TRENDING TAGS :
दो आत्माओं का अटूट बंधन है 'विवाह'
विवाह स्त्री और पुरुष के बीच यौन सुख और संतानोत्पत्ति के लिए किया गया सम्णैता नहीं है। विवाह मुनष्य जीवन का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बिनास्त्री या पुरुष अधूरा होता है।
दुर्गेश पार्थसारथी
विवाह स्त्री और पुरुष के बीच यौन सुख और संतानोत्पत्ति के लिए किया गया सम्णैता नहीं है। विवाह मुनष्य जीवन का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है जिसके बिनास्त्री या पुरुष अधूरा होता है।
हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक अति महत्वपूर्ण संस्कार है ''विववाह''। हिंदू विवाह एक संविदा या अस्थाई बंधन नहीं है, अपितु एक धार्मिक संस्कार है जो प्रत्येक हिंदू के लिए आवश्यक है। विवाह के पश्चात मनुष्य जीवन विस्तृत क्षेत्र में पदार्पण करता है। परिवार व वंश की वृद्धि इसी के माध्यम से होती है। यह वह गुढ़ संबंध है जिसमें पुरुष और स्त्री को संतान उत्पन्न करने की सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है।
ये भी पढ़ें:बहुत खूबसूरत ये साध्वी: बड़ी-बड़ी एक्ट्रेस हैं इनके आगे फेल, जानें इनके बारे में
हिंदू सस्कार का मुख्य अंग है विवाह
हिंदू धर्मशास्त्रों में विवाह को धार्मिक संस्कार मानते हुए इसे स्वर्ग का द्वार कहा गया है। इसमें धर्म का प्रधान स्थान होता है। विवाह हिंदू संस्कार का मुख्य अंग है। जिस तरह से शरीर की संरचना को सीधा रखने के लिए रीढ़ की की आवश्यकता होती है। ठीक उसी तरह मानव समजा को सही ढंग से संचालित करने के लिए विवाह की आवश्यकता होती है।
गृहस्थ जीवन का मूल है विवाह
यज्ञ, होम, वैदिकमंत्रों का पाठ, देवताओं का आह्वान, माता-पिता की रजामंदी ओर संगे-संबंधियों की उपस्थिति के मध्य वैवाहिक क्रिया सम्पन्न की जाती है। इस क्रिया से जहां दो अंजाने व्यक्तियों का जन्म-जन्मंतर का मिलन होता है। दो जिस्म एक जान होते हैं और वे जीवन पर्यन्त सुख-दुख में एक दूसरे का साथ निभाने का संकल्प लेते हैं और जीवन रूपी रथ के दो पहिए बन कर अपनी सामाजिक और पारिवारिक दायित्वों का सफलता पूर्वक संचालन करते हैं। हिंदू समाज में पत्नी के बिना कोई भी धार्मिक कार्य सम्पन्न नहीं हो पता। इसलिए वह धर्मपत्नी भी कही जाती है। अत: विवाह गृहस्थ जीवन का मूल है।
पत्नी के बिना अधूरा माना जाता है धार्मिक कार्य
विवाह एक पवित्र यज्ञ है। विवाह न करना अपनी जिम्मेदारियों से पलायन करना है। जो व्यक्ति अविववाहित है उसे धर्म ग्रंथों में अपूर्ण कहा गया है। ववह किसी प्रकार का धार्मिक कार्य संपन्न नहीं कर सकता-
ये भी पढ़ें:लड़कों के लिए जरुरी ज्ञान: अगर नहीं है दाढ़ी तो गर्लफ्रेंड हो जाएगी बहुत दूर
'' यपज्ञोस एवर्यो अपलोक ।''
अर्थात पत्नी के बिना व्यक्ति यज्ञ का संपादन का अधिकारी नहीं है।
राम को बनवानी पड़ी थी सीता की प्रतिमा
