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अतीत के झरोखों से: महिला प्रत्याशी के उतरते ही, अमेठी का चुनाव बन जाता है दिलचस्प

प्रदेश की वीवीआईपी लोकसभा सीट अमेठी के इतिहास में 1984 के चुनाव का वो पहला मौका था यहां से पहली बार संजय गांधी की मौत के बाद गांधी परिवार के नुमाइंदे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के प्रतिद्वंदी के रुप में उनकी भयो मेनका गांधी (छोटे भाई संजय गांधी की पत्नी) मुकाबले पर थी।

SK Gautam
Published on: 10 April 2019 4:15 PM IST
अतीत के झरोखों से: महिला प्रत्याशी के उतरते ही, अमेठी का चुनाव बन जाता है दिलचस्प
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असगर नकवी

अमेठी: ये अमेठी के इतिहास का पहला मौका नहीं है जब देश की निगाह यहां के चुनावी नतीजों पर है। यहां जब-जब महिला उम्मीदवार मैदान में उतरी तब-तब अमेठी के मुकाबले पर देश की निगाह रही। अब कांग्रेस अध्यक्ष एवं अमेठी सांसद राहुल गांधी के मुकाबले पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी हैं, और इस चुनाव में कांटे की टक्कर है। इसे वक़्त रहते भांप कर राहुल गांधी ने अमेठी के साथ- साथ केरल के वायनाड से भी पर्चा भर दिया। इसलिए अब देश की हर निगाह टकटकी लगाए अमेठी पर बैठी है।

पहली बार 1984 में मेनका गांधी ने पूर्व पीएम स्व. राजीव गांधी के खिलाफ ठोकी थी ताल

-डेढ़ दशक बाद सोनिया गांधी के आने पर चर्चा का केंद्र थी अमेठी

-2014 के मोदी लहर में खूब चला था स्मृति का ग्लैमर, बूथ-बूथ घूमे थे राहुल

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गांधी परिवार के दो करीबी सदस्य हुए आमने-सामने, मेनका का बनाया ये कीर्तिमान आजतक बरकरार

प्रदेश की वीवीआईपी लोकसभा सीट अमेठी के इतिहास में 1984 के चुनाव का वो पहला मौका था यहां से पहली बार संजय गांधी की मौत के बाद गांधी परिवार के नुमाइंदे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के प्रतिद्वंदी के रुप में उनकी भयो मेनका गांधी (छोटे भाई संजय गांधी की पत्नी) मुकाबले पर थी। गांधी परिवार के गढ़ का ये एक ऐसा पहला और आख़री कीर्तिमान बना के गांधी परिवार के दो करीबी सदस्य आमने-सामने हुए। जो आजतक बरकरार है।

निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मेनका लड़ी चुनाव, नहीं बचा सकी जमानत

दरअसल अमेठी में मेनका गांधी के पति संजय गांधी का काफी दबदबा था। बगैर किसी पद पर रहते हुए संजय गांधी ने इलाके को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का उन्होंने बड़ा काम किया था। जिसके परिणाम में 1980 के चुनाव में वो अमेठी से सांसद चुने गए थे। लेकिन इसी साल एक विमान हादसे में उनकी मृत्यु हो गई। तब संजय गांधी के बड़े भाई राजीव गांधी 1981 के उपचुनाव में पहली बार सांसद चुने गए। लेकिन 1984 का चुनाव जब आया तो संजय की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में ताल ठोक बैठी। उन्हें ऐसा लग रहा था की पति की मौत का वो लाभ पा जायेंगी । पर अमेठी की जनता चालाक थी, वो ऐसे की इस चुनाव से पहले इंदिरा गांधी की मौत हो चुकी थी और उनकी जगह राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन चुके थे।

यहां की जनता ने सही वक़्त पर फैसला किया और राजीव गांधी को फिर से प्रधानमंत्री के रुप में देखने के लिए 3 लाख 65 हजार 41 वोट दे डालें। वहीं मेनका गांधी अपनी जमानत तक नहीं बचा सकी, उन्हें मात्र 50 हजार 163 वोट ही मिले थे। बस इस बात से खफा मेनका फिर तब से अमेठी नहीं आई। और यही पहला मौका था जब मेनका के रूप में महिला उम्मीदवार के उतरने से हर आंख अमेठी पर गड़ी थी।

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सोनिया के मुकाबले पर था अमेठी रियासत का नुमाइंदा

इसके ठीक डेढ़ दशक बाद 1999 का चुनाव भी राजनैतिक दृष्टिकोण से काफी अहम हो गया था। राजीव गांधी की हत्या के बाद उस दुःख के पहाड़ से ऊबर कर लंबे अरसे के बाद पहली बार उनकी पत्नी सोनिया गांधी ने राजनीति में इंट्री की और अमेठी से चुनावी मैदान में आ गई। सामने बीजेपी के टिकट पर राजा संजय सिंह थे। संजय सिंह अमेठी रियासत का अहम चेहरा थे और रामनगर स्थित भूपति भवन के नाम से मशहूर उनकी हवेली से कभी अमेठी में कांग्रेस की रूप रेखा तैयार होती थी।

लेकिन 1998 से संजय सिंह मानो कांग्रेस के खिलाफ बगावत पर उतरे हुए थे। 1998 के चुनाव में उन्होंने राजीव गांधी के करीबी कैप्टन सतीश शर्मा को 23 हजार 290 वोट से शिकस्त दे दिया था और 1999 में वो सोनिया गांधी के सामने थे। ऐसे में सोनिया को लगा की जीत आसान नहीं है तो उन्होंने बेल्लारी से भी पर्चा भर दिया था। ये बात दीगर है कि सोनिया दोनो स्थानो से जीत दर्ज कराने में कामयाब रही। उन्होंने 3 लाख वोटों से संजय सिंह को चित किया था। इस दफा भी हर कोई अमेठी के चुनाव को लेकर चर्चा करता था।

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चुनाव हारी स्मृति, नहीं दोहराई मेनका वाली गलती, इस चुनाव में मिल रहा फायदा

तीसरा मौका पांच वर्ष पूर्व 2014 का था। जब अमेठी से दो बार बड़ी-बड़ी जीत दर्ज कराने के बाद तीसरी जीत हासिल करने के लिए राहुल गांधी को चुनाव के दिन बूथ-बूथ जाना पड़ा था। इसके पहले ऐसी नौबत कभी नहीं आई थी। हुआ ये था कि 2014 में मोदी की सोनामी का तूफान पूरे देश में आ चुका था। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की करीबियो में शुमार स्मृति ईरानी को यहां से बीजेपी ने टिकट दे दिया।

एक महीने से कम समय में मोदी लहर और अपने ग्लैमर में स्मृति ने वो जादू चला के 2009 का चुनाव 3 लाख 70 हजार 198 से जीतने वाले राहुल गांधी 2014 में काफी पापड़ बेलने के बाद बमुश्किल 1 लाख 7 हजार 903 वोट से ही जीत सके। लेकिन चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी ने उस गलती को नहीं दोहराया जो मेनका ने की थी।

मोदी सरकार में उन्हें मंत्रालय मिला और वो अमेठी आती रहीं। जब आई तो सौगातों की पोटली लेकर। नतीजा ये हुआ है के अब जब पुनः इस चुनाव में बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने बड़े खतरे को भांप कर केरल के वायनाड से भी पर्चा भर दिया। इस तरह महिला के रूप में स्मृति ईरानी के फिर से अमेठी के चुनावी समर में आने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। जिसका नतीजा देखने के लिए पूरा देश नज़रे जमाए बैठा है।

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