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गेहूं ख़रीद छाया सन्नाटा
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ मंडल में गेहूं की खरीदी का आलम ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ वाली कहावत जैसा हो गया है। यहाँ खरीदी का आलम यह है कि २२१ खरीद केंद्र एक दिन में मात्र तीन किसान से ही गेहूं खरीद पा रहे हैं। यही हाल सहारनपुर और अलीगढ़ मंडल का भी है,जहां खरीद केंद्र एक दिन में औसतन तीन किसान से ही गेहूं खरीद पा रहे हैं।
सुशील कुमार
मेरठ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ मंडल में गेहूं की खरीदी का आलम ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ वाली कहावत जैसा हो गया है। यहाँ खरीदी का आलम यह है कि २२१ खरीद केंद्र एक दिन में मात्र तीन किसान से ही गेहूं खरीद पा रहे हैं। यही हाल सहारनपुर और अलीगढ़ मंडल का भी है,जहां खरीद केंद्र एक दिन में औसतन तीन किसान से ही गेहूं खरीद पा रहे हैं। वैसे सिर्फ इन तीन मंडलों की ही रफ्तार धीमी नहीं है। प्रदेश के दूसरे मंडलों में तो गेंहू खरीद की रफ्तार इससे भी कम है।
एक दिन में एक किसान
आलम ये है कि गोरखपुर मंडल के खरीद केंद्र एक दिन में मात्र एक किसान से ही गेहूं खरीद पा रहे हैं। देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गेहूं की खरीदी इस कदर धीमी रफ्तार है कि राज्य के खरीद केंद्र एक दिन में औसतन मात्र दो किसानों से ही गेहूं खरीद पा रहे हैं। खास बात ये है कि अन्य राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा खरीद केंद्र हैं।
आंकड़े करते हैं तस्दीक
उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य एवं रसद विभाग द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 10 खरीद एजेंसियों के कुल 5888 खरीद केंद्रों पर 12 मई तक 2,54,299 किसानों से 13.44 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। राज्य में पिछले महीने की 15 अप्रैल से गेहूं खरीदी चालू है और राज्य सरकार ने इस बार 55 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है। इस तरह पिछले 27 दिन में 5888 खरीद केंद्रों ने 2.54 लाख किसानों से गेहूं खरीदा है। यानी एक खरीद केंद्र ने इतने दिनों में औसतन 43 किसानों से गेहूं खरीदा। इस तरह एक खरीद केंद्र ने एक दिन में औसतन मात्र दो किसानों से गेहूं खरीदा है।
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सुस्त रफ्तार
प्रदेश के मंडलवार खरीद केन्द्रों की बात करें गेहूं खरीद की सबसे कम रफ्तार अयोध्या, कानपुर, गोरखपुर, देवीपाटन, प्रयागराज, बस्ती, मुरादाबाद, मिर्जापुर और वाराणसी की है जहां पर एक खरीद केंद्र ने एक दिन में औसतन मात्र एक किसान से ही गेहूं खरीदा है। आगरा, आजमगढ़, चित्रकूट, झांसी, बरेली, लखनऊ ऐसे मंडल रहे हैं जहां पर एक खरीद केन्द्र ने एक दिन में औसतन मात्र दो किसानों से गेहूं खरीदा।
कोरोना संक्रमण की वजह से हुए लॉकडाउन के बीच यूपी सरकार ने 15 अप्रैल से प्रदेश में गेहूं खरीद की शुरुआत की है। सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1925 रुपए प्रति कुन्तल रखा है। दरअसल,गेहूं समेत अन्य रबी फसलों की खरीदी इस समय जारी है लेकिन ज्यादातर किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपना उत्पाद बेचने से वंचित होते हुए दिखाई दे रहे हैं।
