×

बिडेन क्या कुछ कर भी पाएंगे?

बिडेन की जीत कुछ वैसी ही है जैसी 1976 के चुनाव में जिमी कार्टर की थी। कार्टर की तरह बिडेन भी एक खास घटना या परिस्थितियों के कारण जीते थे

Roshni Khan
Published on: 11 Jan 2021 9:03 AM GMT
बिडेन क्या कुछ कर भी पाएंगे?
X

nilmani-lal

नीलमणि लाल

लखनऊ: अमेरिका के इतिहास के सबसे विवादित चुनाव के बाद अब जो बिडेन प्रेसिडेंट पद संभालने जा रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प व्हाइट हाउस से बहार तो जायेंगे लेकिन नए प्रेसिडेंट के रूप में बिडेन ने बहुत उम्मीदें भी नहीं जगाई हैं। कई राजनीतिक जानकारों का अनुमान है कि बिडेन एक सफल प्रेसिडेंट नहीं होने जा रहे। इसकी वजह उनकी परिस्थितिजन्य जीत, उनका राजनीतिक रिकार्ड और नए प्रशासन पर वाम विचारधारा का प्रभाव रहेगा।

ये भी पढ़ें:किसान आंदोलन से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट कल जारी करेगा आदेश

बिडेन की जीत कुछ वैसी ही है जैसी 1976 के चुनाव में जिमी कार्टर की थी

बिडेन की जीत कुछ वैसी ही है जैसी 1976 के चुनाव में जिमी कार्टर की थी। कार्टर की तरह बिडेन भी एक खास घटना या परिस्थितियों के कारण जीते थे न कि अपनी लोकप्रियता या लहर के कारण। हुआ ये था कि 1976 में अमेरिकी जनता का रिएक्शन रिचर्ड निक्सन के खिलाफ वाटरगेट स्कैंडल की वजह से बना था। वाटरगेट स्कैंडल, निक्सन के इस्तीफे और गेराल्ड फोर्ड द्वारा निक्सन को माफी से एक माहौल बन गया था। निक्सन के उपराष्ट्रपति स्पीरो अग्नेव पहले ही एक अलग घोटाले के चलते इस्तीफा दे चुके थे। इन सब हालातों का प्रभाव ये रहा कि जनता ने अपना गुस्सा निकाला और जिमी कार्टर चुनाव जीत गए।

joe-biden-america joe-biden-america (PC: social media)

एक ही मुद्दा – कोरोना

2020 के अमेरिकी चुनाव में भी सन 76 के तरह एक ही मसला रहा और वह था कोरोना महामारी का। इस महामारी ने अमेरिका को बुरी तरह प्रभावित किया है, बड़ी तादाद में लोगों की जानें गईं हैं। स्वाभाविक था कि इस बार के चुनाव में एक ही मुदा हावी रहा और वह था कोरोना का। जो बिडेन, उनकी पार्टी और उनके समर्थक मीडिया ने जम कर इसका फायदा उठाया और महामारी की आफतों के लिए डोनाल्ड ट्रम्प को दोषी ठहरा दिया। और इसी मुद्दे ने चुनाव परिणाम को तय कर दिया - जो बिडेन की जीत के रूप में।

अगर कोरोना न होता तो?

मान लीजिए कोरोना नहीं आया होता तो 2020 का चुनाव कौन जीतता? जवाब सीधा सा है - डोनाल्ड ट्रम्प। और वो भी सम्भवतः भारी बहुमत से। इसकी वजह रहती उनके कार्यकाल के दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आई तेजी। डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था को खासी तेजी दिलाई थी। अमेरिका के सभी सेक्टर्स और सभी जनसमूहों में रोजगार और आमदनी के आंकड़े इस बात की तस्दीक़ करते हैं।

लेकिन कोरोना के कारण आई आफत डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल में हुई आर्थिक वृद्धि के बेहतरीन रिकॉर्ड पर भरी पड़ी। अमेरिकी जनता ने कोरोना फैक्टर को चुना जिसके चलते जो बिडेन जीत गए। ये वैसे ही हुआ जैसे प्याज के दामों पर चुनाव नतीजा तय हो जाये। साफ़ है कि जब महामारी आई अगर उस समय डेमोक्रेट्स सत्ता में होते तो वे भी बाहर कर दिए जाते।

