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संसद के भूमि पूजन से परेशान शैतान
जरा इत्तेफाक देखें कि जब राफेल को सौंपे जाने से पहले हुई पूजा पर हमारे कुछ कुछ कथित ज्ञानी जन निंदा रस का सुख ले रहे थे तब पाकिस्तान के साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री फवाद चौधरी ने भी राफेल पूजा का मजाक उड़ाया था। दशहरे पर फ्रांस ने भारत को पहला राफेल फाइटर जेट सौंपा था।
आर.के. सिन्हा
एक बात समझ ही ली जानी चाहिए कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब यह कदापि नहीं होता है कि कोई देश अपनी धार्मिक परम्पराओं और सांस्कृतिक आस्थाओं को छोड़ दें। यह तो असंभव सी बात है। विगत दिनों देश के नए बनने वाले संसद भवन के शिलान्यास कार्यक्रम से पहले भूमि पूजन और सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन हुआ। इस मौके पर भी कुछ सिरफिरे सेक्युलरवादियों के पेट में दर्द हो गया कि वहां पर सिर्फ भूमि पूजन ही क्यों हुआ? उनके कहने का मतलब अन्य धर्मों की अनदेखी हुई। जब उन्हें प्रमाण दिए गए कि भूमि पूजन के साथ सर्वधर्म प्रार्थना सभा भी हुई तो भी वे चुप तो नहीं ही हुए। ये वे ही विक्षिप्त तत्व हैं, जिन्हें तब भी तकलीफ हुई थी जब फ्रांस ने भारत को राफेल फाइटर जेट विमानों की पहली खेप सौंपी थी। इन्हें तब भी तकलीफ इसी कारण से थी कि वहां पर भी राफेल का पूजन हुआ था।
समानता सेक्युलरवादियों और पाक के मंत्री में
जरा इत्तेफाक देखें कि जब राफेल को सौंपे जाने से पहले हुई पूजा पर हमारे कुछ कुछ कथित ज्ञानी जन निंदा रस का सुख ले रहे थे तब पाकिस्तान के साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री फवाद चौधरी ने भी राफेल पूजा का मजाक उड़ाया था। दशहरे पर फ्रांस ने भारत को पहला राफेल फाइटर जेट सौंपा था। पारंपरिक तौर पर रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने इसकी पूजा की थी। भारत में दशहरे पर शस्त्र पूजा की प्राचीन और पारम्परिक धार्मिक परंपरा है। फ्रांस में शस्त्र पूजा पर राजनाथ ने कहा था कि अलौकिक शक्ति में हमारा पूर्ण विश्वास है। हालांकि पूजा को गलत बताने वालों को कौन बताए कि संसार में केवल दो चीजें ही अनंत हैं- ब्रह्मांड और विस्तार। तमाम हल्की बातों को किनारे रख दें। अगर कोई भारतीय हमारी परंपरानुसार पूजा करता है, तो किसी को भी उसकी आलोचना करने की क्या जरूरत है।
रक्षा मंत्री ने केवल भारतीय परंपराओं का निर्वहन किया था। अब बिना जाने-समझे यह कहा जाने लगा कि भूमि पूजन की क्या जरूरत थी? क्या शस्त्र पूजन और भूमि पूजन में मीन मेख निकालने वालों को पता नहीं है कि भारत के संविधान की मूल प्रति में नटराज, अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण और स्वर्ग से देवनदी गंगा का धरती पर अवतरण करती तस्वीरें में भी हैं। यह नहीं, भारत के संविधान की मूल प्रति पर शांति का उपदेश देते भगवान बुद्ध भी हैं। हिन्दू धर्म के एक और अहम प्रतीक शतदल कमल भी संविधान की मूल प्रति पर हर जगह मौजूद हैं। पूरा मुखपृष्ठ ही कमल दल को संजोकर बनाया हुआ है। सच में संविधान की मूल प्रति पर छपी राम, कृष्ण और नटराज की तस्वीरें यदि आज लगाई गई होती, तो इस कदम को सांप्रदायिक कहकर उसका घोर विरोध शुरू हो गया होता। संविधान की मूल प्रति में मुगल बादशाह अकबर भी दिख रहे हैं और सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह भी वहां मौजूद हैं। मैसूर के सुल्तान टीपू और 1857 की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के चित्र भी संविधान की मूल प्रति पर उकेरे गए हैं। तो अब सबको समझ आ जाना चाहिए कि भारत का संविधान ही देश की समृद्ध संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का पूरा सम्मान करता है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नए संसद भवन के शिलान्यास के बाद भूमि पूजन और सर्व धर्म प्रार्थना सभा भी हुई।
