Haryana Nuh Violence: नूंह जैसी हिंसा आखिर कब तक ?

Haryana Nuh Violence: नूंह की पूर्व नियोजित हिंसा ने सिद्ध कर दिया कि जहाँ मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हो जाती है वहाँ वह दूसरों का जीना दूभर कर देती है।

Mrityunjay Dixit
Published on: 6 Aug 2023 12:09 PM GMT
Haryana Nuh Violence: नूंह जैसी हिंसा आखिर कब तक ?
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Haryana Nuh Violence (Photo- Newstrack)

Haryana Nuh Violence Update: हरियाणा के नूंह की वार्षिक पवित्र ब्रजमंडल यात्रा पर इस वर्ष सुनियोजित हिंसक आक्रमण किया गया । चौतरफा रूप से किये गए हमले में तीन ओर पहाड़ियों से घिरे मंदिर पर पहाड़ियों के ऊपर से गोलियां और मोर्टार दागे गए, घरों की छतों से पत्थर और पेट्रोल बम फेंके गए । आक्रमणकारियों ने सैकड़ों की संख्या में वाहन फूंक दिए। अस्पताल में घुसकर तोड़ फोड़ की और घायलों का इलाज नहीं होने दिया । पुलिस पर हमला हुआ । साजिश इतनी बड़ी और गहरी है कि पीड़ित हिन्दू समुदाय को आरोपी सिद्ध करने की कथा भी पहले से लिख ली गई थी। नूंह की पूर्व नियोजित हिंसा ने सिद्ध कर दिया कि जहाँ मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हो जाती है वहाँ वह दूसरों का जीना दूभर कर देती है।

पीड़ित हिंदू हैं इसलिए छद्म धर्म निरपेक्ष और मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले अज्ञातवास पर निकल गए हैं या फिर उनके मुंह में दही जम गया है । आज कोई पत्थरबाजों से नहीं पूछ रहा कि उन्होंने शांतिपूर्वक निकल रही हिंदू समाज की ब्रजमंडल जलाभिषेक यात्रा पर नफरती पत्थर क्यों फेंके? शोभायात्रा में भाग ले रहे निर्दोष स्त्रियों और बच्चों पर पेट्रोल बम व मोर्टार जैसे अवैध हथियारो से हमला क्यों किया? आज कोई उन दंगाइयो से यह नहीं पूछ रहा कि उन्होंने निर्दोष व्यापारियों की दुकानों में आग क्यो लगाई व तोड़ फोड़ क्यों की ? और तो और हिंदू विरोधी मानसिकता से ग्रस्त पूरी की पूरी आई.एन.डी.आई.ए. की जमात इस एकतरफा हमले में भी हिन्दुओं की गलती ढूँढने में लगी है और निर्दोष गौ रक्षकों को फँसाना चाहती है । कांग्रेस सहित आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन में शामिल सभी दल अपनी विकृत मानिसकता के अनुरूप ही विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल को दोषी सिद्ध करने वाली बयानबाजी कर रहे हैं ।

विभाजन के फलस्वरूप मुसलमानों के भारत में रह जाने का खामियाजा

देश का विभाजन स्वीकार करने, विभाजन की विभीषिका को झेलने के बाद भी हिन्दुओं ने विभाजन के समर्थक मुसलमानों के भारत में रह जाने को भी सहन कर लिया और 1947 के बाद से आज तक कभी भी, कहीं भी, किसी भी बात पर मुस्लिम समाज पर सुनियोजित हमला नहीं बोला और न ही शासन सत्ता ने ही उनके साथ कोई भेदभाव किया । जबकि मुसलमान सदा ही हिंदू समाज के शांतिपूर्वक चलाये जा रहे धामिक कार्यक्रमों, यात्राओं व अन्य गतिविधियां पर हमले करते रहते हैं । शायद ही कोई ऐसी हिन्दू उत्सव, पर्व या धार्मिक यात्रा होगी जिसे मुसलमान प्रसन्नता से संपन्न हो जाने दें । आखिर क्यों? कब, तक यह चलता रहेगा। सबसे दुखद पक्ष ये है कि वोट बैंक के लालच में मोहब्बत की फर्जी दुकानों के मालिक ही आतंक के इस माल को सजाने में सहायक हैं ।

