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लखनऊ में जन्मी ये राजकुमारीः जिसे अहिंसा के इस 'तानाशाह' ने कहा था बागी

राजकुमारी अमृतकौर स्वाधीन भारत की केंद्रीय मंत्री बनने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं और दस वर्ष तक स्वास्थ्य मंत्री रहीं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स जो आज भी अपनी एक अलग पहचान रखता है उसे बनाने में इनका बहुत योगदान रहा।

राम केवी
Published on: 2 Feb 2020 12:14 PM GMT
लखनऊ में जन्मी ये राजकुमारीः जिसे अहिंसा के इस तानाशाह ने कहा था बागी
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रामकृष्ण वाजपेयी

आज हम आपको एक ऐसी राजकुमारी अमृतकौर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका आज दो फरवरी को जन्म दिन है। आप जानकर चौंक जाएंगे कि इस राजकुमारी का जन्म उन्नीसवीं सदी के आखीर में 1889 को लखनऊ में हुआ था। लेकिन ये राजकुमारी औरों से थोड़ा हटकर थी।

राजकुमारी अमृतकौर का ताल्लुक तो इनका पंजाब में कपूरथला के राजघराने से था लेकिन किशोरावस्था में खेलों में रुचि लेने के बाद इन्हें स्वतंत्रता संग्राम बहुत पसंद आया और महात्मा गांधी की 16 साल तक सचिव रहीं, देश के विभाजन से पूर्व अमृतकौर अंतरिम सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहीं।

राजकुमारी अमृतकौर स्वाधीन भारत की केंद्रीय मंत्री बनने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं और दस वर्ष तक स्वास्थ्य मंत्री रहीं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स जो आज भी अपनी एक अलग पहचान रखता है उसे बनाने में इनका बहुत योगदान रहा। ये थीं राजकुमारी अमृतकौर।

इसलिए लखनऊ में जन्म हुआ

राजकुमारी अमृतकौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में नवाबों के शहर लखनऊ में हुआ था। उनके पिता राजा हरनाम सिंह और माता रानी हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं। अमृत कौर उनकी एकलौती बेटी और सात भाईयों की अकेली बहन थीं। अमृत कौर के पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। और ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें अवध की रियासतों का मैनेजर बनाकर अवध भेजा था। अमृतकौर की स्कूली शिक्षा इंग्लैंड के स्कूल शेरबॉन से हुई और स्नातक की डिग्री ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवसिर्टी से मिली।

टेनिस की बेहतरीन खिलाड़ी

राजकुमारी टेनिस की बेहतरीन खिलाड़ी थीं और टेनिस में उनको कई पुरस्कार मिले। वह चाहतीं तो राजसी जीवन में ऐश कर सकती थीं, परंतु उन्हें देश के लिए काम करना अच्छा लगा। उनके पिता राजा हरनाम सिंह अक्सर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं गोपाल कृष्ण गोखले आदि से मिलते रहते थे। अमृतकौर को उनकी बातें अच्छी लगीं तो उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में रुचि लेना शुरू किया।

राजकुमारी महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थीं। इसी बीच जलियावाला बाग कांड हुआ जिससे वह बहुत आहत हुईं और पूरी तरह से स्वाधीनता समर में कूद गईं। अमृत कौर बाल विवाह और महिलाओं की अशिक्षा को दूर करने पर निरंतर ज़ोर देती रहीं। लेकिन खुद के विवाह का उनका कोई इरादा नहीं था न उन्होंने शादी की।

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गांधी का साथ चुना उन्हीं की होकर रह गईं

राजकुमारी अमृतकौर को भौतिक सुख सुविधाओं की कोई लालसा नहीं थी इसलिए महात्मा गांधी की सादगी और कड़े अनुशासन से प्रभावित हो उन्होंने उनके साथ काम करने का निर्णय लिया। महात्मा गांधी से उनकी पहली मुलाकात 1934 में हुई। इससे पहले दोनों एक-दूसरे को खत भेजा करते थे। वर्ष 1934 में अमृतकौर हमेशा के लिए महात्मा गांधी के आश्रम में रहने चली गयीं। उन्होंने दलितों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ भी आवाज उठायी।

राजकुमारी महात्मा गांधी के साथ नमक सत्याग्रह और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेल भी गईं। महात्मा गांधी अकसर अपने पत्रों में अमृत कौर को 'मेरी प्यारी बेवकूफ' और 'बागी' सम्बोधन दिया करते थे और खुद को तानाशाह भी कहते थे। नमक सत्याग्रह के दौरान डांडी मार्च में अमृतकौर गांधीजी के साथ थीं।

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पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल में एकमात्र ईसाई

भारत की आजादी मिलने पर जब जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में पहला मंत्रिमंडल बना तो अमृतकौर पहली महिला थीं जो केंद्र में पद संभाल रही थीं। अमृतकौर ने ̔स्वास्थ विभाग̕ संभाला। उस मंत्रिमंडल में अमृत कौर एकमात्र ईसाई थीं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली की स्थापना के लिए उन्होंने जर्मनी और न्यूज़ीलैंड से भी आर्थिक मदद ली।

अमृतकौर और उनके भाई ने ̔हॉलिडे होम̕ नामक संस्था के लिए अपनी संपत्ति दान कर दी। करीब 14 साल तक वह भारतीय रेडक्रास सोसाइटी की अध्यक्ष रहीं। बाद में अमृत कौर जब तक जिंदा रहीं राज्यसभा की सदस्य रहीं। उनकी मृत्यु २ अक्टूबर १९६४ को दिल्ली में हुई। उनकी इच्छा के अनुसार उनको दफनाया नहीं गया, बल्कि जलाया गया।

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