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Sikandar and PM Modi: आक्रामक सिकंदर का था यूनान, अब मोदी के भारत का हो गया !!

Sikandar and Modi: यूनान और भारत पुरातन संस्कृति-प्रधान तथा इतिहास-प्रसिद्ध देश हैं। अमीर संस्कृतिवाले। दोनों के राष्ट्रनायक भी तारीखी व्यक्ति हैं। मसलन सुकरात-अरस्तु यूनान में और भारत के कौटिल्य-हर्षवर्धन।

K Vikram Rao
Published on: 30 Aug 2023 10:53 PM IST
Sikandar and PM Modi: आक्रामक सिकंदर का था यूनान, अब मोदी के भारत का हो गया !!
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आक्रामक सिकंदर का था यूनान, अब मोदी के भारत का हो गया: Photo- Social Media

Sikandar and Modi: प्राचीन राष्ट्र यूनान (ग्रीस) की 25 अगस्त, 2023 की नरेंद्र मोदी के राजकीय प्रवास की रिपोर्टिंग भारतीय मीडिया में बड़ी रूखी और बेलज्जत थी। मेरा आकलन है। रोज मैं 27 दैनिक पढ़ता हूं और ग्यारह न्यूज़ चैनल देखता हूं। यूनान और भारत पुरातन संस्कृति-प्रधान तथा इतिहास-प्रसिद्ध देश हैं। अमीर संस्कृतिवाले। दोनों के राष्ट्रनायक भी तारीखी व्यक्ति हैं। मसलन सुकरात-अरस्तु यूनान में और भारत के कौटिल्य-हर्षवर्धन। मुझे याद आये कॉलेज के दिन जब इतिहास की कक्षा में प्रो. रामनारायण मिश्र बताते थे : “पोरस की वीरता का झेलम तू ही बता दे, यूनान का सिकंदर तेरे ही तट पर हारा।”

आक्रामक सिकंदर

आक्रामक सिकंदर भी यूनान का था। विश्वविजयी कहता था। पर तक्षशिला के बाद ही अपने घर मेसीडोनिया वापस चला। राह में मर गया था। भारत और यूनान का वैवाहिक रिश्ता रहा। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त की शादी पराजित यूनानी सेनापति सेल्यूकस के बेटी हेलेन से हुई थी। तब कौटिल्य की शर्त थी कि यूनानी राजकुमारी हेलन के पुत्र को मौर्य सिंहासन नहीं मिलेगा। इसी प्रस्ताव को नियम बनाया था जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद और सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1950 में। तब इंदौर नरेश यशवंतराव होलकर ने अपनी अमरीकी पत्नी से जन्मे पुत्र रिचर्ड को राजगद्दी देकर उत्तराधिकारी बना दिया था। आजाद भारत के इन तीनों नेताओं ने कहा कि विदेशी महिला की संतान को भारतीय नहीं माना जा सकता। मां का भारतीय होना अनिवार्य है।

यहां एक मूल प्रश्न पर सार्वजनिक बहस होनी चाहिए। दोषी पाये गए भारतीय राजनेताओं को इतिहास के कठघरे में खड़ा किया जाए। कारण ? गत चालीस सालों बाद मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जो यूनान गये। उनके पहले इंदिरा गांधी 1983 में गईं थीं। फिर दस लोग प्रधानमंत्री बने थे। इनमें तीन लोग तो विदेश मंत्री पद पर भी रहे थे। पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेई और इंद्रकुमार गुजराल। इन दिग्गजों को अहसास नहीं था कि यह पूर्वोत्तर यूरोपीय राष्ट्र भारत का परम सखा रहा। इसका भारत के लिए क्या महत्व है ? इसका इल्हाम केवल मोदी को ही होना था ?

