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स्कूल खुलें, घरों से निकले नौनिहाल
बिहार, दिल्ली, उत्तराखंड, राजस्थान, उड़ीसा वगैरह राज्यों के स्कूलों की फिलहाल नवीं से लेकर 12 वीं कक्षाओं को शुरू कर दिया गया है। अब अन्य कक्षाओं के बच्चों को भी ज्यादा दिनों तक स्कूलों से दूर नहीं रहना होगा।
आर.के. सिन्हा
सुबह के वक्त बच्चों को अपने कंधों पर बैग लेकर स्कूल जाते हुए देखना वास्तव में बहुत सुखद होता है। पिछले साल मार्च में लॉकडाउन के बाद देशभर के स्कूल बंद कर दिए गए थे, कोरोना की बढ़ती चेन को ध्वस्त करने के लिए। अब कोरोना का असर अपने उतार पर दिखाई देने लगा और साथ ही कोरोना की वैक्सीन के बाजार में आने के बाद सरकार ने स्कूलों को भी धीरे-धीरे खोलने की अनुमति दे दी है।
बिहार, दिल्ली, उत्तराखंड, राजस्थान, उड़ीसा वगैरह राज्यों के स्कूलों की फिलहाल नवीं से लेकर 12 वीं कक्षाओं को शुरू कर दिया गया है। अब अन्य कक्षाओं के बच्चों को भी ज्यादा दिनों तक स्कूलों से दूर नहीं रहना होगा। कोरोना के कारण उत्पन्न स्थिति ने छोटे- छोटे मासूम बच्चों की जिंदगी को बुरी तरह से बदल डाला है। ये बच्चे लगभग 10 माह तक अपने स्कूलों के दोस्तों से खेल के मैदानों से, सामूहिक मनोरंजन से दूर रहे। बच्चों की खुशियों को कोरोना ने उनसे छीन लिया था। उन्हें मजबूरन घरों के अंदर ही रहना पड़ा। वे घरों में ही रहकर ही ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे थे। देखिए, ऑनलाइन कक्षाएं तो किसी भी सूरत में वास्तविक क्लास रूम का मुकाबला तो नहीं कर सकती। वाच्चें कक्षा में बैठकर अपने टीचर से सवाल कर सकते हैं। टीचर भी अपने विद्यार्थियों से बीच-बीच में पूछ सकते हैं कि उन्हें क्या समझ आया और क्या नहीं।
अब स्कूल खुलने लगे हैं तो मान लीजिए कि अध्यापकों और अभिभावकों की बैठकें भी शुरू हो जाएंगी। इन बैठकों में बच्चों के बारे में अध्यापक और अभिभावकों से नियमित चर्चा कर लेते हैं। मुझे कुछ अध्यापकों ने बताया कि वे स्कूल खुलने के बाद बच्चों में बड़ा बदलाव देख रहे हैं। बच्चे स्कूलों में आने को लेकर उत्साहित तो हैं। पर वे पहले से काफी ज्यादा गंभीर नजर आ रहे हैं। वे एक भी पल गप शप में बर्बाद करने के लिए तैयार नहीं हैं।
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दरअसल स्कूल का मतलब इमारत, क्लास रूम, ब्लैक बोर्ड या खेल का मैदान ही नहीं है। यहाँ आकर तो बच्चों का चौमुखी विकास होता है। वे अध्यापकों से सीखते हैं, लाइब्रेरी में जाकर पढ़ते हैं और वहां उन्हें कुछ अपने जीवनपर्यंत के दोस्त भी तो मिल जाते हैं। वे उनके सुख-दुख के साथी होते हैं। देखिए हरेक बड़ा लेखक, राजनेता, चित्रकार, वैज्ञानिक, प्रशासक, खिलाड़ी वगैरह अपना पहला कदम स्कूल में ही तो रखता है। वहीं से उसकी दिलचस्पियां बनने लगती हैं। इसलिए स्कूल जरूरी हैं। अब ये बच्चें फिर से स्कूल जाकर अपनी कक्षाओ में जाने को लेकर उत्सुक हैं। अपने दोस्तों से मिलने को उतावले हैं। हालांकि अभिभावकों में अभी भी कहीं न कहीं चिंता तो है ही । अब स्कूल प्रबंधन यह देखें कि उनके स्कूलों में सब मास्क पहने
और दो गज की दूरी बनाकर रखें। स्कूलों की युद्ध स्तर पर साफ-सफाई होती रहे। सैनिटाइजेशन अभियान जारी रहे। इन स्तर पर कतई कोताही नहीं होनी चाहिए I क्योंकि, कोरोना का असर अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। फिलहाल अभिभावक स्कूल प्रबंधनों के भरोसे पर ही तो अपने बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं। इसलिए उनके विश्वास की हत्या तो नहीं ही होनी चाहिए।
