Premanand ji Maharaj: छोटी सी उम्र में अध्यात्म को अपनाने वाले प्रेमानंद महाराज जी ने यहाँ तक ली है शिक्षा

Premanand ji Maharaj: वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Maharaj News) अपनी मोटिवेशनल बातों से सभी को काफी ज़्यादा प्रभावित करते हैं। वहीँ आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि प्रेमानंद महाराज कितने पढ़े लिखे हैं?

Shweta Shrivastava
Published on: 8 Aug 2023 2:15 AM GMT
Premanand ji Maharaj: छोटी सी उम्र में अध्यात्म को अपनाने वाले प्रेमानंद महाराज जी ने यहाँ तक ली है शिक्षा
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Premanand ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand ji Maharaj: वृंदावन वाले प्रेमानंद जी महाराज अपनी मोटिवेशनल बातों से सभी को काफी ज़्यादा प्रभावित करते हैं। वो राधारानी के परम भक्त हैं। महाराज जी के दर्शन करने न सिर्फ देश बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। प्रेमानंद महाराज जी को 17 साल पहले डॉक्टर्स ने बता दिया था कि उनकी दोनों किडनी फैल हो चुकी हैं। उन्होंने बचपन से ही अध्यात्म को अपना लिया था। वहीँ आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि प्रेमानंद महाराज कितने पढ़े लिखे हैं?

प्रेमानंद महाराज जी कितने पढ़े लिखे हैं

प्रेमानंद महाराज (premanand ji maharaj) अपने भक्तों को सदमार्ग पर चलने और प्रभु नाम जपने की सलाह देते हैं। वहीँ उन्हें अपने बचपन में ही भक्तिभाव और भगवान् के साथ जुड़ाव का अनुभव हुआ था। उनका जन्म अखरी गांव, सरसोल ब्लॉक, कानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। वो एक साधारण ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे साथ ही उनका बचपन भी काफी साधारण रहा था। उनके पिता काफी धार्मिल प्रवृति के थे। वो खेती के साथ प्रभु भक्ति में भी पूरी तरह लीन रहते थे। वहीँ आपको बता दें कि प्रेमानंद जी महाराज पांचवीं कक्षा में थे जब उनका झुकाव अध्यात्म की ओर हुआ। इसके बाद जब वो कक्षा 9 में आये तो उन्होंने मन ही मन ये ठान लिया था कि वो एक आध्यात्मिक जीवन ही अपनाएंगे। इसके लिए उन्होंने मोह माया को त्यागने का भी दिल बना लिया था।

जब उन्होंने अध्यात्म का रास्ता चुनने का मन बना लिया तो उन्होंने इस बात को सबसे पहले अपनी माँ को बताया। इसके बाद 13 साल की उम्र में उन्होंने अपना घर त्याग दिया। घर से निकलने के बाद महाराज जी सन्यासी रूप में गंगा के घाट पर बैठे रहते। उन्होंने एक माँ का दमन छोड़ कर दूसरी माँ यानि गंगा माँ के पास आकर पनाह ली जिसके बाद प्रेमानंद जी गंगा माँ को अपनी दूसरे माँ मानने लगे। वो हरिद्वार में गंगा किनारे घंटो बैठे रहते। इस बीच वो घाट पर बैठकर 15 से 20 मिनट ही बैठते और अगर इसमें उन्हें कोई खाना दे देता तो ठीक नहीं तो वो उस दिन उपवास रख लेते थे।

Shweta Shrivastava

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