यह बिंदु इसलिए भी गंभीर हो जाता है क्योंकि यूनान ने हमेशा भारत का साथ दिया। उसने कश्मीर को भारत का भूभाग माना। संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता पर जोर देता रहा। आर्थिक रूप से भी भारत में उद्योग लगाना चाहा था। हम 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करेंगे। मोदी की यात्रा का पहला प्रभावी नतीजा तो यह निकला कि इन एशियाई तथा यूरोपीय गणराज्यों में रणनीतिक साझेदारी हो गई। इसका आशय यही है कि दो या अधिक देशों के बीच उनके क्षेत्रों में उत्पन्न खतरों के असर और खतरों को कम करना है, जो समझौते में शामिल हैं। 'रणनीतिक साझेदारी' को 'गठबंधन' (Alliance) नहीं समझा जाता है। जब यूनान की राष्ट्रपति श्रीमती केटरीना सकेलरोपोलू ने चंद्रयान के लिए बधाई दी तो भारतीय प्रधानमंत्री का जवाब था : “यह केवल भारत नहीं वरन संपूर्ण मानवता की उपलब्धि है।” प्रवासी भारतीयों द्वारा मोदी के स्वागत में एथेंस हवाई अड्डे पर ढोल-नगाड़े के नाद पर वंदे मातरम गूंजना एक आह्लादमय घटना थी।

दो प्राचीन सभ्यताओं का मेल

आगामी सात सालों में, मोदी ने तय किया है, कि हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बातचीत के लिए प्लेटफार्म होना चाहिए। दो प्राचीन सभ्यताओं का स्वाभाविक मेल है और हमारे रिश्ते की नींव प्राचीन और मजबूत है। यूनान का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान मोदी को दिया गया। यह एथेना देवी की मूर्ति है। मोदी ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा : “यह यूनान के लोगों का भारत के प्रति सम्मान दर्शाता है।” मोदी ने गिनाया कि दोनों देशों के बीच कुशल प्रवासन की सुविधा के लिए जल्द ही एक और गतिशीलता साझेदारी के समझौते को मजबूत करने का निर्णय भी लिया है।

यूनान की चर्चा होती है तो वहां के सोशलिस्ट संघर्ष का संदर्भ लेना अनिवार्य है। तब भारत में आपातकाल (1975-77) थोपा गया था। जॉर्ज फर्नांडिस के लिए सोशलिस्ट इंटरनेशनल ने प्रचार कार्य में मदद की पेशकश की थी। तभी अपने राष्ट्र में फौजी तानाशाही को पछाड़कर ग्रीक सोशलिस्टों ने यूनान को आजाद कराया था। उसी दौर में ग्रीक समाजवादियों ने हिंद महासागर अथवा बंगाल की खाड़ी में यूनानी जहाज पर रेडियो व्यवस्था का सुझाव दिया था ताकि वहां से भारत में तानाशाही के विरुद्ध प्रचार अभियान चलाया जा सके। बड़ौदा में मुझे जॉर्ज ने रुपरेखा बनाने का जिम्मा दिया था। पर तब तक पुलिस ने जॉर्ज को कोलकता के चर्च में पकड़ लिया। मैं बड़ौदा में पकड़ा जा चुका था। ग्रीक सोशलिस्टों की यह मदद तब की नियंत्रित मीडिया के जाल को तोड़ने में सहायक होती। इस प्रस्ताव के लिए हम यूनान के आभारी रहे।

यूनान और भारत की मैत्री

इसी परिवेश में यूनान के महान क्रांतिकारी यूनानी जननायक का स्मरण भी होता है। नाम है मानोलिस ग्लेजोस जो आज सौ साल के होते वे तीन वर्ष पूर्व (3 मार्च 2020) को 97 की आयु में दिवंगत हो गए। इस वामपंथी नेता ने भारत के घोरतम और क्रूरतम शत्रु विंस्टन चर्चिल की हत्या की योजना रची थी। मगर कैद कर लिए गए। यही चर्चिल थे जिनसे हिटलर ने कहा था : “उपद्रवी गांधी को गोली से मार दो।” ग्लेजोस ही थे जिन्होंने एथेंस में नाजी कब्जे के दौरान जर्मन ध्वजा स्वस्तिक को (30 मई 1930) को पुराने किले के मस्तक से उखाड़ फेंका था। अगर यह सोशलिस्ट आज जीवित होता तो यूनान और भारत की मैत्री से गौरवान्वित होता। चालीस साल बाद ही सही प्रधानमंत्री की यात्रा से हिंदुस्तान को लाभ तो मिला, कम से कम।

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं । E-mail: [email protected])



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K Vikram Rao

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