रामायण के अध्ययन से ज्ञात होता है कि पत्नी के बिना मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को तत्कालीन पुरोहितों ने अश्वमेघ यज्ञ करने से मना कर दिया था। परित्यक्तता पत्नी की कमी पूरी करने के लिए भगवान श्री राम को सीता की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करनी पड़ी थी। तब जा कर कहीं अश्वमेघ यज्ञ संपन्न हो पाया था।
पति का अधा अंग है पत्नी
विवाह की पवित्रता का आंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजा जनक ने पाणिग्रहण के समय सीता का हाथ राम के हाथ में देते हुए कहा था-'' इदम् सीमयम धर्म चरितौ ।''
वहीं महा भारत में पत्नी को पुरुष का आधा भाग यानि अर्धांगिनी और सच्चा मित्र कहा गया है।
- ''अधभार्यामनुव्यवस्थ भार्या श्रेष्ठतम सखा ''
सप्तपदी भी सीखाती है साथ रहना
पाणिग्रहण के बाद सप्तपदी के समय धान का लावा वर-बधु के हाथ पर डालते समय पोरोि कहता है - जिस प्रकार भड़भूजे की भट्टी में पर भुनने के बाद भी धान की भूसी लावे को छोड़ती नहीं, ठीक उसी प्रकार पति व पत्नी को विपत्ति के समय एक दूसरे का हाथ थामें परिस्थितियों का धैर्य धारण कर सामना करना चाि ए।
महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह
विवाह के संबंध में अथर्ववेद की ऋचा में कहा गया है कि देवता भी पत्नी को प्राप्त करें थे-
'देवा अग्रेन्यपधंत पत्नी:'
दो स्थूल शरीरों का नहीं बल्कि दो आत्माओं के पवित्र बंध को विवाह कहते हैं। अत: यह एक महत्वपूर्ण संस्कार है। पति-पत्नी कालांतर में माता-पिता, दादा-दादी और नाना-नानी के रूप में अग्रसारित होते हैं और सभ्य एवं सुसंस्कृत समाज के निर्माण में अपना सक्रिय सहयोग देते हैं।
पितृ ऋण चुकाने के लिए विवाह जरूरी
धर्म सूत्रों में पत्नी को धर्म, काम और मोक्ष का मुख्य कारण बताया गया है। पत्नी के अभाव में न तो पितृ ऋण को चुकाया जा सकता है और न ही किसी तरह के धार्मिक कर्तव्यों को पूरा किया जा सकता है। अविवाहित व्यक्ति का परिवार और समाज में कोई स्थान नहीं होता। साथ ही साथ उसे हमेंशा शंका की दृष्टि से देखा जता है।
विवाह दो आत्माओं का सुंदर मिलन है
विवाह मुख्यत: जीवन के लंबे सफर में दो आत्माओं का अटूट सम्मिलन है। हजहां आत्माओं का यह सुंदर मिलन नहीं वह सफल विवाह भी नहीं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैकाइवर एपं पेज ने कहा है- ' हिंदू धर्म में विवाह मनुष्य की सामाजिक स्थितियों का निर्धारण करता है।''
श्री राम चरित मानस के 'बाल कांड' की एक कथा के अनुसार जनकपुर में सीता स्वयंवर के समय आमंत्रित राजा धनुष तोड़ने में असफल रहे तो सीता के विवाह को लेकर चिंतित जनक कहते हैं-
ये भी पढ़ें:आखिर क्या होता है ‘जिंदा कॉन्क्रीट’, जो भर देता है खुद दीवारें
'' तजहु आसि निज-निज गृह जाहूं ।
लिखा न विधि वैदेही विवाहू ।।''
इससे पता चलता है कि भारतीय समाज में विवाह का कितना महत्वपूर्ण स्थान है।
आत्मिक सौंदर्य को दें महत्व
मर्यादित भारतीय समाज में पाश्चात्य संस्कृति का धब्बेदार लबादा ओढ़ कर चलने के कारण ही आज विवाह संस्कार विकार बनता जा रहा है। आंतरिक गुणों की अनदेखी कर युवा पीढ़ी बाहरी रंग-रूप में उलझ कर रह गया है। यह झुकाव जीवन के लिए अनिष्टकारी है।