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कोरोना से मीडिया भी न बच पायेगा
कोरोना का आज -कल में तो जाना तय है।लेकिन आगे जो आर्थिक सुनामी आने वाली है उससे पूरी दुनिया भयभीत है।जो आर्थिक विशेषज्ञों के आकलन आ रहें हैं डरावने वाले हैं।इससे सीधे सीधे विश्व की 8% जनता प्रभावित हो रही है।या यूं कहें सीधे सीधे गरीबी और भूखमरी के मुहाने पर खड़ी है।कोई कारगर योजना रोजगार देने की नही लाई गई तो भूख से मौत तय है।
मदन मोहन शुक्ला
कोरोना का आज -कल में तो जाना तय है।लेकिन आगे जो आर्थिक सुनामी आने वाली है उससे पूरी दुनिया भयभीत है।जो आर्थिक विशेषज्ञों के आकलन आ रहें हैं डरावने वाले हैं।इससे सीधे सीधे विश्व की 8% जनता प्रभावित हो रही है।या यूं कहें सीधे सीधे गरीबी और भूखमरी के मुहाने पर खड़ी है।कोई कारगर योजना रोजगार देने की नही लाई गई तो भूख से मौत तय है।
कमोबेश भारत मे भी आर्थिक सेहत वेंटिलेटर पर है।सीधे सीधे 40 करोड़ कामगार के सामने गरीबी और भुखमरी अपने आगोश में लेने के लिए आतुर है।सरकार के सामने इस मुसीबत से निकलना एक बहुत ही कठिन टास्क है।क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही अपने बुरे दौर से गुज़र रही थी ।रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी।इससे अछूता मीडिया भी नही है।क्योंकि मीडिया पूरी तरह से सरकार द्वारा पोषित था।लेकिन आज सरकार के सामने आर्थिक संकट है।लिहाजा मीडिया के सामने सबसे बड़ा संकट है चैनल को चलाने के लिए पैसा कहाँ से आएगा ।क्योकि सरकार के पास पैसा नही है।लॉक डाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियों पर पूरा ब्रेक लगा हुआ है कोई उत्पादन नहीं है।लिहाजा प्राइवेट सेक्टर से कोई विज्ञापन की उम्मीद नही है।दूसरा चैनल का अस्तित्व जनता द्वारा था। जनता ही तो टी आर पी देती थी और आशा करती थी मीडिया उसकी आवाज़ बनेगा।
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लेकिन अफ़सोस मीडिया तो सरकार के रंग में रंग गया। सरकार की भाषा बोलने वाला,सरकार के एजेंडे पर चलने वाला हो गया। जनता से बहुत दूर जनता को गरीबी ,भूखमरी,बेरोज़गारी के दल- दल में छोड़ कर चला गया।जनता असहाय ,अब उसकी आवाज़ कौन सरकार तक पहुँचाएगा।
मीडिया देश की मूल समस्यायों मसलन बेरोज़गारी, गरीबी ,सामाजिक असुरक्षा ,वितीय असुरक्षा सामाजिक सौहार्द में कमी पर ध्यान न केंद्रित कर हर चीज़ को हिन्दू मुस्लिम के आईने से देखना तथा नफरत के ज़हर को फैलाना यही उद्देश्य रह गया है।पालघर में साधू की मोब लीनचिंग में हुई हत्या में हिन्दू-मुस्लिम का एंगल ढूंढना। लेकिन मोब लीनचिंग कानून जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार 2018 में ही बनना था लेकिन केंद्र सरकार द्वारा कोई पहल नही, मीडिया खामोश क्यों?इस दिशा में राजस्थान ने पहल कर कानून बनाया लेकिन वो केंद्र सरकार के पास राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए इतने दिन से लंबित क्यों ?इसी तरह बंगाल और मणिपुर में भी कानून का प्रस्ताव पास होकर केंद्र सरकार के पास राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए पड़ा है।मध्यप्रदेश में भी कमल नाथ की सरकार विधानसभा में प्रस्ताव लेकर आई थी लेकिन भाजपा द्वारा विरोध के कारण विधानसभा की चयन समिति को भेजकर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।आखिर मीडिया इस पर सवाल क्यों नहीं पूछती?