प्रदेश में गेंहूं खरीद की रफ्तार कम होने की वजह क्या है, इस सवाल के जवाब में राष्ट्रीय लोकदल के वेस्ट यूपी प्रभारी डॉ.राज कुमार सांगवान कहते हैं, हकीकत ये है कि सरकार खरीदी करना ही नहीं चाहती है और इसलिए जानबूझकर ऐसी प्रक्रिया बनाई गई है ताकि किसान मजबूर होकर कहीं प्राइवेट में बेचे, जहां उसे कम दाम मिल पाएगा। सागवान कहते हैं ‘एक फसल की कटाई के बाद अगली फसल की बुवाई के लिए किसान को तुरंत पैसे की जरूरत होती है। लेकिन होता यह है कि गेहूं बेचने के बाद भी किसान के खातों में कई-कई दिन तक पैसा नहीं पहुंचता। किसान इसका कारण जानने की कोशिश करता है तो उसे बताया जाता है कि आपने अपने फार्म में नाम की स्पेलिंग गलत लिखी थी या फिर अंकाउट नम्बर गलत लिखा था। आम दिनों में फिर भी ठीक है। लेकिन लॉकडाउन में तो किसान बेचारा यह पूछने बाहर भी नहीं जा सकता है कि उसके एकाउंट में पैसा क्यों नही पहुंचा है। ऐसे में जब भुगतान होने में इतने दिन लगेंगे तो कौन सरकारी खरीद केंद्रों पर बेचना चाहेगा। किसान मजबूर होकर कहीं और बेच देता है। सांगवान के अनुसार सरकार ने किसानों का गेहूं खरीदने के लिए जनपद में विभिन्न स्थानों पर गेहूं क्रय केंद्र खोले हुए हैं। सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य 1925 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया हुआ है। लेकिन तुलाई के नाम पर 20 रुपये प्रति क्विंटल लिए जा रहे हैं। ऊपर से घटतौली अलग है।
राजकुमार सांगवान पड़ोस के बिजनौर के रहने वाले रविंदर सिंह का वाक्या सुनाते हुए बताते हैं, रविंदर सिंह ने अपनी छह एकड़ भूमि पर गेहूं की फसल लगाई थी लेकिन वे करीब 50 क्विंटल उत्पादन का एक दाना भी बेच नहीं पाए हैं। रविंदर सिंह जब भी खरीद केंद्र पर गया तो जवाब मिला कि गेहूं में बहुत ज्यादा नमी है और इसे खरीदने से मना कर दिया। अब लॉकडाउन के चलते रविंदर सिंह के पास कोई और विकल्प नहीं है कि वे अपने उत्पाद को कहीं और बेच पाए। सांगवान कहते हैं, ‘पहले का समय रहा होता तो रविंदर सिंह पड़ोसी जिले या आटा चक्की पर ले जाकर इसे बेच लेता। वे एमएसपी से कम दाम जरूर देते लेकिन कम से कम मैं इसे बेच तो पाता. लेकिन इस समय तो ये विकल्प भी नहीं बचा। सांगवान के अनुसार इस तरह की परेशानियों का सामना सिर्फ रविंदर सिंह ही नही बल्कि देश, खासकर उत्तर प्रदेश, के कई किसानों को इसी तरह की कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
भारतीय किसान यूनियन के नेता जगदेव सिंह कहते हैं,''सरकार गेहूं का जो चाहे रेट तय कर दे, किसान को सेंटर पर 100-150 रुपए कम ही मिलना है। खरीद सेंटर चलाने वाले साफ कहते हैं कि पैसा ऊपर तक जाएगा, हम अपनी जेब से थोड़े देंगे। ऐसे हाल में हम क्या कर सकते हैं, सरकारी रेट से कम में बेचने को मजबूर हैं। यही हाल पिछले साल था, आगे भी रहेगा।''
इसी तरह के आरोप गाजियाबाद के लोनी की अनाज मंडी पर गेहूं किसानों ने बड़े आरोप लगाए हैं। किसानों के मुताबिक, यहां उनसे गेहूं खरीदने के नाम पर पैसे मांगे जा रहे हैं।
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खरीद केंद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका
किसानों को एमएसपी का लाभ दिलाने में खरीद केंद्रों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हालांकि पिछले तीन सालों सिर्फ एक बार ही उत्तर प्रदेश सरकार निर्धारित लक्ष्य के जितना गेहूं खरीद पाई है। यहां बता दें कि उत्तर प्रदेश में खाद्य विभाग की विपणन शाखा, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (पीसीएफ), उत्तर प्रदेश राज्य कृषि एवं औद्योगिक निगम (यूपीएग्रो), यूपी राज्य खाद्य एवं आवश्यक वस्तु निगम (एसएफसी), यूपी कर्मचारी कल्याण निगम (केकेएन), भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ मर्यादित (एनसीसीएफ), नैफेड, उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव यूनियन (यूपीसीयू) और उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ (यूपीएसएस) कुल दस एजेंसियां हैं, जो गेहूं खरीदती हैं। इसमें से सबसे ज्यादा खरीदी यूपीपीसीएफ और खाद्य विभाग की विपणन शाखा द्वारा की जाती है। बहरहाल,इतने ज्यादा खरीद केंद्र होने के बावजूद उत्पादन की तुलना में काफी कम किसानों से गेहूं खरीदना राज्य की योगी सरकार पर सवालिया निशान तो खड़े होंगे ही।