुपी पहुंची थी। इसे संत माधवाचार्य ने पुनः प्रतिष्ठित किया। यह रहस्यमय है क्योंकि यह सिर्फ दर्पण में देखने पर ही स्पष्ट दिखाई देती है।

6. रणछोड़जी (दाकोर, गुजरात)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह मूर्ति वृंदावन से दाकोर आई थी।कहा जाता है कि स्वयं श्रीकृष्ण ने अपने भक्त को दर्शन देने के लिए मूर्ति स्थानांतरित कर दी। इसका नाम “रणछोड़“ इसलिए पड़ा क्योंकि श्रीकृष्ण मथुरा से द्वारका चले गए थे।

7. जगन्नाथ (पुरी, ओडिशा)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की ये प्रतिमाएँ रहस्यमय मानी जाती हैं। हर 12 से 19 साल में इनका “नवकलेवर“ (नवीन रूप) बदल दिया जाता है, लेकिन इसका तरीका गोपनीय रखा जाता है। कहते हैं कि मूर्ति के अंदर भगवान का दिव्य “नीलमणि“ है।

8. गीता मंदिर (सोमनाथ, गुजरात)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह मंदिर श्रीकृष्ण के अंतिम समय और निर्वाण से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि यहाँ एक रहस्यमयी पत्थर रखा है, जिस पर श्रीकृष्ण के पैर के निशान हैं। इन सभी प्रतिमाओं का भारत के आध्यात्मिक इतिहास में विशेष स्थान है। ये प्रतिमाएँ केवल श्रद्धा का विषय नहीं, बल्कि कई रहस्यों और चमत्कारों से भी जुड़ी हुई हैं।



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