×

2019 के आईने से देखना होगा 2020 का परिदृश्य

raghvendra
Published on: 3 Jan 2020 4:18 PM IST
2019 के आईने से देखना होगा 2020 का परिदृश्य
X

मदन मोहन शुक्ला

नए साल और नए दशक का आगमन हो चुका है। अब अगर बीते साल का आकलन करें तो ये दुश्वारियों भरा साल रहा। खासतौर पर आर्थिक दृष्टि से। जीडीपी की दर न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि सरकार की मदद के लिए रिजर्व बैंक को अपने आपातकालीन फण्ड से 1.75 लाख करोड़ रुपये देने पड़े। वहीं ये साल आश्चर्यों से भी भरपूर रहा। चुनाव पंडितों के आंकलन को धता बताते हुए जनता ने एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर विश्वास जताया। मोदी पहले से ज्यादा दम खम के साथ राजनीति के क्षितिज पर उभरे और विपक्ष चारों खाने चित हो गया। मोदी ने भी जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए कमर कस ली। जो उम्मीदें मोदी से थीं उन्हें पूरा करने में गृहमंत्री अमित शाह ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले तीन तलाक बिल को दोनों सदनों से पारित कराके अपनी मंशा जाहिर कर दी कि जो भी वादे संकल्प पत्र में किये गए हैं उनको पूरा करना अब सरकार की प्राथमिकता है। मोदी की दृढ़ता ने एक ऐसा मुकाम हासिल किया शायद जो असंभव सा था। वो था जम्मू - कश्मीर से अनुछेद 370 और धारा 35ए की समाप्ति।

इस खबर को भी देखें: नए साल पर चुनौतियों से ट्वेंटी-ट्वेंटी जरूरी

सरकार की सधी हुई कूटनीति से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग पाने में सफलता पाई लेकिन देश के भीतर विभिन्न स्तर पर विरोध हुआ जिसका सरकार ने बहुत चतुराई और प्रशासनिक रणनीति से समाधान निकाला। तीसरा जो सबसे बड़ा काम हुआ वो था सुप्रीम कोर्ट का निर्णय जिसने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दे का समाधान कर दिया। शांतिपूर्ण ढंग से पूरे देश ने इसको स्वीकारा। लेकिन बीते साल में असम की एनआरसी की कवायद और संसद से पारित नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए जैसे विवादित मुद्दे भी जोरशोर से छाए रहे। साल बीतते बीतते सीएए और संभावित एनआरसी पर खासा बखेड़ा रहा।

नए साल की बात करें तो आर्थिक परिदृश्य बहुत बेहतरीन नजर नहीं आ रहा। ये और भी मुश्किल हो सकता है। रोजगार घटने से मांग कम हुई है जिसका व्यापक असर देखने को मिल रहा है। इस बीच एक और विरोधाभास देखने को मिल रहा है कि जहां हमारी विकास दर घट रही है वहीं शेयर बाजार तेजी पर है। इसका कारण जहां कुल अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है लेकिन उसके भीतर बड़े उद्योगों का आकार बढ़ रहा है। यह प्रमाणित करता है मुख्य समस्या छोटे उद्योगों के विघटन के कारण उत्पन्न हुई। इस बात का जिक्र भारत झुनझुन वाला ने अपने एक लेख में किया है। वो लिखते हैं कि आर्थिक सुस्ती का दूसरा बड़ा कारण सामाजिक तनाव है। लोग देश छोड़ कर दूसरे देश की ओर रुख कर रहे हैं। वे अपने साथ पूंजी भी लेकर जा रहे हैं और हमारी अर्थव्यवस्था के गुब्बारे से हवा निकल रहे हैं।

सरकार के सामने 2020 की पहली चुनौती छोटे उद्योगों को पुनर्जीवित करना है ताकि रोजगार के अवसर सृजित हों। साथ ही सेवा क्षेत्र पर ध्यान देना होगा क्योंकि वैश्विक निर्यात में अपार संभावनाएं हैं जिन्हें हम फिलहाल हासिल नही कर पा रहे हैं। दूसरी चुनौती है अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित करने के मंत्र को त्याग कर खर्च को बढ़ाना। विशेषकर उन क्षेत्र में जिनसे छोटे उद्योगों को राहत मिले। जैसे कि छोटे कस्बों में मुफ्त वाई फाई उपलब्ध कराना अथवा कस्बों की सडक़ों का सुधार करना अथवा उन्हें निरंतर बिजली उपलब्ध कराना। ऐसे कार्यों से छोटे उद्योगों को जमीनी स्तर पर राहत मिलेगी।इ सके साथ साथ देश में सामाजिक तनाव को खत्म करना होगा तथा विदेशी निवेश के लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story