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HC ने क्यों कहा- सरकार नहीं, संविधान की नजर से राजद्रोह मामले दर्ज करे पुलिस

भारतीय दंड संहिता 1860 में राजद्रोह के लिए उपयुक्त धारा 124ए 1870में सर् जेम्स स्टीफन द्वारा जोड़ा गया ताकि ब्रिटिश भारतीय शासन के विरुद्ध राष्ट्रवादी विचारों और आवाज़ों को दबाया जा सके।

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Published on: 25 Dec 2020 7:25 AM GMT
HC ने क्यों कहा- सरकार नहीं, संविधान की नजर से राजद्रोह मामले दर्ज करे पुलिस
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बॉम्बे HC के फैसले पर नंदिता झा, वरिष्ठ अधिवक्ता दिल्ली हाई कोर्ट का लेख (PC: social media)

नंदिता झा

लखनऊ: बम्बई हाई कोर्ट के जस्टिस एस एस शिंदे और एम एस कार्णिक की खंडपीठ ने कंगना रनौत बनाम महाराष्ट्र राज्य केस में अन्तरिम सुरक्षा देते हुए राजद्रोह के मुकदमे में कहा कि"अगर सरकार के द्वारा खिंची गयी लकीरों के भीतर कोई नहीं आता तो क्या वे राजद्रोही है?"साथ ही अभियोजन पक्ष से कहा कि पुलिस वालों वर्कशॉप अयोजित कर सिखाया जाए कि आई पी सी कि धारा 124ए का प्रयोग कहाँ किया जाए और कहाँ नहीं किया जाए। 2015 से 2016 के बीच में राजद्रोह के 22 मामले दर्ज किए गए । 2015 में चार मामलों की सुनवाई अदालत में पूरी हुई और चारो मामलों में आरोपी बरी हो गए।

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वहीं 2016 में तीन मामलों की सुनवाई पूरी हुई जिसमें दो बरी हो गए

वहीं 2016 में तीन मामलों की सुनवाई पूरी हुई जिसमें दो बरी हो गए। 2016 में सुप्रीम कोर्ट नें राजद्रोह के एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि "किसी के खिलाफ 124ए यानी राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने से पहले केदार नाथ बनाम बिहार राज्य में दिए गए निर्देश का अनुपालन आवयश्क है। हाल के वर्षों में आई पी सी की धारा 124ए के दुरुपयोग को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी । हद तो यह है कि भारत पाकिस्तान क्रिकेट मैच में पाकिस्तान के जीत जाने पर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाने पर भी पुलिस राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लेती हैा। आशीष नंदी ने गुजरात दंगे पर अपने लेख में राज्यसरकार की आलोचना की तो उनपर भी राजद्रोह लगाया गया जिसपर अदालत ने फटकार लगाते हुए हास्यास्पद केस कहा।

सी आई डी को "कुत्ता" कहने पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया

हालांकि 1962 में केदारनाथ एक कम्युनिस्ट लीडर द्वारा एक भाषण के दरमियान इंडियन कांग्रेस लीडर को "गुण्डा"और सी आई डी को "कुत्ता" कहने पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था जिसमें निचली अदालत ने एक साल के कड़े दंड से दंडित किया था। इसी मामले की अपील में सुप्रीम कोर्ट ने कहा"राजद्रोह के लिए भाषणों और अभिव्यक्त किये विचारों को तभी दंडित किया जाए जब उसके कारण किसी तरह की हिंसा ,असंतोष, या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़ा हो"।

भारतीय दंड संहिता 1860 में राजद्रोह के लिए उपयुक्त धारा 124ए 1870में सर् जेम्स स्टीफन द्वारा जोड़ा गया ताकि ब्रिटिश भारतीय शासन के विरुद्ध राष्ट्रवादी विचारों और आवाज़ों को दबाया जा सके। आई पी सी 124ए के तहत जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा तो दोषी पाए जाने पर तीन वर्ष से आजीवन कारावास का दंड दिया जा सकता है साथ जुर्माने का प्रावधान है।

1891 में पहला राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया

1891 में पहला राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया क्वीन एम्प्रेस वनाम जोगिंदर चन्दर बोस जिसमे बंगाली मैगजीन "बांगोबसी"में ब्रिटिश द्वारा लाये गए कानून में "ऐज ऑफ कंसेंट " को लेकर लेख लिखा गया कि यह कानून हिन्दू विरोधी और हिन्दू नैतिकता के विरुद्ध माना।बाल गंगाधर तिलक के विरुद्ध भी "केसरी अखबार में तीन संपादकीय लेखों पर राजद्रोह लगाया गया जिसमे उन्हें 6 साल का मांडले में कैद और निर्वासन की सज़ा हुई थी।महात्मा गांधी पे भी राजद्रोह का मुकदमा लगाया गया जिसे गांधी जी ने स्वंत्रता को दबाने का जरिया कहा।

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आज़ाद भारत मे 124अ भारतीय दंड सहिंता की धारा के औचित्य पर सवाल उठाए गए इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध कहा गया कई बार इसे लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध समझ गया किंतु केदारनाथ बनाम बिहार राज्य केस 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि 124ए को असंवैधानिक नहीं कह सकते यहाँ शीर्ष अदालत ने अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ साथ तर्कसंगत निषेध के अंतर्गत कुछ परिस्थितियों में 124ए को लागू करने की भी छूट दे दी। परंतु तब से आजतक न्यायपालिका का मानना है कि 124ए राजनीतिक विद्वेष में न लगाएं जाए कुछ विशेष परिस्थितियों में ही लगाए जाएं।आमतौर पर लेखकों ,कार्टूनिस्टों ,सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज़ दबाने के लिए इस धारा के उपयोग से इतिफाक नहीं रखा। राजनीतिक विद्वेष या प्रतिद्वंद्वता के लिए इस कथित धारा का प्रयोग कदापि नहीं होना चाहिए।

(लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता दिल्ली हाई कोर्ट में है)

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