आज भारत में हिंदू समाज के पर्वों व धार्मिक कार्यक्रमो में हमलों की जो बाढ़ आ गयी हैं उसके पीछे कई कारण हैं । आज तुष्टीकरण करने वाले और शांतिप्रिय एजेंडाधारी हर जगह हर संस्थान में घुसे हुए हैं । जो दंगो तथा हमलों के दौरान चेहरे पर मास्क लगाकर अपने राजनैतिक आकाओं, मक्कार मीडिया मंचों तथा मर्यादा हीन वकीलों की मदद से दंगाईयों को बचाने की जुगत में लग जातें है। आज देश में आजादी के 75 वर्ष बाद भी उपद्रवियों के पक्ष में बोलने के लिए ढेर सारे मानवाधिकारी व अभिव्यक्ति की आजादी के पहरेदार सामने आ जाते हैं, इन्हीं लोगों के कारण दंगा करने वाले अराजक तत्वों का हौसला लगातार बढ़ता जा रहा है।

मीडिया प्लेटाफार्म पर नूंह में हुए हमलों का स्टिंग

जैसे ही नूंह हिंसा के उपद्रवियों के खिलाफ संपूर्ण भारत के हिंदू समाज में आक्रोष की भावना बलवती हुई और विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन का आयोजन किया वैसे ही ये एजेंडाधारी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये और कहा कि विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल की रैलियों व महापंचायत आदि पर रोक लगाई जाये किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने केवल कुछ महत्वपूर्ण दिशा निर्देश देते हुए विहिप व बजरंग दल पर रोक लगाने की मांग खारिज कर दी । अगर कहीं सुप्रीम कोर्ट विहिप व बजरंग की रैलियों पर रोक लगा देता तो यह लोग फिर बजरंग दल व विहिप पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने लगते।

आज हर मीडिया प्लेटाफार्म नूंह में हुए हमलों का स्टिंग कर रहा है इससे जो सच उजागर हो रहा है वह बहुत ही खतरनाक तथा रोंगटे खड़े कर देने वाला है। यह हमला बिल्कुल दिल्ली दंगो की तर्ज पर हुआ। दिल्ली में 2020 में हुए दंगे में कांस्टेबल रतन लाल जी की हत्या से पहले सीसीटीवी तोड़े गये थे, छतों पर पत्थर इकटठे किये गये थे, छत से पत्थर और पेट्रोल बम चलाए गए थे। ठीक इसी प्रकार मेवात के नूह में हुई हिंसा दो होमगार्ड की हत्या से पहले सीसीटीवी तोड़े गये। छतों पर पत्थर एकत्र किये गये और छत से ही पत्थर फेंक कर हमला किया गया। फिर उसी समय हिंदू श्रद्धालुओं द्वारा शांतिपूर्वक निकाली जा रही ब्रजमंडल 84 कोसी परिक्रमा जो हर वर्ष आयोजित की जाती है । उस पर सुनियोजित हमला किया गया जिसमें अवैध हथियारों और मोर्टार का भी प्रयोग हुआ। घेर कर और अचानक किए गए इस हमले में धारदार हथियारों का भी जमकर प्रयोग हुआ। हमले के प्रत्यक्षदर्शियों ने लगातार गोलियां चलने की आवाज सुनने की बात कही है। यात्रा में शामिल कम से कम तीन हजार लोगों ने एक मंदिर मे छुपकर किसी प्रकार अपनी जान बचाने में सफलता प्राप्त की।

दंगाईयों ने महिला जज को भी नहीं छोड़ा। उनकी कार को आग के हवाले कर दिया और महिला जज स्वयं किसी प्रकारअपनी तीन साल की बेटी के साथ अपनी जान बचाकर भागने में सफल हो सकीं, उनकी ओर से मामले की एफ.आई.आर. लिखाई गयी है। महिला जज के साथ हुए इस भयानक हादसे पर भी एक भी जज ने स्वयं संज्ञान नहीं लिया । सुप्रीम कोर्ट तीस्ता सीतलवाड़ और याकूब मेनन पर रहम करने के लिए देर रात तक सुंनवाई कर सकता है किंतु अपनी ही महिला जज के लिए मौन साधे हुए हैं।

दंगाईयों ने सोशल मीडिया का जम कर उपयोग किया । जिस दिन दंगे हुए उस समय दंगों का फेसबुक लाइव हो रहा था। उन्मादी मजबही भीड़ ने धार्मिक नारे लगाते हुए 100 से अधिक वाहनों को आग लगाई व उनको तोड़फोड़ कर नुकसान पहुंचाया। अब तक 7 लोगां की मौत हो चुकी है व 150 लोग घायल हैं। हास्यास्पद है कि दंगे की साजिश करने वाले ही पीस कमेटी में हैं ।

अब तक हुई कार्यवाही में सौ से अधिक दंगाई पकड़े जा चुके हैं । जिन लोगों ने सोशल मीडिया पर भडकाने का काम किया उनको भी चिन्हित लिया जा रहा है किन्तु जिनका जीवन उजड़ गया उनका क्या?

