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उत्तर प्रदेश की एनकाउंटर वाली पुलिस

उत्तर प्रदेश पुलिस की बहादुरी को सलाम जो एक कुख्यात, दुर्दान्त और दुःसाहसी आतंकवादी जो 8 पुलिसकर्मियों की बर्बरता से हत्या करने का दोषी - विकास दुबे को मार गिराया। बेशक पुलिस को सम्मानित करना चाहिए।

Newstrack
Published on: 16 July 2020 12:55 PM IST
उत्तर प्रदेश की एनकाउंटर वाली पुलिस
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मदन मोहन शुक्ला

उत्तर प्रदेश पुलिस की बहादुरी को सलाम जो एक कुख्यात, दुर्दान्त और दुःसाहसी आतंकवादी जो 8 पुलिसकर्मियों की बर्बरता से हत्या करने का दोषी - विकास दुबे को मार गिराया। बेशक पुलिस को सम्मानित करना चाहिए।

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लेकिन अफ़सोस पुलिस ने जो पटकथा लिखी वो किसी सी ग्रेड फ़िल्म से भी घटिया रही।बेशक इसका अंत होना ही चाहिए था लेकिन जिस तरह पुलिस ने किया वो न्यासंगत नहीं है।यहां पुलिस ने अपनी नाकामियों पर सिर्फ पर्दा डाला और अपनी खुंदस निकाली।

इसके साथ साथ यह इतना खूंखार कैसे बना,किसकी सह पर बना किसने इसके अपराधों को हवा दी यह सारे राज़ इसकी मौत के साथ दफ़्न हो गए।हम एक बार खुश हो सकते हैं चलो अच्छा हुआ मारा गया लेकिन जो इनके आका चाहे वे ब्यूरोक्रेसी में या पुलिस या राजनीति में हों,उनकी नर्सरी में एक दूसरा विकास दुबे तैयार हो रहा होगा।

जब तक समाज मे नेता-पुलिस-नौकरशाही की तिगड़ी है तब तक अपराध और अपराधी पनपते रहेंगे।इसी पर रोक लगाने के लिए एन एन वोहरा समिति की रिपोर्ट 1993 में आई थी जिसमें राजनीति में अपराध की घुसपैठ, राजनीतिज्ञों की अपराधियों से सांठगांठ के नेक्सस को तोड़ने के उपाय बताएं गए हैं, लेकिन सरकारों में इस रिपोर्ट का इतना भय है कि यह पिछले 27 साल से धूल चाट रही है ।

आज स्थिति यह हो गयी है कि संसद से लेकर विधानसभा अपराधियों से गुलज़ार हैं।2014 से पहले इनकी प्रतिशत 45 फीसदी थी जो आज बढ़ कर 70 फ़ीसदी से ऊपर चली गयी है जिसमें गंभीर अपराध का आंकड़ा करीब 56% है।

जल्दी किस बात की थी

उत्तरप्रदेश पुलिस को आखिर एनकाउंटर की इतनी जल्दी क्यों थी।अगर कहा जाए अपने साथियों की मौत का बदला ले लिया तो इस थ्योरी में ज़्यादा दम नहीं है क्योंकि इस कृत्य के लिए पुलिस स्वयं जिम्मेदार है।जिस तरह की लापरवाही दबिश के दौरान की गई तथा पुलिस के अंदर से ही जिस तरह इन्फॉर्मेशन दबिश की लीक हुई और उसमें जांच में जिन पर शक की सुई घूम रही उसमे बलि का बकरा छोटे अधिकारी बन रहे जबकि उच्च अधिकारियों की ज़िम्मेदारी ज़्यादा बनती है।

जिस नाटकीय ढंग से विकास दुबे ने उज्जैन में मध्यप्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया जिसे पुलिस गिरफ़्तारी बता रही है लेकिन वहां के ज़िला कलेक्टर ने बताया कि विकास दुबे ने हमे फ़ोन करके आत्मसमपर्ण करने की बात कही थी।यहाँ से विकास दुबे तो समझ रहा था उसका अब एनकाउंटर नहीं होगा लेकिन शक तब गहराया जब एक मध्यप्रदेश पुलिस के अधिकारी का वीडियो वायरल होता है वो कह रहा है,"मुझे शक है कि वो कानपुर पहुँचेगा भी,कि नहीं"। यही से इसका भविष्य तय हो गया।

यहाँ से किस तरह से कदम कदम पर पुलिसिया स्क्रिप्ट में ट्विस्ट आता गया।

यही से सवाल गहराने लगा यह एनकाउंटर कहीं पहले से फिक्स तो नहीं-मुठभेड़ के दावों पर बड़ा सवाल यह है कि किन परिस्थितियों में एस टी एफ़ ने कुख्यात आतंक का प्रयाय को हथकड़ी नहीं पहनाई थी।जबकि प्रेमशंकर शुक्ला वर्सेज दिल्ली प्रशासन के केस में कोर्ट ने कहा था दुर्दान्त अपराधी को हथकड़ी लगाई जा सकती है।

आखिर क्यों उज्जैन में विकास को कोर्ट में ट्रांजिट रिमांड पर नही लिया गया।अगर लेते तो कोर्ट में पेश करना होता तो पुलिस फर्जी एनकाउंटर कैसे करती?

दावा किया जा रहा है कि विकास को उज्जैन से लाये जाने के दौरान जालौन स्थित टोल प्लाजा पर टाटा सफारी में सवार देखा गया था।जबकि घटनास्थल पर टी यू वी 300 गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हुई जिस पर विकास को सवार बताया गया।सवाल है कि कानपुर के पास पहुँचने पर विकास की गाड़ी क्यों बदली गयी।क्या पहले से स्थान और कैसे एनकाउंटर करना है उसकी स्टोरी लिख दी गयी थी।

आई जी मोहित अग्रवाल का कहना गाड़ी बदली नही गयी। ए डी जी कानून प्रशांत कुमार का कहना है सुरक्षा कारणों से गाड़ी बदलना कोई बड़ी बात नही है। यहां गाड़ी पलटने पर अलग अलग पुलिस अधिकारियों के व्यक्तव्य आये है।एस टी एफ के अनुसार अचानक गाय का झुंड आने से गाड़ी अनियंत्रित होकर पलट गई।

गाड़ी पलटने की कहानी में झोल

एस एस पी दिनेश कुमार के अनुसार डिवाइडर से टकराकर पलटी जबकि वहां कोई डिवाइडर ही नही था। सबसे चौकाने वाली बात गाड़ी सड़क के समांतर पलटी थी उसमें कोई डेंट नही था केवल बम्पर निकला था। न गाड़ी का शीशा टूटा न ही टायर के घिसटने के निशान थे ज़मीन वहां समतल थी।

शक का दूसरा बड़ा कारण एस टी एफ के वाहनों के पीछे चल रहे मीडिया कर्मियों के वाहनों को घटनास्थल से 2 किलोमीटर पहले क्यों रोका गया?

प्रत्यक्षदर्शियों ने गोली चलने की आवाज़ तो सुनी जिसकी पुष्टि की ।लेकिन किसी ने दुर्घटना होते नही देखा।

सवाल यह भी है कि जिस दुर्घटना में पुलिसकर्मी घायल होकर मूर्छित हो गए गाड़ी पलटी हुई ,सारे डोर लॉक ।सारे लोग एक दूसरे पर गिरे हुए तो वो क्या भला चंगा था और कैसे अचानक इंस्पेक्टर रमाकांत पचौरी की पिस्टल छीनने औऱ पलटे वाहन से निकल कर भागने में सफल हुआ।असलहों से लैश पुलिस वाले उसे रोक भी न सके।यह तो एस टीएफ़ की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान है।

अनुत्तरित सवाल

विकास के दोनों पैरों में रॉड पड़ी थी और वो लंगड़ा के चलता था तो वो फिर भी भागने में कैसे सफल हुआ?

दुर्घटना स्थल से करीब 200 मीटर तक कीचड़ भरे कच्चे रास्ते पर फायरिंग करते भागता रहा और एसटी एफ उसे दबोच नही सकी।

एसटीएफ ने उसके पैर में गोली क्यों नही मारी?

क्यों उसके सीने में तीन गोली मारी गयी?

यह तो सुप्रीम कोर्ट के 2014 के एक जजमेंट का उलंघन है जिसमें एनकाउन्टर की गाइडलाइन्स बताई गई हैं।

पुलिस ने क्षतिग्रस्त वाहन को भी जल्द क्रेन से हटा दिया बिना किसी जांच के,क्यों?

विकास उज्जैन में निहत्था सामने आया था और उसने खुद ही अपनी पहचान बताई थी तो फिर उसने एसटीएफ़ की हिरासत से भागने का कदम क्यों उठाया?

पुलिसिया कहानी

यह कुछ अनुत्तरित सवाल जो शायद जांच में सामने आये।लेकिन यह जो एनकाउंटर की कहानी गड़ी गई वो पूरी तरह से पुलिसिया है ।जैसे चार पुलिस वालों को भी गोली लगी वो छूते हुए निकली,यह स्टोरी हर एनकाउन्टर की होती है कि बदमाश अचानक हथियार छीन कर भागा फायर किया पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई।

सफेदपोश जो राजनीति से लेकर नौकरशाही और पुलिस में सक्रिय हैं-अपराधियों के गॉड फादर हैं। इनकी नर्सरी में कई विकास दुबे तैयार हो रहे है उन्होंने राहत की सांस ली होगी।यह एनकाउन्टर न होकर कोल्ड ब्लडेड मर्डर है।आम जन खुश है। बुरे को मारा लेकिन बुराई को नही मारा।खामोश कर दिए गए विकास दूबे कई सफेदपोशों के राज़- राज़ ही रह गए।याद हो,श्री प्रकाश शुक्ल खूंखार गैंगेस्टर, 1999 में बड़े ही नाटकीय ढंग से पकड़ कर एनकाउंटर किया जाता है,इसने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मारने की 6 करोड़ की सुपारी ली थी।पार्टी के अंदर सुगबुगाहट थी यह सुपारी कल्याण सिंह की कैबिनेट के एक मंत्री ने ही दी थी लेकिन यह राज़ एनकाउंटर के साथ दफ़्न हो गया।

खेल खत्म पैसा हज़म।सवाल फिर हवा में, आख़िर यह इतना ताकतवर, कुख्यात और दुर्दान्त किसकी सह पर बना ।इतना दुःसाहस कहाँ से आया कि इसने 8 पुलिस वालों का बेरहमी से कत्ल कर दिया।इस सवाल का जबाब पुलिस को ही ढूंढना होगा यही आठ पुलिस वालों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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यह तो तय है एनकाउंटर सवालों के घेरें में है तथा सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन्स जो एनकाउंटर की है उसकी अनदेखी हुई है।लिहाज़ा सी आर पी सी की धारा 176 के तहत मामले की एफआईआर दर्ज की जाएगी जो इलाके से संबंधित कोर्ट भेजी जाएगी।जाँच राज्य की सी आई डी या किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से कराई जाएगी।जो पूरी तरह साइंटिफिक, अच्छी तरह दस्तावेज आधारित और निर्णायक जांच रिपोर्ट तैयार करेगी।

यह जाँच एसपी रैंक का अधिकारी करेगा। मजिस्ट्रेट से भी इसकी जांच कराई जाए तथा इसकी रिपोर्ट इलाके के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को भेजी जाए। एनकाउंटर में इस्तेमाल हथियार को पुलिस सील करके जांच के लिए फोरेंसिक और बल्लस्टिक लैब भेजे। पोस्टमार्टम करने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मानकों का पालन हो।जब तक जांच न पूरी हो तब तक एनकाउंटर में शामिल पुलिस कर्मियों को प्रमोशन और पुरस्कार से वंचित रखा जाए। आगे देखना है इस प्रकरण का किस तरह से पटाक्षेप होता है।

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