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ईरान और अमेरिका- दोस्त थे अब हैं जानी दुश्मन

Shivakant Shukla
Published on: 8 Jan 2020 1:35 PM GMT
ईरान और अमेरिका- दोस्त थे अब हैं जानी दुश्मन
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तेहरान। ईरान और अमेरिका के बीच जबर्दस्त विवाद है जो मध्यपूर्व को एक और युद्ध की तरफ ले जा सकता है। इन दोनों देशों के रिश्ते कभी बहुत अच्छे हुआ करते थे। खासकर प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान।

दोनों विश्वयुद्धों के बीच में ही मध्य पूर्व के देशों में कच्चे तेल के बड़े भंडार मिले इनमें ईरान भी शामिल था। ईरान में तेल निकालने का जिम्मा ब्रिटेन की ‘एंग्लो-पर्शियन ऑइल कंपनी’ ने उठाया।

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दूसरे विश्व युद्ध के समय ईरान-अमेरिका थे दोस्त

1945 में जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ उस समय ईरान में पहलवी राजवंश का शासन चल रहा था और राजा थे मोहम्मद रजा शाह पहलवी। 1949 में ईरान में नया संविधान लागू हुआ जिसमें प्रधानमंत्री पद की नई व्यवस्था की गई थी।

1952 में देश के प्रधानमंत्री बने मोहम्मद मोसद्दिक जो तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे। ये ब्रिटेन को रास नहीं आया। ब्रिटेन का कहना था कि तेल कंपनी उसकी है जबकि ईरान का कहना था कि तेल उसका है। इस रार का अंजाम ये हुआ कि 1953 में ब्रिटेन और अमेरिका की मिलीभगत से प्रधानमंत्री मोसद्दिक सत्ता से बाहर कर दिए गए।

इस तख्तापलट के बाद तो मोहम्मद रजा शाह पहलवी सर्वेसर्वा बन गए। लेकिन मोसद्दिक का जाना ईरान की जनता को पसंद नहीं आया। लोग ये मनने लगे कि रजा पहलवी अमेरिका के पिठु हैं।

1963 में मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने देश में ‘श्वेत क्रांति’ का एलान किया। ये पश्चिम की नीतियों पर आधारित छह सूत्री सुधार कार्यक्रम था था। इन सुधारों का विरोध होने लगा जिसकी अगुवाई इस्लामिक नेता आयतोल्लाह रुहोल्लाह खौमेनी कर रहे थे।

शाह को खोमैनी ने इतना परेशान कर डाला कि 1964 में शाह ने उन्हें देश निकाला दे दिया। खोमैनी को ईरान से जाना पड़ा और वे फ्रांस चले गए। लेकिन फ्रांस में रहते हुए खोमैनी ने शाह पहलवी के खिलाफ अभियान जारी रखा।

1973 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें क्रैश कर गईं। इससे ईरान की अर्थव्यवस्था और शाह की श्वेत क्रांति चरमरा गई। सितंबर 1978 में तेहरान में शाह की सत्ता के खिलाफ जन आक्रोश सडक़ों पर आ गया और देखते देखते विरोध प्रदर्शन देश भर में फैल गया।

शाह ने देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया लेकिन आग भडक़ चुकी थी। जनवरी 1979 तक ईरान में गृहयुद्ध के हालात हो गए।

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वापस लौटे खोमैनी

ईरान में हालात संभलने की बजाए बिगड़ते चले गए और 16 जनवरी 1979 को शाह अपने परिवार समेत अमेरिका चले गए। इस यात्रा का बहाना इलाज कराना बताया गया था। जाने से पहले शाह ने विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को प्रधानमंत्री बना दिया। शाह तो लौट कर आए नहीं और बख्तियार ने खौमेनी को वापस आने की इजाजत दे दी।

12 फरवरी 1979 को खौमेनी फ्रांस से ईरान लौटे। बख्तियार का शुक्रिया अदा करने की बजाए खौमेनी ने ऐलान कर दिया वह खुद सरकार बनाएंगे। 16 फरवरी को उन्होंने मेहदी बाजारगान को नया प्रधानमंत्री घोषित किया। अब देश में दो प्रधानमंत्री हो गए।

अप्रैल 1979 में एक जनमत संग्रह करवाया गया जिसके बाद ईरान को इस्लामी गणतंत्र घोषित कर दिया गया। एक सरकार चुनी गई और खौमेनी को देश का सर्वोच्च नेता चुना गया। प्रधानमंत्री के पद की जगह राष्ट्रपति का पद आ गया। इस क्रांति के साथ अमेरिका का ईरान से प्रभाव एकदम खत्म हो गया।

शाह के समय दोस्त रहे दोनों देश अब दुश्मन बन गए थे। दोनों देशों ने आपस में राजनयिक संबंध खत्म कर लिए। इसी साल तेहरान में ईरानी छात्रों के एक समूह ने अमेरिकी दूतावास में 52 अमेरिकी नागरिकों को बंधक बना लिया। बदले में लोगों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर से शाह को वापस ईरान भेजने की मांग की लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

जुलाई 1980 में मिस्र में शाह की मौत हो गई। 1981 में रोनाल्ड रीगन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने पर 444 दिनों बाद अमेरिकी बंधकों को छोड़ा गया।

इराक का हमला

1980 में सद्दाम हुसैन की सत्ता वाले इराक ने इस्लामिक क्रांति के डर से ईरान पर हमला कर दिया। अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने इस लड़ाई में इराक का साथ दिया। आठ साल चली लड़ाई में दस लाख से ज्यादा लोग मारे गए। इस लड़ाई में इराक को नुकसान झेलना पड़ा और एक समझौते के साथ यह युद्ध खत्म हुआ।

इस युद्ध के साथ ईरान-अमेरिका की दुश्मनी और पुख्ता हो गई। इस युद्ध के बाद ईरान का अगला फोकस परमाणु बम बनाने पर हो गया।

1988 में तेहरान से दुबई जा रहे ईरान एयर के एक यात्री विमान को अमेरिकी नौसेना ने मिसाइल से मार गिराया। इस विमान में 10 भारतीयों समेत 290 लोग सवार थे। सभी मारे गए। अमेरिका ने सफाई दी कि उन्हें लगा था कि ये लड़ाकू जहाज एफ-14 है और नौसेना के पोत की ओर सीधे आ रहा है। इसलिए गलती से इसे गिरा दिया गया।

1989 में खौमेनी का निधन हो गया और उसके बाद 1981 से 1989 तक राष्ट्रपति रहे अली खमनेई सर्वोच्च नेता बन गए।

1991 में कुवैत पर हमले के बाद इराक और अमेरिका आमने सामने आ गए। इस दौरान ईरान ने इराक का समर्थन किया। अमेरिका ने इराक में सेना भेज दी और एक लंबा युद्ध शुरू हुआ।

2002 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम का दुनिया को पता चला। इसके बाद अमेरिका ने ईरान पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए। 2005 से 2013 तक ईरान के राष्ट्रपति रहे महमूद अहमदीनेजाद इस स्थिति का सामना करते रहे। 2013 में सत्ता उनके हाथ से निकलकर हसन रोहानी के हाथ में आ गई।

रोहानी ने नए सिरे पर परमाणु कार्यक्रम पर बात करना शुरू किया। 2015 में अमेरिका समेत पश्चिम देशों और ईरान के बीच परमाणु कार्यक्रम पर एक समझौता हुआ। इसके बाद ईरान से कई आर्थिक प्रतिबंध हट गए।

ट्रंप ने ईरान समझौता रद्द किया था

लेकिन 2016 में अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही ओबामा के दौर में हुए ईरान समझौते को रद्द कर दिया। ट्रंप ने ईरान पर फिर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। यमन, सीरिया और इस्राएल में दोनों देश अप्रत्यक्ष युद्ध लड़ रहे हैं।

यमन में अमेरिका सऊदी अरब के साथ है तो ईरान हूथी विद्रोहियों के। अमेरिका इस्राएल के साथ है तो ईरान हिज्बुल्लाह और हमास के। सीरिया में ईरान सरकार के साथ है तो अमेरिका विद्रोहियों का साथ दे रहा है।

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