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देश में अस्थिरता पैदा करने के लिए सक्रिय ‘आंदोलनजीवी’

आंदोलनजीवी किस प्रकार के आंदोलन में शामिल होते हैं। आंदोलन किस लिये किया जा रहा है, आंदोलन का कारण क्या है, ये आंदोलनजीवियों के लिए कोई मुद्दा नहीं है।

Dharmendra kumar
Published on: 13 Feb 2021 10:23 PM IST
देश में अस्थिरता पैदा करने के लिए सक्रिय ‘आंदोलनजीवी’
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आंदोलनजीवी किस प्रकार के आंदोलन में शामिल होते हैं। आंदोलन किस लिये किया जा रहा है, आंदोलन का कारण क्या है, ये आंदोलनजीवियों के लिए कोई मुद्दा नहीं है।

डाॅ समन्वय नंद

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान एक नये शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने कहा कि हमने श्रमजीवी, बुद्धिजीवी आदि शब्द तो सुने हैं, लेकिन हाल ही में देश में एक ऐसी जमात दिख रही है जो कहीं भी आंदोलन हो वहां पहुंच जाती है। ये लोग आंदोलनजीवी हैं।

प्रधानमंत्री के राज्यसभा में इस बयान के बाद अब इन लोगों में खलबली मच गई है। अब ये आंदोलनजीवी व उनके समर्थक कह रहे हैं कि आंदोलन करना उनका अधिकार है। यह बात निश्चित है कि कहीं कोई अन्याय होता है तो निश्चित रुप से आंदोलन किया जाना चाहिए। इसमें किसी प्रकार की बुराई नहीं हैं। लेकिन ये लोग ये बात भूल रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आंदोलन करने वालों को आंदोलनजीवी नहीं बताया है। उन्होंने आंदोलनकारी व आंदोलनजीवी शब्द में भिन्नता को भी स्पष्ट किया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिनके लिए आंदोलनजीवी शब्द का प्रयोग करते हैं वे सच्चे आंदोलनकारियों से भिन्न हैं। उनका आशय उन लोगों से हैं जो पेशेबर ( प्रोफेशनल) आंदोलनकारी हैं। प्रधानमंत्री के ही शब्दों में जब कहीं वकीलों का आंदोलन होता है वे वहां पहुंच जाते हैं। जब कभी मजदूरों का आंदोलन होता है वहां भी वे पहुंच जाते हैं और जब कभी छात्रों का आंदोलन होता हैं वहां भी ये लोग पाये जाते हैं। इस कारण जिन लोगों से संबंधित आंदोलन हैं, वे लोग आंदोलनकारी होते हैं, लेकिन आंदोलनजीवी वे होते हैं जो समस्त प्रकार के आंदोलन में शामिल हो जाते हैं।

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आंदोलनजीवी किस प्रकार के आंदोलन में शामिल होते हैं। आंदोलन किस लिये किया जा रहा है, आंदोलन का कारण क्या है, ये आंदोलनजीवियों के लिए कोई मुद्दा नहीं है। जब भी देश को अस्थिर करने, देश को नीचा दिखाने का मौका मिलता है वे इस तरह के आंदोलन में शामिल होते हैं। जैसे प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि वे अपने आप को बडा वैचारिक व्यक्ति के रुप में प्रस्तुत करते हैं। देश व समाज की बातें करते हैं। कुछ आंदोलनों में वे सामने आते हैं तो कुछ स्थानों पर वे पीछे रह कर कार्य करते हैं।

जैसाकि उपर उल्लेख किया गया है कि देश को अस्थिर करने व देश को आग के झौंकने के लिए जहां उन्हें संभव लगता है वे वहां कूद पडते हैं। प्रधानमंत्री ने उनके लिए एक और शब्द कहा है कि वे परजीवी होते हैं। यानी वे अपने आप से कुछ नहीं कर पाते। यही कारण है कि किसी अन्य द्वारा किये जा रहे आंदोलन में शामिल हो जाते हैं। प्रधानमंत्री ने इस जमात के लिए आंदोलनजीवी शब्द का प्रयोग किया है।

