TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

यादों के झरोखे से: नेक इंसान के साथ निर्भीक पत्रकार थे दिलीप अवस्थी

दिलीप अवस्थी लगभग 45 साल पुराने दोस्त थे जो मेरे लिए भाई से बढ़कर थे। दिलीप अवस्थी एक भरोसेमंद दोस्त, नेक इंसान, शानदार व्यक्तिव, बहुत ही पैनी नजर वाले निडर पत्रकार, कुशल संपादक और सेकुलर मिजाज के मालिक थे।

raghvendra
Published on: 5 March 2021 3:27 PM IST
यादों के झरोखे से: नेक इंसान के साथ निर्भीक पत्रकार थे दिलीप अवस्थी
X
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप अवस्थी

Pradeep Kapoor

प्रदीप कपूर

दिलीप अवस्थी लगभग 45 साल पुराने दोस्त थे जो मेरे लिए भाई से बढ़कर थे। दिलीप अवस्थी एक भरोसेमंद दोस्त, नेक इंसान, शानदार व्यक्तिव, बहुत ही पैनी नजर वाले निडर पत्रकार, कुशल संपादक और सेकुलर मिजाज के मालिक थे। पिछले 45 सालों में हम दोनों ने बहुत कुछ साथ—साथ किया। होली ईद बकरीद सभी त्योहारों में साथ—साथ जाना, लोगों से मिलना।

हम दोनों को खाने का बहुत शौक था तो लखनऊ की कोई गली नहीं बची जहां के शाकाहारी या मांसाहारी खाने का स्वाद न लिया हो। यूपी प्रेस क्लब भी हम दोनों साथ जाते थे तब लोग कहते कि पीने कम खाने ज्यादा जाते थे।

दिलीप अवस्थी और हमने पायनियर से शुरुआत की थी वे मुझसे थोड़ा सीनियर थे। लेकिन तब से लेकर पिछले पांच दिन पहले तक हम दोनों निरंतर संपर्क में थे। मुझे यह कहते हुए बहुत खुशी होती है कि दिलीप ने जिस संस्था में रहे हों, वह चाहे पायनियर हो, टाइम्स ऑफ इंडिया, जागरण और इलेक्ट्रॉनिक चैनल हो अपनी शर्तो पर काम किया और अपनी एक अलग पहचान बनाई। मुझे याद है जब दिलीप पायनियर में थे तो हाजी मस्तान का इंटरव्यू मिलना बहुत बड़ी बात थी। लेकिन वो अपने प्रयासों से लेकर आए।

इसी तरह से डाकुओं की समस्या को लेकर दिलीप अवस्थी ने पायनियर के जमाने में खूब खबरें की और जान जोखिम में डाल कर छबिराम डाकू पर खबर लिखी। दिलीप ने अपनी खबरों के लिए डाकुओं से सीधे संबंध बना लिए थे। कभी—कभी पायनियर के संपादक भी घबरा जाते थे कि दिलीप बहुत ही गहराई से छानबीन करके खबर लेकर आते थे। इंडिया टुडे में दिलीप ने बहुत लंबी पारी खेली और राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर हर पहलू पर स्पॉट पर पहुंच कर खबर लिखी जिसकी खूब चर्चा हुई।

इसे भी पढ़ें: मूल शोध पर ही मिले पीएचडी

उत्तर प्रदेश की जेल व्यवस्था पर तीखा प्रहार हुए जब दिलीप जेल के अंदर कैदियों का इंटरव्यू ले आए और रिपोर्ट छाप दी। उसके बाद सरकार को मजबूर हो कर जेल व्यवस्था को ठीक करना पड़ा। हमने और दिलीप ने पत्रकारिता के सिलसिले में खूब साथ रहते थे। चाहे लखनऊ में कोई प्रेस कांफ्रेंस हो या बाहर रिपोर्टिंग के लिए जाना हो। जिसकी प्रेस कांफ्रेंस अगर कोई भी अकेला गए तो वो नेता दूसरे की खबर लेता था ऐसी थी हम दोनों की जोड़ी। तीन इस तरह के वाकिए याद आते हैं की जान जोखिम में डाल कर रिपोर्टिंग के वक्त हम दोनों साथ—साथ थे।

