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Motivational Story: नई साइकिल दिलवा दो ना पापा
Motivational Story in Hindi: मोहन कि बेटी आराध्या उससे शिकायत करते कह रही थी । मोहन मन मे सोच रहा था बेटी आराध्या कह तो पिछले महिने से रही थी कि नई साइकिल दिलवा दो।
Motivational : बार बार चेन उतर जाती है ओर इस पुरानी वाली साइकिल के ब्रेक भी कम लगते हैं। मेरी सभी सहेलियो के पास नई साइकिल है।
उन्हें भी मेरी वजह से अकसर परेशानी होती है । टयुशन और स्कूल जाते आते वक्त।
मोहन कि बेटी आराध्या उससे शिकायत करते कह रही थी ।.
मोहन मन मे सोच रहा था बेटी आराध्या कह तो पिछले महिने से रही थी कि नई साइकिल दिलवा दो।
वैसे बात भी वाजिव थी । लडकी जात का युं रास्ते मे साइकिल खराब होना ठीक भी तो नही।
मगर वो करे भी तो कया प्राइवेट नौकरी मे घर खर्च चलाना कहा आसान है।
ऊपर से मकान किराया। आराध्या का स्कूल खर्च।टयुशन फीस। सबमें तनखाह यूं लुट जाती है कि आखिरी तारीखों मे कितनी बार उसे आँफिस आने जाने को पदयात्रा करनी पडती है।
खैर उसने बेटी आराध्या के भविष्य के लिए एक गुल्लक बनाई थी सो उसे तोड लिया। जमा पैसे दो हजार निकले मगर नई साइकिल तो लगभग साढे तीन हजार से ऊपर आएगी तो सोचा चलो अभी पुरानीवाली ठीक करवा देता हूं ।.अगले महिने नई के बारे मे देखेगे।
साईकिल ठीक करवाने वाले के यहां मोहन बेटी आराध्या संग पहुंचा ।सब परेशानी देखकर उसने खर्चा पचास रू बताया।
साइकिल जब ठीक हो रही थी तब ही वहां एक आदमी अपने बेटे संग आया और साइकिल ठीक करनेवाले से बोला-भैया कुछ कम करके दे दो ।
साइकिल वाला -तीन हजार आखिरी दाम लगेगा इसमे मुझे कोई बचत नही है वरना मैं आपको जाने नही देता। साइकिल वाले का जबाब सुनकर वो आदमी और उसका बेटा उदास हो गए । तभी लडका बोला-अंकल कोई पुरानी नही मिल सकती क्या?
साइकिल वाला- नहीं।.यहां केवल नई मिलती है या पुरानी ठीक होती है ।,तब तक मोहन वाली साइकिल ठीक हो चुकी थी । मोहन ने साईकिल आराध्या को चलाने को दी और कहा चक्कर लगाकर देख लो और साइकिल वाले को पचास रु दे दिए । वो आदमी ओर लडका अभी भी साइकिल वाले से मन मुनहार कर रहे थे । तो मोहन ने वजह पूछी तो पता चला वो पिता पुत्र गरीब परिवार से है । बेटे को कालेज मे अपनी अच्छी पढाई के चलते दाखिला मिल गया मगर कालेज घर से 25 किलोमीटर कि दूरी पर है । किराया अधिक होने कि वजह से वह साइकिल लेना चाहते हैं। क्योंकि रोज किराया भरकर जाना उनकी मासिक स्थिति को बिगड देगा । नई साइकिल तीन हजार कि है जबकि उनके पास दो हजार इकठठा हुए है वो भी मुशकिल से।
तबतक आराध्या साइकिल का चककर लगाकर आ गई और बोली पापा एकदम बढिया बना दी अंकलजी ने।
मोहन ने कुछ सोचकर उस आदमी और लडके से कहा-ये साइकिल लोगे।
दोनो बाप बेटे कि आँखो मे चमक आ गई लडके ने हांमी भरी और चलाकर देखने लगा । लडके कि सहमति पर वो आदमी बोला -पर मैं इसके बारह सौ तक दे पाउगा। मोहन बोला।.नही मुझे केवल हजार रु चाहिए।
ये सुनकर आदमी ओर लडका खुशी से झुम उठे । और हजार रुपये देकर साइकिल लेकर चले गए । मोहन ने दो हजार मिलाकर आराध्या को नई साइकिल लेकर दे दी।
आराध्या नई साइकिल पाकर खुश थी ।और मोहन बेटी आराध्या को खुश देखकर।
रास्ते मे वापस घर जाते वक्त आराध्या ने पापा मोहन से पूछा- पापा जब अपनी पुरानी साइकिल ठीक हो गई थी फिर आपने नई साइकिल क्यों ली।
मोहन हंसा ओर बोला - खुशी के लिए।
इस एक साईकिल कि वजह से चार लोगों को खुशी मिली तुम्हें, मुझे और उन पिता पुत्र को और जानती हो सबसे अचछी बात ये रही किसी को चादर बड़ी नही करनी पड़ी।
मतलब कोई खींचतान नहीं करनी पडी सबका काम अपनी सीमित चादर से हो गया।