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Revolt In France Over Racism: नस्लवाद पर फ्रांस में विद्रोह, प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा अधर में

Revolt In France Over Racism: भारत के लिए यह फ्रांसीसी अशांति बड़ी दुखद है, हानिकारक भी। इसी बैस्टिल दिवस (14 जुलाई को) नरेंद्र मोदी पेरिस की सैनिक परेड के मुख्य अतिथि रहेंगे। भारतमित्र राष्ट्रपति इमेनुअल मैक्रोन के विशेष बुलावे पर मोदी इस फ्रांसीसी राष्ट्र दिवस पर पेरिस जा रहे हैं।

K Vikram Rao
Published on: 4 July 2023 7:00 PM IST
Revolt In France Over Racism: नस्लवाद पर फ्रांस में विद्रोह, प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा अधर में
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नस्लवाद पर फ्रांस में विद्रोह, प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा अधर में: Photo- Social Media

France Violence: फ्रांस जल रहा है। सरकारी इमारतें धधक रही हैं। पुलिस पर जनाक्रोश इतना उभर पड़ा है कि हर सत्ता का प्रतीक हमले का लक्ष्य बन गया है। विडंबना यह है कि यह सब हो रहा है बैस्टिल दिवस (14 जुलाई) के ठीक दस दिन पूर्व। इसी दिन पर फ्रांस ने ढाई सदी पूर्व राजशाही खत्म कर दी थी। सामंतवाद का भी अंत हो गया था। मानवता और विश्व को इसी दिन तीन अमर सूत्र फ्रांस ने दिए थे : स्वतंत्रता, भ्रातृत्व और समानता। आज के इस लोक-विप्लव का अंजाम इसी समानता पर पुलिसिया आक्रमण ही है। त्वचा के वर्ण पर कानून को राजसत्ता क्रियान्वित करेगी ? जनता जवाब मांगती है। सत्ता खामोश है। परिणाम आगजनी है।

भारत के लिए यह फ्रांसीसी अशांति बड़ी दुखद है, हानिकारक भी। इसी बैस्टिल दिवस (14 जुलाई को) नरेंद्र मोदी पेरिस की सैनिक परेड के मुख्य अतिथि रहेंगे। भारतमित्र राष्ट्रपति इमेनुअल मैक्रोन के विशेष बुलावे पर मोदी इस फ्रांसीसी राष्ट्र दिवस पर पेरिस जा रहे हैं। भारत में 15 अगस्त की भांति। भारतीय सेना की एक टुकड़ी भी हिस्सा लेगी। वे अपने फ्रांसीसी समकक्षों के साथ पेरिस के परेड में मार्च करेंगे। खासियत यह है कि चैंप्स एलिसीज़, पेरिस, के आकाश पर 3 IAF राफेल लड़ाकू जेट फ्लाईपास्ट में भाग लेने के लिए तैयार हैं। बैस्टिल डे परेड को फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस समारोह के रूप में मनाया जाता है। मोदी की यह फ्रांस यात्रा से भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी की रजत जयंती पर है। यूं भी फ्रांस के राफेल लड़ाकू जेट वायुयानों को पाकर भारतीय वायुसेना अब चीन और पाकिस्तान से डटकर मुकाबला कर सकती है। मगर इस अराजक वातावरण में अब संदेह उपजा है। सवाल है क्या शांति-व्यवस्था अगले सप्ताह मोदी के आगमन तक सामान्य हो पाएगी ?