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यहां पर बात सिर्फ स्कूल और पढ़ाई तक ही सीमित नहीं रखी जा सकती। स्कूलों में पढ़ाई के अलावा खेल,संगीत,नाटक वगैरह की भी कक्षाएं होती हैं। इन गतिविधियों में भी बहुत से बच्चें भाग लेना पसंद करते हैं। ये ही आगे चलकर सचिन तेंदुलकर,विराट कोहली,सोनू निगम और इरफान खान बनते हैं। जरा सोचिए कि अगर आपके स्कूली जीवनकाल में कभी कोरोना जैसी विपत्ति आई होती और आप अपने दोस्तों से महीनों ही न मिल पाते तो कैसा महसूस करते । यह सोचकर ही सिहरन होने लगती है। सच में कोरोना के कारण मासूम बच्चों ने बहुत कष्ट झेला। इनकी खुशियां, हुड़दंग और मस्ती सब पर दुष्ट कोरोना की नजर लग गई।
इस बीच, जम्मू के बाद अब कश्मीर में भी एक मार्च से सभी सरकारी और निजी स्कूल खुल जाएंगे। स्कूल खुलने की जानकारी मिलने पर अभिभावकों और बच्चों में खुशी की लहर है। स्कूलों को पांच दिन पहले से सैनिटाइज किया जाएगा। बिना मास्क पहने कोई बच्चे को स्कूल में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। गेट पर ही थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी। शारीरिक दूरी का पालन करवाया जाएगा। वहां पर भी पहले से ऑनलाइन कक्षाएं तो चल ही रही थीं। जम्मू-कश्मीर के बच्चों ने अपने राज्य में आतंकियों की हरकतों के कारण भी बहुत कष्ट झेला है। अब उन्हें चैन की जिंदगी मिलनी चाहिए। ये बच्चे देश के बाकी प्रांतों के बच्चों की तरह अपने जीवन की दौड़ में आगे जाएं।
जम्मू-कश्मीर में पंडितों के पलायन से सामाजिक ताना-बाना बुरी तरह से ध्वस्त हो गया था। वहां के हिन्दू परिवारों के बच्चें अपने परिवारों के साथ अन्य जगहों पर चले गए। इस कारण शेष बच्चों ने अपने अनेकों दोस्तों को खोया। एक बात यह भी हुई कि राज्य के स्कूलों में पहले अध्यापक बड़ी तादाद में हिन्दू ही होते थे। वे भी आतंकवाद के कारण पलायन कर गए। तो कश्मीर के स्कूलों की स्थिति तो बहुत पहले से ही खराब हो गई थी।
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खैर,अब जब स्कूल खुलते जा रहे हैं तो पहले वाली स्थितियां फिर से लौटने लगेगी। बच्चें स्कूल में जाकर अपने अध्यापकों के साथ-साथ अपने दोस्तों से भी बातचीत में बहुत कुछ सीखने लगेंगे। वह ज्ञानोपार्जन का दौर फिर से वापस लौटेगा। ये बच्चे इंटरवल के समय अपने सहपाठियों के साथ-साथ बैठकर और मिल-बांटकर लंच भी करने लगेंगे।
उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा जैसे राज्यों में रहने वाले लोगों को पता है कि सुबह के वक्त हजारों लड़कियां साइकिलों पर सवार स्कूल जा रही होती हैं। उनके चेहरे पर विश्वास होता है कुछ सीखने का। अब वह मंजर फिर से दिखाई देने लगेगा । इन बेटियों को स्कूल जाते हुए देख कर नए भारत की सुखद तस्वीर जेहन में उभरती है। ये इस बात की गवाही भी होती है कि अब अभिभावक अपनी बेटियों को बेटों के समान ही शिक्षा देने को लेकर गंभीर है। अब फिर से इन बेटियों को स्कूल आते-जाते देखने को मिलेगा। ये बच्चें ही भारत की प्राण और आत्मा हैं। इन नौनिहालों की ओर देश को खास ध्यान देना होगा।
(लेखक वरिष्ठ स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)
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