दंगों का एक पैटर्न

दंगों का एक पैटर्न बन चुका है, दंगा करने वाली भीड़ एक निश्चित तरीके से हमला कर रही है । हमले के पूर्व योजना तैयार की जाती है । घरों की छत पर पत्थर और पेट्रोल बन बनाने का सामान एकत्र किया जाता है, अवैध हथियार जुटाए जाते हैं। पत्थर और पेट्रोल बम फेंकने में महिलाओं व नाबालिग बच्चों को आगे किया जाता है ताकि उन्हें कानून की कमजोरी की आड़ लेकर बचाया जा सके, यही पैटर्न नूंह में भी अपनाया गया ।

नूंह में हए सुनियोजित हमलों का एक और पक्ष जो अब सबके सामने आ रहा है वह बहुत ही डारावना है और उसकी चर्चा अभी तक कोई नहीं कर रहा है। नूंह की हिंसा कई अन्य जिलों तक पहुंच गयी जिसमें बजरंग दल के कई कार्यकर्ता बलिदान हुए हैं उनको कोई खुलकर श्रद्धांजलि भी नहीं अर्पित कर रहा है। बजरंग दल कार्यकर्ता शक्ति सिंह जिसका उस दिन उस यात्रा से कोई सम्बन्ध नहीं था, न ही वह और न ही उसके परिवार का कोई सदस्य यात्रा में शामिल हुआ था । किंतु फिर भी वह उन्मादी हिंसा का शिकार हो गया । वह रोज की तरह अपनी दुकान बंद कर घर वापस जा रहा था किंतु कट्टरपंथियों की उग्र हिंसक भीड़ ने उसे पकड़ लिया। उसे पीट पीटकर जान से मार कर झाड़ियों में फेंक दिया। यह शक्ति सिंह घर का कमाने वाला अकेला सदस्य था। इसी प्रकार दंगाईयों ने अभिषेक, प्रदीप कुमार, होमगार्ड गुरुसेवक सिंह और होमगार्ड नीरज कुमार की बर्बर तरीक से हत्या कर डाली।

आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन के एक भी नेता ने इन हत्याओं की निंदा तक नहीं की अपितु हिंसा का समाचार आते ही आदतन मुस्लिम तुष्टिकरण करने पर उतर आए। सपा सांसदो ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लागने की मांग की है और बसपा ने हरियाणा में भी डबल इंजन की सरकार को फेल बता दिया । आश्चर्यजनक रूप से एक भी लिबरल दंगाईयों को सज़ा दिलाने की मांग नहीं कर रहा । यह कैसी मोहब्बत की दुकान है जहाँ हिन्दुओं के खून से बने पकवान बिकते हैं?

ब्रजमंडल यात्रा -

नूंह में ब्रजमंडल यात्रा का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है । यह ब्रजमंडल यात्रा काफी लम्बे समय से निकल रही है। जिसका उद्देश्य मेवात क्षेत्र में उपस्थित 2500 से अधिक मंदिरों का संरक्षण व विकास करना है। इस क्षेत्र में जितने भी हिंदू मंदिर हैं वह अधिकतर जर्जर अवस्था में है । मेवात क्षेत्र का आम हिंदू नागरिक नेहरू जी के जमाने से चली आ रही तथाकथित सेक्युलर राजनीति का शिकार हुआ है । किंतु अब वहां पर मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन की सरकार है और हिंदू जनमानस आशा भरी दृष्टि से उनकी ओर देख रहा है। अब मनोहर लाल खट्टर की सरकार के पास अवसर है कि दंगाइयों को ऐसा सबक सिखाए कि वो दोबारा सिर न उठा सकें ।

( लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं। )

Mrityunjay Dixit

Mrityunjay Dixit

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