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नकारात्मक का लालच

रावण, श्रीलंका का शक्तिशाली राजा और एक महान योद्धा, अपने चरम अहंकार के कारण अपने ही पतन का कारण बना। दुर्योधन, हस्तिनापुर का एक और पराक्रमी राजा, अंततः लालच और ईर्ष्या के परिणामस्वरूप कुरुक्षेत्र के मैदान के युद्ध में मारा गया। राजा बाली को विष्णु द्वारा अपने एक बौना, वामन अवतार रूप में, प्रेतलोक में निर्वासित किया गया था,

suman
Published on: 24 April 2020 5:16 PM
नकारात्मक का लालच
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- मोनी मोहन भट्टाचार्य

रावण, श्रीलंका का शक्तिशाली राजा और एक महान योद्धा, अपने चरम अहंकार के कारण अपने ही पतन का कारण बना। दुर्योधन, हस्तिनापुर का एक और पराक्रमी राजा, अंततः लालच और ईर्ष्या के परिणामस्वरूप कुरुक्षेत्र के मैदान के युद्ध में मारा गया। राजा बाली को विष्णु द्वारा अपने एक बौना, वामन अवतार रूप में, प्रेतलोक में निर्वासित किया गया था, राजा के अंधाधुंध दान के ही कारण। ये पात्र कोई साधारण लोग नहीं थे, फिर भी वे अपने-अपने पात्रों के चरित्रों के लुभावने जुनून से अभिभूत थे, इस हद तक कि बार-बार नेक सलाह मिलने पर भी वे ख़ुद को लौटा नहीं पाए। यह आश्चर्य की बात है कि हालांकि दानशीलता को नकारात्मक गुण नहीं माना जाता है, मगर अत्यधिक दानशीलता का कर्म संभवतः एक दबा हुआ अहम ज़रूर लाता है दिमाग़ में, जो कि किसी के पतन का ज़िम्मेदार हो सकता है।

यह हमारा दैनिक अनुभव रहा है कि एक बच्चा अच्छी आदत की बजाय बुरी आदत ज़्यादा जल्दी सीखता है और फिर इससे छुटकारा पाना मुश्किल होता है। हम क्यों अपने आप को नकारात्मक के लालच में आने देते हैं? यदि हम भौतिक दुनिया को देखते हैं, तो हम पाएंगे कि नकारात्मकता मौजूद है – व्यवस्थित चीज़ों ने देर-सबेर अव्यवस्थित होने की एक स्वाभाविक सी प्रवृत्ति दर्शाई है। उदाहरण के लिए, एक बर्फ से ढका मनोरम पर्वत, अपनी अनावृत काली चट्टानी सतह दिखाने के लिए अनायास पिघल जाता है। कालान्तर में, एक सुंदर महल भी मलबे के ढेर में तब्दील हो जाता है। वैज्ञानिकों के मतानुसार, यहां तक ​​कि सुंदर ढंग से बना यह ब्रह्मांड किसी न किसी समय नष्ट हो जाएगा, हालांकि यह केवल दूर भविष्य में होने की संभावना है। इस प्रकार, प्रकृति की अलबेली प्रणाली इस क़दर बनी होती है कि, सदा ही यह नकारात्मकता के मार्ग का अनुसरण करने के लिए होती है- यानी समय के साथ साथ पूरी तरह अराजकता।

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इस दुनिया में यह बात दिलचस्प है कि मानव मस्तिष्क सबसे तर्कसंगत और जागरूक माना जाता है, फिर भी यह प्रकृति के नकारात्मक प्रभाव से अछूता नहीं रह गया है। ऐसा लगता है, नकारात्मकता सब तरफ़ फैली हुई है। भगवत् गीता में, भगवान कृष्ण ने कहा है, प्रकृति के त्रिगुण या तीन मौलिक गुण, अर्थात्, सत्व, रजो और तम गुण हैं, और मानव मन अपने ही प्रभाव से बहुत प्रभावित है। यद्यपि, मन पर इन गुणों का प्रभाव पूरी तरह से अलग

है। तीन में से, लालच, क्रोध और अहंकार जिसमे रजोगुण का सीधा नतीजा भी रागात्मक में उल्लेख के रूप में मिलता हैं।

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शंकराचार्य के अनुसार, रागात्मक का अर्थ कुछ यूं है कि रजोगुण, अन्य दो के विपरीत, हर एक चीज़ जो उसके साथ संपर्क में आती है, को रंगने के प्रति उन्मुख है। क्योंकि चीज़ें रंगीन दिखते शीशों के माध्यम से देखने में भ्रामक दिखती हैं, मानव मन रजोगुण के प्रभाव से मंत्रमुग्ध हो जाता है। फिर तो कर्ता के लिए, मृगतृष्णा जैसी नकारात्मकता से ख़ुद को अलग करना आभासी तौर पर असंभव हो जाता है। अनिश्चितता दो दुनियाओं के बीच का अंतर बताती हैं, यह दर्शाते हुए कि अभी भी मनुष्यों के लिए आशा है कि वे पतनभाव पर अंकुश लगायें और चेतना की परम अवस्थाओं की ओर विकसित हो जाएँ। यह हर एक मनुष्य के भीतर मौजूद इच्छा शक्ति और दिव्यता की संयुक्त उपस्थिति से संभव बनाया है बनाया जाता है। और इसको एक प्रबुद्ध गुरु के मार्गदर्शन के साथ साधना या ध्यान द्वारा बढ़ाया जाता है।

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