प्रधानमंत्री ने ये जो नये जमात ‘आंदोलनजीवी’की बात की है उनका उदय प्रमुख रुप से 2014 के बाद ही हुआ है । इससे पहले भी वे थे लेकिन तब उनका ‘आंदोलनजीवी’ चेहरा देश के विभिन्न विकास परियोजनाओं को रोकने के लिए आंदोलन करने तक सीमित था। 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने तथा नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये ‘आंदोलनजीवी’ काफी सक्रिय हो गये हैं । देश की जनता इन आंदोलनजीवियों को अच्छी तरह से जानती है।

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यही ‘आंदोलनजीवी’ जमात ने ही सबसे पहले 2014 में यह बात प्रचारित करना शुरु कर दिया कि देश में अचानक असहिष्णुता बढ गयी है । इसके बाद से ही इस जमात ने पुरस्कार वापसी अभियान चलाया था। इसके बाद भीमा कोरेगांव के मामले में शहरी नक्सलवादियों की गिरफ्तारी के बाद यहीं ‘आंदोलनजीवी’ ही आंदोलन पर उतरे। नरेन्द्र मोदी जब दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तथा अनुच्छेद 370 को हटाया तो उसके खिलाफ जो आंदोलन हुए उसमें यही ‘आंदोलनजीवी’ शामिल हो गये।

इसके बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर भी देश के विभिन्न हिस्सों में आंदोलन हुआ । तब भी ये ‘आंदोलनजीवी’ इसमें शामिल हुए। नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र आंदोलन के दौरान भी यही ‘आंदोलनजीवी’ लगातार सक्रिय दिखे । अब किसानों के आंदोलन में भी यही ‘आंदोलनजीवी’ बिल्कुल सामने खडे हैं।

प्रधानमंत्री ने जिस ‘आंदोलनजीवी’ जमात का जिक्र किया यदि उनके कार्यकलापों के बारे में ध्यान से अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट होता है कि वे भारत के विखंडन के लिए कार्य करने वाली शक्तियों के साथ वे मिले हुए हैं। यानी दूसरे शब्दों में वे भारत को अस्थिर करने व भारत के विखंडन के लिए वे लगातार कार्य कर रहे हैं। उनके बारे में एक बात और भी कही जा सकती है। यह समस्त ‘आंदोलनजीवी’ देशी व विदेशी एनजीओ व फंडिंग एजेंसियों से भी किसी ना किसी प्रकार जुडे रहते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में एक और महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि देश को अस्थिर करने के लिए बाहरी शक्तियां प्रयास कर रहे हैं । उन्होंने एफडीआई शब्द का प्रयोग किया और कहा कि फारेन डेस्ट्रक्टिव आइडियोलाजी के प्रति सावधान किया।

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वास्तव में देखा जाए तो ‘आंदोलनजीवी’ व फारेन डेस्ट्रक्टिव आइडियोलाजी अलग अलग नहीं है । ये किसी न किसी रुप से एक दूसरे से जुडे हुए हैं । दोनों देश को अस्थिर करने व भारत के विखंडन के कार्य में लगे हैं ।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संचार की शैली जबरदस्त है। प्रधानमंत्री के ‘आंदोलनजीवी’ शब्द के प्रयोग के बाद उन्हें व इनके समर्थकों पर काफी चोट लगा है, ऐसा प्रतीत होता है। अपने आप को लिबरल बताने वाली एक पत्रकार सागरिका घोष ने इसके खिलाफ ट्वीट करते हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय को उद्धृत करते हुए लिखा कि जन आंदोलन सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन को देखते हुए एक स्वाभविक व जरुरी प्रक्रिया है। उन्होंने सवाल किया कि तो क्या दीनदयाल भी आंदोलनजीवी हैं?

जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि आंदोलन की मनाही नहीं है और लोकतंत्र के लिए आंदोलन व विरोध जरुरी शर्तें हैं, लेकिन प्रधानमंत्री ने आंदोलनकारी की बात नहीं की बल्कि आंदोलनजीवियों की बात की है। लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी मार्क्स, चेग्वेरा व जवाहर लाल नेहरु को पढने वाली व अपने आप को लिबरल बताने वाली सागरिका घोष को अब पंडित दीनदयाल को पढना पड रहा है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया जाना चाहिए। यदि यही स्थिति रही आगामी कुछ दिनों में केवल सागरिका को ही नहीं बल्कि उनके पति राजदीप सरदेशाई को भी स्वामी विवेकानंद व श्री अरविंदो को पढना पड़ सकता है।

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