मीडिया की भूमिका

2020 के अमेरिका के चुनाव ने एक बात बहुत साफ़ कर दी कि वहां का मीडिया किस हद तक पक्षपाती है। हालाँकि सिर्फ चुनाव ही नहीं ट्रम्प के पूरे कार्यकाल में मीडिया का बड़ा वर्ग बहुत ही आक्रामक और एकपक्षीय रहा। ये वर्ग वही था जिसे बड़े कॉर्पोरेट कंट्रोल करते हैं और जो अपने हित साधता है। नामचीन अखबार, टीवी चैनल एक पार्टी की तरह काम करते रहे। सिर्फ वही बातें बढ़ा चढ़ा कर परोसी जातें रहीं जो ट्रम्प के खिलाफ थीं। मिसाल के तौर पर कोरोना महामारी की रिपोर्टिंग जिस आक्रामक तेवर के साथ पहले की जा रही थी उसमें अब बहुत नरमी नजर आने लगी है। ये सत्ता परिवर्तन का सीधा सीधा प्रतिबिम्ब है।

america-elections america-elections (PC: social media)

बहरहाल, कोरोना ने बिडेन को जितवा तो दिया लेकिन अब आगे होगा क्या?

- कोरोना महामारी तो अभी जाने वाली नहीं है। इसका खामियाजा बिडेन प्रशासन को भी भुगतना पड़ेगा। हां, फर्क इतना रहेगा कि उनके प्रति मीडिया का नेगेटिव रुख बहुत कम ही रहेगा।

- इकोनॉमी पर महामारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ना जारी रहेगा। साथ ही संघीय सरकार का महामारी के स्थानिक प्रभावों से डील करने में वही पुराना सीमित रोल रहेगा।

- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में सभी जजों के पद भरने, इलेक्टोरल कॉलेज व्यवस्था की समाप्ति और वाशिंगटन डीसी को राज्य का दर्जा देने जैसे मसले पर जनता का तुरंत रिएक्शन भी कांग्रेस यानी संसद में नजर आएगा।

- जो बिडेन के पुत्र हंटर बिडेन और उसके परिवार के चीन के साथ व्यापारिक रिश्तों का साया बिडेन पर लगातार छाया रहने वाला है।

- ये तय है कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा, इंटेलिजेंस और विदेश नीति पलट कर ओबामा काल वाली हो जाएगी। सीनियर पोजीशनों पर ओबामा काल वाले चेहरे फिर दिखाई देने लगें तो हैरत की बात नहीं होगी। नीतिगत बदलावों का देश विदेश के फ्रंट पर असर दिखाई देगा।

नीतियों में टकराव

बिडेन की सबसे बड़ी समस्या ये है कि उनकी नीतियां वर्तमान आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य वातावरण में फिट नहीं बैठती हैं। अपने चुनाव अभियान में बिडेन का एक ही सुर था कि प्रेसिडेंट ट्रम्प ने आंतरिक और विदेश नीति का कबाड़ा कर दिया है और सिर्फ बिडेन ही उसे दुरुस्त कर सकते हैं। लेकिन यहीं बात गड़बड़ा जाती है। ट्रम्प की नीतियों को पलटने के दुष्परिणाम होने की पूरी आशंका है। चीन के प्रभुत्ववादी आक्रामक तेवर के चलते अमेरिका वैसे ही अब नाजुक मोड़ पर है।

पद संभालने के साथ बिडेन के पल्ले सबसे पहला मुद्दा होगा कोरोना का

पद संभालने के साथ बिडेन के पल्ले सबसे पहला मुद्दा होगा कोरोना का। ट्रम्प के प्रशासन के अंतर्गत रिकॉर्ड समय मे वैक्सीन बन कर आ गयी और उसका रोलआउट भी शुरू हो गया। अब डिस्ट्रीब्यूशन का जटिल मामला बिडेन के हवाले है। इसके अलावा अब कोरोना के चलते अगर बड़ी संख्या में मौतें हुईं तो वे बिडेन और उनकी टीम के मत्थे जाएंगी। इसके अलावा लॉकडाउन के कारण आर्थिक डैमेज का ठीकरा भी बिडेन और डेमोक्रेट्स अधिकारियों पर फूटेगा। हां, ये बात अलग है कि बिडेन फ्रेंडली मीडिया अब सॉफ्ट रवैया दिखायेगा।