वर्ष 1991 के विधानसभा चुनाव के वक्त हम और दिलीप की कार एक गांव में गोली कांड में फंस गई थी। हमारी कार पर भी खूब गोली लगी तब लगा की जान चली जायेगी। लेकिन हमारी कार पर तो गोली लगी पर हम दोनों बच गए। इसी तरह अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के गिरने पर कर सेवकों के हमलों से किसी तरह जान बचाई। दिलीप अवस्थी को कारसेवकों ने पकड़ लिया था। तीसरी घटना ललितपुर की थी जहां एक महिला के सती होने की थी, जिसकी रिपोर्ट लेने हम दोनों साथ गए थे। देर रात हमने देखा की बबीना के पास रोड होल्डअप की तैयारी थी। अपराधियों ने हमारी कार रोक कर लूटने और मारने की तैयारी की थी जो दिखाई दे रही थी। हमको यह अहसास हो गया था रात के सन्नाटे में अपराधियों से बचना मुस्किल है लेकिन तभी अचानक एक बस आने से अपराधियों के हौसले पस्त हुए और हम जान बचा कर लौटे।

एक अच्छे संपादक की तरह जब वे जागरण में थे तो 10 मई, 2002 को दिलीप को पता चला कि मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी का निधन हो गया, तो दिलीप का फोन आया की आप अपने संस्मरण दो घंटे के अंदर लिख कर भेज दीजिए। दिलीप को पता था कि कैफी आजमी से मेरे पारिवारिक रिश्ते थे। दिलीप कैफी से मेरे घर पर मिल चुके थे। दिलीप के कहने पर मैंने जो कैफ़ी पर संस्मरण लिखे उसकी दूसरे दिन खूब चर्चा हुई। इस तरह की बात सिर्फ दिलीप अवस्थी जैसा संपादक ही सोच सकता था की किस्से कब लिखवाना है।

इसे भी पढ़ें: नहीं बचेंगी तापसी पन्नू: एक बड़ा नाम आया सामने, अब खुलेंगे कई सारे राज

मुझे याद है एक बार हम और दिलीप प्रेस क्लब जाने का प्रोग्राम बना चुके थे। दिलीप मुझे लेने आनेवाले थे तभी मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद अली का फोन आया की वे लखनऊ पहुंच कर कार्लटन होटल में मेरा इंतजार कर रहे हैं। दिलीप के पिता उस समय भातखंडे संगीत महाविद्यालय के प्रिंसिपल थे। तो दिलीप को साथ लेकर नौशाद साब के पास पहुंचे। जब हमने नौशाद अली को दिलीप का परिचय दिया तो नौशाद अली ने खड़े होकर दिलीप को गले लगाया और आप धन्य है की इतने बड़े पिता के पुत्र है जो म्यूजिक की शिक्षा दे रहे हैं। उनके सिखाए छात्र—छात्राएं देश विदेश में संगीत फैला रहे होंगे। एक मैं बदनसीब हूं जिसको अच्छा गुरु नहीं मिला वरना हम भी कहीं होते। इतनी मासूमियत से ये बात संगीत के जादूगर नौशाद अली ने दिलीप से हमारे सामने कही। दिलीप से जुड़े बहुत अनगिनित किस्से हैं जो कभी खत्म नहीं होंगे। पूरे कोरोना काल में हफ्ते में दो—तीन बार जरूर बात होती थी। क्या पता था कि पांच दिन पहले जिस मित्र से इतनी खुशी से बात हुई आज उसके अंतिम संस्कार में जाना होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(नोट— ये लेखक के निजी विचार हैं)



\
raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story