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गांधी और सर्वधर्म प्रार्थना सभा
अगर बात सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं की करें तो इन्हें सबसे पहले आयोजित करने का श्रेय महात्मा गांधी को ही जाता है। वे जब राजधानी के वाल्मिकी मंदिर और फिर बिड़ला मंदिर में रहे तो सर्वधर्म प्रार्थना सभायें रोज होने लगी थीं। हालांकि, तब बहाई, यहूदी या पारसी धर्म की प्रार्थनाएं नहीं होती थीं। राजधानी में संसद भवन की नई बनने वाली इमारत के भूमि पूजन के बाद सर्वधर्म प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया, जिसमें बौद्ध, यहूदी, पारसी, बहाई, सिख, ईसाई, जैन, मुस्लिम और हिन्दू धर्मों की प्रार्थनाएं की गईं। इसकी शुरूआत हुई थी बुद्ध प्रार्थना से। उसके बाद बाइबल का पाठ किया गया। सर्वधर्म प्रार्थना सभा में हरेक धर्म के प्रतिनिधि को 5 मिनट का वक्त मिलता है। बहाई धर्म की प्रार्थना को पढ़ा सुश्री नीलाकशी रजखोवा ने। उनके बाद यहूदी धर्म की प्रार्थना हुई। यहूदी प्रार्थना के बाद जैन धर्म की प्रार्थना और उसके पश्चात गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ हुआ और फिर कुऱआन की आयतें पढ़ीं गईं। ये जरूरी नहीं है कि सर्वधर्म प्रार्थना सभा में भाग लेने वाले अपने धर्म के धार्मिक स्थान से ही जुड़े होंगे। वे अपने धर्म के विद्वान भी हो सकते हैं। सबसे अंत में गीता पाठ किया गया। तो यह है भारत का धर्म निरपेक्ष चरित्र।
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अफसोस यह होता है कि भारत में कुछ लोगों को हिन्दू देवी-देवताओं का नाम लेने से भी तकलीफ होती है। जो लोग अब भूमि पूजन का विरोध कर रहे थे वे ही सुप्रीम कोर्ट के राम मंदिर मसले पर फैसले आने से नाखुश भी थे। प्रभाकर मिश्र ने अपनी महत्वपूर्ण किताब 'एक रुका हुआ फैसला' में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर लिखा है- "सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण या एएसआई) की रिपोर्ट के मुताबिक जो ढांचा ढहाया गया था, उसके नीचे मंदिर मिलने के सबूत मिले थे।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में एएसआई की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता।" पर जरा देखिए कि कोर्ट के इतने अहम फैसले के बाद भी भारत के बहुत सारे सेक्युलरवादी और असदुद्दीन ओवैसी जैसे घोर सांप्रदायिक नेता यह कहते रहे कि कोर्ट का फैसला सही नहीं है। समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया जी कहते थे कि "भारत के तीन सबसे बड़े पौराणिक नाम - राम, कृष्ण और शिव हैं। उनके काम के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी प्राय: सभी को, कम से कम दो में एक को तो होगी ही। उनके विचार व कर्म, या उन्होंने कौन-से शब्द कब कहे, उसे विस्तारपूर्वक दस में एक तो जानता ही होगा। भारत में कितनी बार यहां की जनता राम का नाम लेती है। यह आंकड़ा तो अरबों में पहुंच जाएगा।"
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अब जरा सोचिए कि जिस देश के कण-कण में राम बसे हों, वहां पर राम नाम बोलने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सीधे-सरल लोगों को जेल भेज रही थी । क्या कभी किसी ने सोचा था कि भारत में राम नाम बोलने पर भी जेल हो सकती है या धमकियां मिल सकती है? तो यह हालात बना दिए हैं देश के सेक्युलरवादियों ने। इसके विरोध में जब आम जन का विस्फोट होगा तब इनकी हालात क्या होगी, इन्हें जरा यह भी तो एक क्षण के लिये सोच लेना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)
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