×

अफगानिस्तान: भारत चुप क्यों है?

मैं सोचता हूं कि अफगानिस्तान में जितनी अमेरिका की रुचि है, उससे ज्यादा भारत की होनी चाहिए, क्योंकि एक तो अफगानिस्तान भारत का पड़ोसी है, दूसरा भारत ने उसके पुनर्निर्माण में अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया है और तीसरा अफगानिस्तान शांत और स्थिर रहेगा तो भारत को मध्य एशिया के पांचों गणराज्यों के साथ उद्योग-व्यापार बढ़ाने में भारी सुविधा हो जाएगी।

SK Gautam
Published on: 11 July 2023 10:32 PM IST (Updated on: 11 July 2023 10:44 PM IST)
अफगानिस्तान: भारत चुप क्यों है?
X
डॉ. वेदप्रताप वैदिक

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ: हमारे विदेश मंत्री जयशंकर ने एक अमेरिकी संगोष्ठी में बोलते हुए कह दिया कि अफगान सरकार और तालिबान के बारे में भारत को कुछ नहीं बोलना चाहिए। चुप रहना चाहिए। पता नहीं, उन्होंने वहां ऐसा क्यों कह दिया ? शायद वे अमेरिकी सरकार का लिहाज करते हुए दिखाई पड़ना चाहते हों, क्योंकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुस्से में आकर अचानक तालिबान से अपनी बात तोड़ ली थी।

भारत को मध्य एशिया के पांचों गणराज्यों के साथ उद्योग-व्यापार बढ़ाने में सुविधा

लेकिन मैं सोचता हूं कि अफगानिस्तान में जितनी अमेरिका की रुचि है, उससे ज्यादा भारत की होनी चाहिए, क्योंकि एक तो अफगानिस्तान भारत का पड़ोसी है, दूसरा भारत ने उसके पुनर्निर्माण में अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया है और तीसरा अफगानिस्तान शांत और स्थिर रहेगा तो भारत को मध्य एशिया के पांचों गणराज्यों के साथ उद्योग-व्यापार बढ़ाने में भारी सुविधा हो जाएगी।

ये भी देखें : शीघ्र ही लाया जाएगा नया इमिग्रेशन अधिनियम, जानें क्या है ये

चौथा, यदि अफगानिस्तान, भारत और मध्य एशिया के बीच सेतु बनता है तो पाकिस्तान को सबसे ज्यादा फायदा होगा। उसकी बेरोजगारी दूर होगी, उसके उद्योग-धंधे और व्यापार बढ़ेंगे तथा उसके और भारत के संबंध भी सुधरेंगे। पाकिस्तान का वज़न बढ़ेगा। कश्मीर और पख्तूनिस्तान के मामले अपने आप सुधरेंगे। यह विश्लेषण मैं अपने 55 साल के अनुभव के आधार पर पेश कर रहा हूं।

मैंने न्यूयार्क और लंदन में बैठे-बैठे तालिबान नेताओं से सीधे संवाद किया था

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लगभग सभी प्रधानमंत्रियों से मेरा संवाद चलता रहा है। अफगानिस्तान के कई मुजाहिदीन और तालिबान नेता मेरे साथ काबुल विश्वविद्यालय में पढ़ा करते थे। जब 1999 में हमारे हवाई जहाज का अपहरण करके कंधार ले जाया गया था, तब प्र. मं. अटलजी के अनुरोध पर मैंने न्यूयार्क और लंदन में बैठे-बैठे तालिबान नेताओं से सीधे संवाद किया था।

ये भी देखें : ऐशबाग रामलीला में शिरकत करने पहुंचे CM योगी आदित्यनाथ, देखें तस्वीरें

मैं यह दावे से कहता हूं कि तालिबान चाहे पाकिस्तान की आज सक्रिय मदद ले रहे हों लेकिन यदि वे सत्ता में आ गए तो वे किसी का भी अंकुश बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे अमेरिका के चमचे नहीं बने तो वे पाकिस्तान के क्यों बनेंगे, कैसे बनेंगे ? इस वक्त ट्रंप के प्रतिनिधि जलमई खलीलजाद दुबारा इस्लामाबाद पहुंच गए हैं और तालिबान मुखिया अब्दुल गनी बिरादर भी।

भारत चाहे तो इस अफगान-संकट को सुलझाने में काबुल-सरकार को भी जोड़ सकता है

वे पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से भी मिले हैं। हो सकता है कि अमेरिका अपना टूटा तार फिर जोड़ ले लेकिन भारत की अकर्मण्यता आश्चर्यजनक है। भारत चाहे तो इस अफगान-संकट को सुलझाने में काबुल-सरकार को भी जोड़ सकता है। अफगानिस्तान के वर्तमान राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री, दोनों मेरे पुराने मित्र हैं। दोनों भारत प्रेमी हैं। अभी-अभी उन्होंने चुनाव भी लड़ा है।

ये भी देखें : क्या सावरकर के नाती को भीख मांगकर भरना पड़ा था पेट? यहां जानें सच

प्रधानमंत्री मोदी को खुद पहल करनी चाहिए। यदि काबुल सरकार, तालिबान और अमेरिका- इन तीनों को भारत एक जाजम पर बिठा सके तो कोई आश्चर्य नहीं कि पाकिस्तान भी कुछ देर बाद उसमें शामिल हो जाए। यदि भारत अभी खुलकर सामने नहीं आना चाहता है तो वह गैर-सरकारी स्तर पर तो पहल करवा ही सकता है।

SK Gautam

SK Gautam

Next Story