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BJP से रार ने राजभर को बनाया विरोधियों का यार
भारतीय जनता पार्टी के लिए कई बार मुश्किले पैदा कर चुके सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर ने एक बार फिर भाजपा को संकट में डाल दिया है। राजभर ने अंतिम चरण की दो लोकसभा सीटों पर सपा-बसपा व रालोद गठबंधन तथा एक सीट पर कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की है।
मनीष श्रीवास्वतव
लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी के लिए कई बार मुश्किले पैदा कर चुके सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर ने एक बार फिर भाजपा को संकट में डाल दिया है। राजभर ने अंतिम चरण की दो लोकसभा सीटों पर सपा-बसपा व रालोद गठबंधन तथा एक सीट पर कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की है।
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की सहयोगी और योगी मंत्रिमंडल में मंत्री राजभर ने मिर्जापुर में कांग्रेस, महाराजगंज और बांसगांव में गठबंधन को समर्थन देने का फैसला लिया है। इन तीनों सीटों पर भासपा प्रत्याशियों का पर्चा खारिज हो गया है।
गौरतलब है कि ओमप्रकाश राजभर ने वर्ष 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन किया। राजभर भाजपा से करीब 20 सीटों की मांग की लेकिन भाजपा ने उन्हे केवल आठ सीटे दी। इन आठ सीटों पर चुनाव लड़ी भासपा को चार सीटों पर सफलता मिली। भाजपा ने उन्हे राज्य की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया। पहली बार विधानसभा पहुंची भासपा के नेता को लगा कि उनके समर्थन का ही असर था कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा का सफाया कर दिया। अपनी चुनावी अहमियत समझ चुके राजभर ने मंत्रीपद की शपथ लेने के बाद से ही 2019 के लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटे हासिल करने के लिए दबाव की राजनीति शुरू कर दी। भाजपा ने राजभर बिरादरी में भासपा की काट के तौर पर वाराणसी की शिवपुरी से अपने विधायक अनिल राजभर को आगे बढ़ाते हुए उन्हे मंत्री बना दिया।
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अनिल राजभर ने अपनी बिरादरी में भाजपा का प्रसार करना शुरू कर दिया लेकिन ओमप्रकाश राजभर को यह रास नहीं आया और उन्होंने भाजपा पर घोखा देने का आरोप भी लगाते हुए कहा कि बिरादरी को तोड़ने के लिए भाजपा एक ओर तो अनिल राजभर को सपोर्ट कर रही है तो दूसरी ओर भासपा की ताकत घटाने के लिये अधिकारी उनकी सुन नहीं रहे है और उन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ अनशन पर बैठने की धमकी भी दे दी।
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इसके बाद भी ओमप्रकाश राजभर लगातार भाजपा को अपने तेवर दिखाते रहे। भाजपा ने उनको शांत करने के लिए उनके नौ लोगों को विभिन्न आयोगों में पद दे दिए लेकिन लोकसभा चुनाव की आहट सुनते ही ओमप्रकाश राजभर ने फिर अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। उन्होंने भाजपा से 39 लोकसभा सीटों की मांग की लेकिन भाजपा ने उन्हे मना कर दिया और केवल एक घोसी लोकसभा सीट देने की बात कही, वह भी भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ने की शर्त के साथ। भाजपा के इस रूख से नाराज ओमप्रकाश राजभर ने ऐलान कर दिया कि भासपा लोकसभा चुनाव अकेले और अपने दम पर लडे़गी। इसके साथ ही उन्होंने 39 सीटों पर अपने प्रत्याशी भी घोषित कर दिये। लेकिन तीन सीटों पर उनके प्रत्याशियों का पर्चा खारिज होने के बाद उन्होंने भाजपा के विरोधियों को समर्थन दे दिया।
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गौरतलब है कि ओपी राजभर के तेवर ऐसे ही नहीं तल्ख है, इसके पीछे उनकी वोटों की ताकत छुपी हुई है। दरअसल वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव चुनाव में बलिया, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, वाराणसी जैसी पूर्वांचल की तकरीबन 20 सीटों पर भासपा के प्रत्याशियों को करीब 20 से 50 हजार तक वोट मिले। इसके बावजूद भासपा का कोई भी प्रत्याशी विधानसभा नहीं पहुंच पाया। लेकिन चुनाव के इन नतीजों ने पूर्वाचंल की इन सीटों पर ओमप्रकाश राजभर की सियासी हैसियत बना दी। वर्ष 2014 में उन्होंने क्षेत्रीय पार्टी कौमी एकता दल के साथ मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ा। इस बार भी सफलता तो नहीं मिली लेकिन इस गठबंधन को मिले वोट प्रतिशत ने यह जरूर साफ कर दिया कि भासपा की ताकत बढ़ चुकी है।