आजादी का युद्ध करते अमेरिका की फ्रांस ने भरपूर मदद की थी

बेस्टिल डे विश्व इतिहास में मानव-संघर्ष की शृंखला में एक विशेष तथा स्मरणीय कड़ी है। इसी दिन जेल के फाटक तोड़े गए थे। सारे कैदी छुड़ाए गए थे। तब तक फ्रांस में बादशाहत होती थी। सम्राट लुई सोलहवां निष्कंटक, तानाशाह, जालिम और निरंकुश था। उसने देश की आर्थिक स्थिति को खराब कर दी थी। जनता में त्राहि-त्राहि मच गई थी। तभी (18वीं सदी में) ब्रिटेन के खिलाफ आजादी का युद्ध करते अमेरिका की फ्रांस ने भरपूर मदद की थी। यह बड़ी खर्चीला रही। राजकीय फिजूलखर्ची भी बेतहाशा थी। राष्ट्र दिवालियापन की कगार पर था। दाम आसमान छू रहे थे। तब भूखी दीनहीन प्रजा ने सशस्त्र बगावत कर दी। सम्राट लुई को मौत के घाट उतार दिया। उनकी साम्राज्ञी मारिया अंतोनेत ने महल के झरोखे से विशाल जुलूस के नारे लगते सुने। सेवक से पूछा : “क्या है” ? जवाब मिला : “ये बुभुक्षित प्रदर्शनकारी रोटी मांग रहे हैं जो नहीं मिल रही है।” इस पर रानी का सीधा, सरल सुझाव था : “तो यह केक खाएं।” बस क्रुद्ध जनता ने रानी को पकड़ा और गिलोटिन पर चढ़ा दिया। उसकी आरियों ने रानी का सर धड़ से काट दिया। सम्राट का सर पहले ही कलम किया जा चुका था। तभी राजशाही और सामंती भी खत्म कर दी गई। लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना हुई। फ्रांस ने मानवीय समानता, मौलिक स्वतंत्रता और बुनियादी भ्रातृत्व के सिद्धांतों को प्रतिपादित किया। मगर इस अनिश्चितता का बेजा लाभ उठाकर फौजी कमांडर नेपोलियन बोनापार्ट लोकशाही खत्म कर फिर बादशाह बन गया। मगर वह भी इतिहास के गर्त में समा गया।

आज जो पेरिस मे जनयुद्ध चल रहा है, वह उसी समानता के सिद्धांत को मजबूत करने हेतु है। उसकी शुरुआत निहायत साधारण घटना से हुई जो बाद में बड़ी हिंसक बन गई। राजधानी के पश्चिमी उपनगरी क्षेत्र नानतेरे में एक हादसा हो गया। सत्रह साल के अरबी किशोर नाहेल मारजू (27 जून 2023) ट्रैफिक पुलिसवाले ने यातायात के नियम की अवहेलना करने पर गोली मार दी। वह मर गया। व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। इस दौरान 1311 लोगों को गिरफ्तार किया गया। विभिन्न शहरों में प्रदर्शनकारियों ने कई वाहनों, इमारतों में आग लगा दी, स्टोर में लूटपाट की। अधिकारियों के मुताबिक रातभर युवा प्रदर्शनकारियों की पुलिस से भिड़ंत हुई। उन्होंने बताया कि विभिन्न जगहों पर प्रदर्शनकारियों ने करीब 2500 दुकानों में आग लगा दी। हिंसा रोकने के लिए देश भर में 45,000 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अभिभावकों से अपने बच्चों को सड़कों से दूर रखने की अपील की। हिंसा को बढ़ावा देने के लिए सोशल मीडिया को दोषी ठहराया।

जब राष्ट्र का सबसे बड़ा पुस्तकालय अलकजार जला दिया गया

नाहेल की मां मौनिया ने “फ्रांस 5” टेलीविजन को बताया कि वह उस पुलिस अधिकारी से वे बहुत अधिक क्रोधित हैं जिसने उनके बच्चे को मार डाला। उन्होंने कहा : “वह कुछ-कुछ अरबी बच्चों की तरह दिखता था।” नाहेल के परिवार की विरासत अल्जीरिया से जुड़ी है। मौनिया ने कहा : “पुलिस अधिकारी को अपनी बंदूक लेकर हमारे बच्चों पर गोली चलाने का अधिकार नहीं है। हमारे बच्चों की जान नहीं ले सकता।” इस पुलिस-जनता मुठभेड़ में ही राष्ट्र का सबसे बड़ा पुस्तकालय अलकजार जला दिया गया। यह 1857 में निर्मित हुआ था। दस लाख से अधिक ऐतिहासिक दस्तावेज खाक हो गए। डेढ़ सौ कंप्यूटर लगे थे। नष्ट हो गए। विशाल रंगमंच भी था। कई पर्यवेक्षकों ने इस कांड की समता की बिहार के बौद्ध नालंदा विश्वविद्यालय से जिसे तुर्की लुटेरे बख्तियार खिलजी ने (1206) आग लगा दिया था। वहां नब्बे लाख पांडुलिपिया थी, सब जल गई। धुआं छः महीनो तक निकलता रहा।

इस पूरी घटना का मूलभूत मसला यह रहा कि आज भी इस विकसित राष्ट्र फ्रांस में नस्लभेद जारी है। उसके पुराने उपनिवेश थे अल्जीरिया और मोरक्को। अफ्रीकी-अरब देश के लोग जो फ्रांस में सदियों से रह रहे हैं, अपने जनाधिकार और न्याय हेतु संघर्ष कर रहे हैं। मगर शोषित हैं। बस यही कारण है इस विद्रोह का।

K Vikram Rao

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