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आनन्दमय और शांतिपूर्ण जीवन पाने का विज्ञान
अध्यात्म को अगर सही रूप में देखा जाए तो यह सम्पूर्ण और संतुलित जीवन जीने का एक सार्वभौमिक तरीका है।
संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
अध्यात्म को अगर सही रूप में देखा जाए तो यह सम्पूर्ण और संतुलित जीवन जीने का एक सार्वभौमिक तरीका है। आज के युग में जबकि हमने बहुत अधिक वैज्ञानिक और भौतिक उन्नति कर ली है, हमारे सामने व्यक्तिगत और सामाजिक तौर पर यह चुनौती है कि हम अध्यात्म के क्षेत्र में भी उसी तरह अद्भुत रूप से तरक्की करें।
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मनुष्य की यह प्रवृत्ति है कि वह चीज़ों को जानना और समझना चाहता है। वैज्ञानिक इस कार्य में लगे हैं लेकिन जिन साधनों का प्रयोग वे करते हैं वे भौतिक और बौद्धिक रूप से सीमित हैं। सदियों से संत और सूफी, जीवन और मृत्यु के रहस्य की खोज करते रहे हैं और वे सब इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि हम इस रहस्य को आध्यात्मिक स्तर पर ही जान सकते हैं।
आध्यात्मिक यात्रा उन रूहानी मण्डलों का अनुभव करना है जो कि बुद्धि और मन से परे हैं और यह सब हमें रहस्यमय लगता है। यही कारण है कि अध्यात्म को रहस्यवाद भी कहा जाता है।
अध्यात्म एक ऐसा विज्ञान है जो हमारे जीवन में प्रेम, शांति, खुषी और विवेक की शक्ति प्रदान करता है। यह जीवन को जीने का एक व्यवहारिक तरीका है जो कि हमारे आन्तरिक जीवन को समृद्ध बनाने के साथ-साथ, हमारे आपसी सम्बन्धों को भी बेहतर बनाता है। अध्यात्म का मूल सिद्धान्त यह है कि हममें से प्रत्येक वास्तव में एक आत्मा है जो कि थोड़े समय के लिए इस भौतिक शरीर में आई है, यह समय बीस, पचास, साठ, अस्सी या सौ वर्ष का हो सकता है लेकिन मृत्यु के बाद हर एक को इस दुनिया से जाना है।
इस संसार में आने से पहले हमारी आत्मा कहाँ थी। यहाँ से जाने के बाद यह कहाँ जाएगी। इस संसार का और इस जीवन का उद्देश्य क्या है। मनुष्य के जीवन को समझने के लिए ये कुछ मूल सवाल हैं।
संत और सूफी ऐसे जाग्रत पुरुष हैं जिन्होंने इस विषय की खोज की और इन प्रष्नों को हल किया। वे बताते हैं कि हमारे जीवन का उद्देष्य अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा से करना है और इस उद्देष्य को पाने के लिए वे हमें एक तरीका बताते हैं। प्रभु से मिलाप के लिए सदियों से अनेक विधियाँ सिखाई जाती रही हैं लेकिन आज के युग में हमें एक ऐसा तरीका चाहिए जो आधुनिक जीवन की जरूरतों के अनुरूप हो। अध्यात्म का यह रूप हमें अपने जीवन और दुनिया के अन्य लोगों के जीवन को सुधारने के अनगिनत अवसर प्रदान करता है।
आत्मा की यात्रा की शुरूआत प्रभु की ज्योति और अनहद शब्द से सम्पर्क करने पर आरम्भ होती है। ज्योति और शब्द की धारा प्रभु से आरम्भ होती है और वापस प्रभु की ओर जाती है। हम इस धारा को तीसरी आँख अथवा षिवनेत्र पर पकड़ सकते हैं। यह शरीर में स्थित आत्मा तथा ज्योति व शब्द की धारा का सम्पर्क बिन्दु है। यदि हम अपने ध्यान को इस बिन्दु पर एकाग्र करें तो हम दिव्य मण्डलों में उड़ान भर सकते हैं। यह धारा अन्ततः हमें हमारे स्रोत, प्रभु तक वापस ले जाएगी।
ध्यान का यह तरीका एकदम सहज और सरल है। जब हम अन्तर में ध्यान टिकाते हैं तो हम देहाभास से ऊपर उठकर अपने अन्तर में स्थित दिव्य मण्डलों में पहुँच जाते हैं। लगातार अभ्यास करने पर हमें यह विष्वास हो जाता है कि हम ज्योति और शब्द से जुड़ सकते हैं, इस भौतिक शरीर से परे भी कोई जीवन है और दिव्य चेतनता से भरपूर अनेक रूहानी देष हैं। अन्तर के रहस्यों की खोज हमें स्वयं ही करनी है। जो लोग रोज़ाना अभ्यास करते हैं उन्होंने इस सच्चाई को सिद्ध किया है कि इस दुनिया से परे भी कोई दुनिया है।
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ज्योति व श्रुति के अभ्यास द्वारा हम प्रेम, शांति, सौहार्द और आनन्द को पा लेते हैं जिन्हें हम तीव्रता से तलाश कर रहे हैं। ऐसा करके हम उन लोगों के समूह का हिस्सा बन जाते हैं जो संसार मे शांति और एकता स्थापित करने की ओर कार्यरत हैं।
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