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भारत-चीनः अभी बहुत कुछ बाकी है
चीन के साथ लद्दाख में चल रहे सीमा-विवाद का अब हल होता नजर आ रहा है। बस, वह नजर आ रहा है। अभी हम यह नहीं कह सकते कि वह हल हो गया है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि पिछले साल मई में जब चीन के साथ हमारी मुठभेड़ हुई थी, तब टकराव पांच क्षेत्रों में हुआ था।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
चीन के साथ लद्दाख में चल रहे सीमा-विवाद का अब हल होता नजर आ रहा है। बस, वह नजर आ रहा है। अभी हम यह नहीं कह सकते कि वह हल हो गया है। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि पिछले साल मई में जब चीन के साथ हमारी मुठभेड़ हुई थी, तब टकराव पांच क्षेत्रों में हुआ था। दोनों देशों के बीच की जो वास्तविक नियंत्रण रेखा है, उसके आस-पास के वे चार इलाके ये हैं- (1) गोगरा पोस्ट का पेट्रोलिंग पांइट 17 ए (2) पीपी के पास हाॅट स्प्रिंग (3) गलवान घाटी (4) देपसांग प्लेस ! इन पर अभी समझौता होना बाकी है।
चीनी सैनिकों ने कर ली थी घुसपैठ
इन इलाकों में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ कर ली थी। भारतीय और चीनी सैनिकों की मुठभेड़ में हमारे 20 जवान शहीद हुए और यह समझा जाता है कि चीनियों के लगभग 50 जवान मारे गए। अब रक्षा मंत्री राजनाथसिंह का संसद में बयान आया है कि चीन ने भारतीय जमीन खाली करना शुरु कर दिया है। यदि राजनाथसिंह की यह बात ठीक है तो मानना पड़ेगा कि नरेंद्र मोदी का यह बयान बिल्कुल गलत था कि चीन के फौजियों ने हमारी एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं किया है।
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वे अपनी ही जमीन से पीछे हट रहे हैं
यदि ऐसा है तो क्या वे अपनी ही जमीन से पीछे हट रहे हैं और उस पर हमारे कब्जे को स्वीकार कर रहे हैं ? अभी तो सिर्फ पेंगांग झील क्षेत्र से दोनों सेनाओं ने पीछे हटने पर हाँ भरी है। देखें, यह प्रारंभिक पहल भी ठीक से पूरी होती है कि नहीं ? वास्तव में ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (एलएसी) अवास्तविक है। उसे बताने के लिए न तो कोई दीवार खड़ी है, न तार लगे हैं, न कोई खाई है और न ही कोई नदी है। साल मैं सैकड़ों बार दोनों तरफ के सैनिक उसका उल्लंघन जाने-अनजाने करते रहते हैं।
फिर भी 1962 के बाद से अब तक उस रेखा पर कभी कोई गंभीर मुठभेड़ नहीं हुई है। यह बात मैं हमेशा पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों और जनरलों को अपनी बातचीत के दौरान बताता रहा हूँ। यह बताकर उनसे मैं कश्मीर पर शांतिपूर्ण वार्ता चलाने की अपील करता रहा हूँ। अब जो भारत-चीन समझौते की शुरूआत हुई है, मुझे विश्वास है कि शेष सभी नुक़्तों पर भी समझौता हो जाएगा, क्योंकि चीन पर अमेरिका के बाइडन-प्रशासन का दबाव बढ़ता जा रहा है और चीनी सरकार पर वे चीनी कंपनियां भी दबाव डाल रही हैं, जो भारत से हर साल करोड़ों-अरबों रुपया कमाती हैं।
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आप ज़रा गौर करें कि लद्दाख मुठभेड़ पर मोदी ने जब-जब भाषण दिए, उनमें चीन का एक बार भी नाम नहीं लिया। क्या चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग ने मोदी के इस शी-प्रेम पर ध्यान नहीं दिया होगा ? क्या ही अच्छा हो कि दोनों मित्र सीधी बात करें और भारत-चीन संबंधों को पुनः पटरी पर ले आएँ।
(लेखक- भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं