आयकर स्लैब में बदलाव एक तीर से कई शिकार

आर्थिक मंदी से निपटने के बड़े प्रयास के तहत इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव करके वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने मध्यम वर्ग की परचेजिंग पावर बढ़ाने की प्रयास किया है ताकि बाजार को गति मिल सके।

Roshni Khan
Published on: 1 Feb 2020 10:03 AM GMT
आयकर स्लैब में बदलाव एक तीर से कई शिकार
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रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: आर्थिक मंदी से निपटने के बड़े प्रयास के तहत इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव करके वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने मध्यम वर्ग की परचेजिंग पावर बढ़ाने की प्रयास किया है ताकि बाजार को गति मिल सके। वित्त मंत्री ने आयकर स्लैब में बड़ा बदलाव किया है। इस नई व्यवस्था में वित्त मंत्री ने नये पुराने स्लैब को चुनने का विकल्प करदाताओं पर छोड़ा है। इनकम टैक्स के लिए नया विकल्प पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा है कि जो पुरानी व्यवस्था से टैक्स नहीं देना चाहते हैं तो उनके लिए नया विकल्प है लेकिन जो लोग पुरानी व्यवस्था से ही टैक्स देना चाहते हैं उनको नई व्यवस्था का लाभ नहीं मिलेगा और नई व्यवस्था वालों को पुरानी व्यवस्था का लाभ नहीं मिलेगा।

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वित्त मंत्री का सीधा फंडा है करदाता पांचों उंगलियां घी में नहीं रख सकता। नई व्यवस्था में पाँच लाख रुपए तक की कमाई वालों को कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था। इसमें कोई छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया गया। यानी ढाई लाख तक आमदनी पर कोई कर नहीं उसके ऊपर ढाई से पांच लाख तक 5 फीसद आयकर तब लागू होगा जब आप बचत फीस या होम लोन से संबंधित कागज पेश न कर पाएं। नया टैक्स स्लैब पांच लाख से अधिक आय वालों के लिए शुरू होता है। पांच से 7.5 लाख रुपए तक की कमाई वालों को 10 फ़ीसदी टैक्स देना होगा। 12.5 लाख रुपये से 15 लाख रुपए तक की कमाई पर 25 फ़ीसदी टैक्स का भुगतान करना होगा और 12.5 लाख रुपए से 15 लाख रुपए तक की कमाई पर 25 फ़ीसदी टैक्स देना होगा। लेकिन 15 लाख से ऊपर कमाई वालों को अब 30 फीसद टैक्स देना होगा। पुरानी व्यवस्था में ढाई लाख तक कमाई वालों पर कोई टैक्स नहीं था नई व्यवस्था में यह आंकड़ा दोगुना हो गया है। नई व्यवस्था में ढाई से पांच लाख तक की कमाई वालों को 5 फीसद टैक्स देना होता था यह व्यवस्था नए विकल्प में नहीं है इस स्लैब को खत्म करते हुए पांच से साढ़े सात लाख तक कमाई करने वालों को नया विकल्प चुनने पर दस फीसद टैक्स देना होगा।

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पुरानी व्यवस्था में पांच से दस लाख तक कमाई करने वालों को बीस फीसद टैक्स देना होता था लेकिन नई व्यवस्था में एक नया स्टैब बनाते हुए साढ़े सात से दस लाख आमदनी वालों को 15 फीसद टैक्स देय कर दिया है यानी पांच फीसद की छूट इस इनकम ग्रुप के लोगों को भी मिली है। पुरानी व्यवस्था में दस लाख से ऊपर इनकम वालों को तीस फीसद टैक्स देना होता था लेकिन नए विकल्प में दो नए स्लैब दिये गए हैं जिसमें दस से साढ़े बारह लाख आय वाले ग्रुप के लोगों को अब बीस फीसद इनकम टैक्स देना होगा। और साढ़े बारह से 15 लाख इनकम वाले ग्रुप को 25 फीसद टैक्स देना होगा। यानी इन दोनो नए स्लैब में आने वाले लोगों को दस से पांच फीसद का फायदा टैक्स में मिलेगा। हां 15 लाख से ऊपर इनकम ग्रुप के लोगों को अब तीस फीसद टैक्स देना होगा।

गौरतलब है कि गत वर्ष वित्त मंत्री ने कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के साथ व्यक्तिगत आयकरदाताओं को इसी तरह से कुछ राहत देने की बात की थी। जिसका स्वागत हुआ था। कर की दर में कटौती या स्लैब या छूट की सीमा में कुछ बदलाव की उम्मीदें थीं। इसकी वजह भी थी कि अगर ऐसा होता है तो मध्यम वर्ग के हाथों में खर्च करने की क्षमता बढ़ जाएगी, इसका सीधा फायदा यह होगा कि बाजार को गति मिलेगी और खपत को बढ़ावा मिलेगा और मांग बढ़ने से आपूर्ति के लिए ठप हो चुकी इकाइयां भी चालू हो जाएंगी। हालांकि, वित्त मंत्री ने भारी राजकोषीय घाटा देखते हुए भी यह साहसिक कदम उठाया है जो कि सराहनीय है।

पुरानी टैक्स दर नई टैक्स दर

नई व्यक्तिगत आय कर व्यवस्था में निम्नलिखित कर ढांचे का प्रस्ताव रखा गया है :

कर योग्य आय का स्लैब (रुपये में)आय कर की वर्तमान दरेंनई कर दरें
0-2.5 लाखछूटछूट
2.5-5 लाख5 प्रतिशत5 प्रतिशत
5-7.5 लाख20 प्रतिशत10 प्रतिशत
7.5-10 लाख20 प्रतिशत15 प्रतिशत
10-12.5 लाख30 प्रतिशत20 प्रतिशत
12.5-15 लाख30 प्रतिशत25 प्रतिशत
15 लाख से ऊपर30 प्रतिशत30 प्रतिशत

बजट

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वित्त मंत्री ने आयकर स्लैब में जो बदलाव किया है वह आर्थिक मंदी के संकेतकों को देखते हुए किया है। मंदी का एक बड़ा संकेत यह था कि लोग रोटी कपड़ा की खपत पर केंद्रित होकर अन्य वस्तुओं को गैरजरूरी मानकर उनका उपभोग कम कर देते हैं। मंदी जैसे बढ़ती है लोग खाने पीने और इलाज के लिए पैसा रोकने लगते हैं और बिस्कुट, तेल, साबुन, कपड़ा, धातु जैसी सामान्य चीजों के साथ-साथ घरों और वाहनों की बिक्री घटती चली जाती है।

आर्थिक मंदी के दौरान लोगों के घरों का बजट बिगड़ने लगता है क्योंकि उनके पास पैसा घट रहा होता है ऐसे में वह जरूरत की चीजों पर भी खर्च को काबू में करने का प्रयास करते हैं।

पिछले कई सालों से वाहनों की बिक्री लगातार घट रही है। हालात यह हो गई है कि तमाम कारखाने बंद हो रहे हैं प्रोडक्शन रुक गया है। क्योंकि मार्केट बिक्री न होने से उत्पादों से पटा पड़ा है। यह मंदी का बड़ा संकेत है।

काफी समय से जारी है मंदी से निपटने के प्रयास

मंदी अचानक नहीं आयी है इसकी आहट संप्रग के शासन काल में ही देखने को मिल गई थी। गौरतलब है कि मनमोहन सिंह ने भी संप्रग शासन में नरेगा योजना के जरिये लोगों की परचेजिंग पावर बढ़ाने का काम किया था। जिसके उस समय सकारात्मक नतीजे भी आए थे और मंदी पर काफी हद तक कंट्रोल भी किया जा सका था।

पिछले बजट में किसानों के खाते में सीधे धन भेजकर एनडीए सरकार ने भी मंदी को दूसरे ढंग से रोकने की कोशिश की। इसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए इस बार शहरी आबादी या नौकरीपेशा वर्ग को कर स्टैब में बदलाव के जरिये वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने परचेजिंग पावर देकर बाजार की ओर भेजने का प्रयास किया है ताकि रियल स्टेट को गति मिले लोग जमीन, मकान खरीदने के लिए आगे आएं। कारों की बिक्री बढ़े। वस्तुओं से पटे पड़े बाजारों का बोझ घटे।

यह कहा जाता है कि जब लोगों के पास अतिरिक्त पैसा होता है, तभी वह गाड़ी खरीदना पसंद करते हैं। इससे लोगों के अन्य क्षेत्रों में निवेश की संभावना भी बढ़ेगी। क्योंकि जब लोगों के पास पैसा बच ही नहीं रहा है तो वह बैंक या निवेश के अन्य साधनों में पैसा कहां से लगाएंगे। और जब लोग अपनी बचत नहीं कर पाएंगे या नहीं करेंगे तो बैंकों या वित्तीय संस्थानों के पास कर्ज देने के लिए पैसा कहां से आएगा।

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वित्त मंत्री ने लोगों की सामान्य मानसिकता को बखूबी समझा है। मौजूदा सिस्टम में लोग पैसा खर्च करने या निवेश करने से परहेज कर रहे थे लोग अपने पैसे को बुरे वक्त में इस्तेमाल के लिए जोड़ रहे थे। ऐसी स्थिति में ऐसा कदम उठाया जाना समय की डिमांड थी।

वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने भी कहा था कि निवेश आर्थिक विकास और उपभोग का प्रमुख संचालक है। यहां तर्क सीधा है। निवेश से रोजगार सृजित होते हैं। ये नौकरियां लोगों को आय प्रदान करती हैं। लोग इस पैसे को खर्च करते हैं और यह उपभोग को बढ़ावा देता है। इससे अन्य लोगों को भी आय अर्जित करने में मदद मिलती है। ये लोग भी पैसा खर्च करके खपत के लिए एक और विकल्प प्रदान करते हैं। इस तरह से यह पूरा चक्र काम करते हुए आर्थिक गतिविधियों को गति देता है।

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन के आयकर स्लैब में बदलाव का सकारात्मक ढंग से स्वागत होने से आर्थिक परिदृश्य में सुधार की उम्मीदें बढ़ी हैं।

Roshni Khan

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