बिडेन के सामने बजट का मसला भी आने वाला है। बिडेन की पेशकश टैक्स बढ़ाने की है जिससे सभी आय वर्ग के लोगों पर प्रभाव पड़ेगा। लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित उच्च आय वर्ग के लोग होंगे।

कोरोना राहत पैकेज में जो अरबों डॉलर दिए गए हैं उनके चलते इन्फ्लेशन बढ़ना ही बढ़ना है। टैक्स बढ़ने के साथ साथ ये एक अलग आफत होगी। इसका नतीजा निवेश पूंजी का देश के बाहर जाने के रूप में आएगा जैसा कि ओबामा के कार्यकाल में हुआ था। इन्फ्लेशन बढ़ने से ब्याज दरें बढ़ेंगी और बेरोजगारी भी बढ़ेगी।

ट्रम्प ने आर्थिक मोर्चे पर बेहतरीन काम किया था

ट्रम्प ने आर्थिक मोर्चे पर बेहतरीन काम किया था। प्राइवेट सेक्टर में रिकॉर्ड रोजगार आये। अश्वेत, हिस्पैनिक और महिलाओं में बेरोजगारी दर रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर पर आ गयी थी। वेतन बढ़े थे। हालांकि कोरोना और लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई है लेकिन ट्रम्प काल की बराबरी कर पाना बेहद मुश्किल लग रहा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि बिडेन की टैक्स नीति और नरम व्यापार नीति के चलते हालात और खराब ही होंगे।

america-elections america-elections (PC: social media)

अमेरिका के ऊर्जा सेक्टर को बदलने का वादा किया हुआ

बिडेन ने अमेरिका के ऊर्जा सेक्टर को बदलने का वादा किया हुआ है। बिडेन का फोकस पेट्रोलियम की बजाए ग्रीन एनर्जी पर है लेकिन अब इतना फण्ड नहीं है कि एनर्जी सेक्टर में व्यापक बदलाव किया जा सके। इसके अलावा वो कोई भी नया सोशल जस्टिस प्रोग्राम लांच शायद ही कर पाएं। इसी तरह बिडेन डिफेंस खर्चे में कटौती करने पर मजबूर होंगे। इसका असर उनपर भी पड़ेगा जो चुनाव अभियान में उनको सपोर्ट कर रहे थे।

चीन से जिनके आर्थिक हित जुड़े हुए हैं वो कभी नहीं चाहेंगे

बिडेन की नीतियों का फायदा उठाने को चीन, ईरान, नार्थ कोरिया, रूस आदि तैयार बैठे हैं। चीन बिडेन प्रशासन की परीक्षा लेने के लिए साउथ चाइना सी और ताइवान में दबाव बढ़ाएगा। चीन से जिनके आर्थिक हित जुड़े हुए हैं वो कभी नहीं चाहेंगे कि बिडेन चीन के प्रति कड़ा रुख अपनाएं। विदेश नीति में बिडेन की तुलना ट्रम्प से जरूर की जाएगी। ट्रम्प ने जिस तरह से परंपरा से हट कर विदेश नीति चलाई थी वो बिडेन और डेमोक्रेट्स कतई नहीं कर पाएंगे।

ये भी पढ़ें:पढ़ाई नहीं पॉर्न देख रहे बच्चे, स्कूल का WhatsApp ग्रुप देख हिल गए लोग

कुल मिला कर बिडेन-हैरिस की टीम के सामने बहुत बड़ी चुनौतियाँ हैं। ट्रम्प और उनके समर्थक भी चुपचाप बैठने वाले नहीं हैं। दांव पर रिपब्लिकन पार्टी भी है क्योंकि उसके भीतर भी काफी मतभेद हैं। अमेरिका अपने इतिहास के सबसे नाजुक दौर में है और सिर्फ ट्रम्प की हार और बिडेन की जीत इससे उबार नहीं पायेगी क्योंकि जिस तरह अमेरिकी समाज दो हिस्सों में बंट गया है उसको सोशलिस्ट नीतियां शायद ही पाट पायें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Roshni Khan

Roshni Khan

Next Story