अब सवाल मीडिया का , इसका भविष्य क्या होगा,क्योंकि मीडिया ने तो अपनी ताक़त सत्ता को दे दी। क्योंकि सत्ता ने ऐसा चाहा और उसके एवज़ में भारी भरकम रकम विज्ञापन के रूप में दी,विकास का ढांचा उस पर लगी पूंजी से ही अस्तित्व में था और उससे जुड़े संस्थान का पोषक था लेकिन पूंजी न रहने पर ढहना लाज़मी है जिससे अछूता मीडिया भी नही है।मीडिया जो चौथा स्तम्भ कहलाता है अगर मजबूत होता बेबाकी से बिना किसी डर -भय के सरकार से सवाल पूछता तो बाकी संस्थाएं चाहे वो न्यायपालिका हो या नौकरशाही ,चुनाव आयोग या सी बी आई इस पर कोई दबाब न रहता।मीडिया पर लोगों का विश्वास रहता ।लेकिन यहां तो इन संस्थाओं की ऑटोनॉमी सरकार को ट्रांसफर हो गयी।लोकतंत्र किताबों तक सीमित हो गया चेक एंड बैलेंस अप्रभावी हो गया।अब नए परिवेश में मीडिया असहाय हो गई -आर्थिक संकट सामने दस्तक दे रहा है।
मीडिया पर सरकार द्वारा 2014 से अब तक जो धन वर्षा हुई जिसमें मीडिया मुग़ल खूब फले-फूले। मीडिया अहंकार में आकर अपना विवेक खो बैठी।अब वही मीडिया सरकार के सामने गुहार लगा रही है डी ए वी पी के तहत 2000 करोड़ बकाए रु का भुगतान कर दिया जाए,लेकिन सरकार के सामने अर्थ संकट आ गया।वो तो सरकारी विज्ञापन जो साल भर का 1250 करोड़ है उस पर भी दो साल के लिए रोक लगाने पर विचार कर रही है।लॉक डाउन की मार का असर अब दिखने लगा है।इंडियन न्यूज़पेपर सोसाइटी जो करीब 800 समाचार पत्रों का प्रतिनिधित्व करती है उसने सरकार को पत्र लिखकर बताया है कि पिछले दो महीनों में कोरोना की वजह से न्यूज़पेपर इंडस्ट्री को रु 4500 करोड़ का नुकसान हो चुका है।आगे भी जो हालात है देखते हुए कोई उम्मीद नहीं है, लिहाज़ा नुकसान 12,000-15,000 करोड़ तक का हो सकता है।सरकार से मदद की गुहार लगाई है।
आज हालात ऐसे हो गए हैं कि अकेले मध्यप्रदेश में 300 से अधिक छोटे और मझोले समाचार पत्र इस लॉक डाउन में बंद हो गए है।एक्प्रेस ग्रुप भी अपने मीडिया कर्मियों की सैलरी में कटौती करेगा ऐसी सुगबुगाहट चल रही है।
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अगर अब तक इनकी कमाई का विश्लेषण करें तो पाएंगे टीवी की मीडिया विज्ञापन से कमाई 2500 करोड़ की है।जिसमें आज तक-600-650 करोड़ प्रति वर्ष,ए बी पी-200-250 करोड़,इंडिया टीवी-230 करोड़,ज़ी-200 करोड़, न्यूज़ 18-150 करोड़ और न्यूज़ नेशन-100 करोड़ प्रति वर्ष कमा रहा है।1000 करोड़ में अन्य चैनल है।आज कुल 900 चैनल,6000 मल्टी सिस्टम ऑपरेटर और करीब 60,000 केबल ऑपरेटर है।आज कोरोना की वजह से सबसे ज़्यादा नुकसान पर्यटन, होटल इंडस्ट्री और सिविल एविएशन का हुआ है।पर्यटन से सरकारी आंकड़ों के अनुसार 8करोड़ लोग जुड़ें है जिसमे 40लाख की नौकरी जाना तय है।आंकड़ों के अनुसार पीक सीजन अक्टूबर से लेकर मार्च तक 3 लाख करोड़ का फायदा हुआ था वहीं लॉक डाउन की वजह से दिसंबर से अप्रैल के बीच 5 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है फ़िलहाल इस सेक्टर से कोई विज्ञापन की उम्मीद नही रह गई।होटल इंडस्ट्री को 1,10000 करोड़ रु का नुकसान हो चुका है।सिविल एविएशन को अब तक 45से60 हज़ार करोड़ का नुकसान हो चुका है।विदेशों से आने वाले धन में 2लाख12हज़ार करोड़ के नुकसान का आकलन है।इसी तरह एफ एम सी जी से 30%से लेकर 35% विज्ञापन आता था वो संकट में है।नार्थ में दिल्ली,नोएडा और गुरुग्राम,पूर्व में कोची,कोलकाता, हावड़ा ,वेस्ट में मुम्बई,अहमदाबाद साउथ में हैदराबाद, बेंगलुरू और चेन्नई जो इंडस्ट्रियल हब हैं वहां लॉक डाउन है।उत्पादन ठप्प।कोई विज्ञापन नहीं।टीवी इंडस्ट्री की ग्रोथ रेट जो 2019 में 6.4% थी वो घटकर आज 1% पर आ गयी है।प्रिंट मीडिया जिसकी ग्रोथ रेट 2019 में 3%थी वो आज माइनस में आ गयी है।ग्लोबल ए डी वी टी ग्रोथ आज 15%से घटकर 5%पर है।टीवी मीडिया पर जो संकट गहरा रहा है उसका सबसे बड़ा कारण डिजिटल मीडिया है जिसकी ग्रोथ रेट 35 से 40% है।
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आज हालत यह है टीवी शोज का प्रोडक्शन बंद है।आई पी एल रद्द होने से टी वी चैनलो पर विज्ञापन मे 50%तक गिरावट आई है।इंडियन ब्राडकास्टिंग फाउंडेशन ने सरकार से डिजिटल सेवाओं पर वस्तु एवं सेवाकर में छूट की मांग की है।साथ ही इनपुट क्रेडिट का आटोमेटिक रिफंड और लोअर विथ होल्डिंग आर्डर की तुरंत प्रोसेसिंग जैसी कुछ मांगे हैं।
अब आज के परिपेक्ष्य में यह तो तय है कि जिस चैनल के पास कैश इन-फ्लो है वही सर्वाइव करेंगे।जो चैनल सरकारी विज्ञापन पर आश्रित हैं उनका बंद होना तय है।इनकी भी संख्या काफी हो सकती है।यह तो वक़्त ही बताएगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।