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मस्जिद में हिंदू विवाह

निकाह नहीं, विवाह ! विवाह याने हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार मंत्र-पाठ, पूजा, हवन, द्वीप-प्रज्जवलन, मंगल-सूत्र आदि यह सब होते हुए आप यू-टयूब पर भी देख सकते हैं। शरत शशि और अंजु अशोक कुमार के इस विवाह में आये 4000 मेहमानों को शाकाहारी प्रीति-भोज भी करवाया गया।

SK Gautam
Published on: 21 Jan 2020 9:55 AM IST
मस्जिद में हिंदू विवाह
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ: केरल के कायमकुलम कस्बे के मुसलमानों ने सांप्रदायिक सदभाव की ऐसी मिसाल कायम की है, जो शायद पूरी दुनिया में अद्वितीय है। उन्होंने अपनी मस्जिद में एक हिंदू जोड़े का विवाह करवाया। निकाह नहीं, विवाह ! विवाह याने हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार मंत्र-पाठ, पूजा, हवन, द्वीप-प्रज्जवलन, मंगल-सूत्र आदि यह सब होते हुए आप यू-टयूब पर भी देख सकते हैं। शरत शशि और अंजु अशोक कुमार के इस विवाह में आये 4000 मेहमानों को शाकाहारी प्रीति-भोज भी करवाया गया।

चेरावल्ली मुस्लिम जमात कमेटी ने वर-वधु को उपहार भी दिए

विवाह के बाद वर-वधु ने मस्जिद के इमाम रियासुद्दीन फैजी का आशीर्वाद भी लिया। चेरावल्ली मुस्लिम जमात कमेटी ने वर-वधु को 10 सोने के सिक्के, 2 लाख रु. नकद, टीवी, फ्रिज और फर्नीचर वगैरह भी भेंट में दिए। इस जमात के सचिव नजमुद्दीन ने बताया कि वधु अंजू के पिता अशोक कुमार उनके मित्र थे और 49 वर्ष की आयु में अचानक उनका निधन हो गया था।

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खुद नजमुद्दीन गहनों के व्यापारी हैं और अशोक सुनार थे। अशोक की पत्नी ने अपनी 24 साल की बेटी अंजू की शादी करवाने के लिए नजमुद्दीन से प्रार्थना की। उनकी अपनी आर्थिक स्थिति काफी नाजुक थी।

यदि ईश्वर सबका पिता है तो...

नजमुद्दीन को मस्जिद कमेटी ने अपना पूरा समर्थन दे दिया। और फिर यह कमाल हो गया। इस काम ने यह सिद्ध कर दिया है कि हमारे देश का मलयाली समाज कितना महान है, कितना दरियादिल है और उसमें कितनी इंसानियत है ! ऐसे ही विवाह या अन्य संस्कार हमारे मंदिरों, गिरजों और गुरुद्वारों में क्यों नहीं हो सकते ? यदि ये भगवान के घर हैं तो फिर ये सबके लिए क्यों नहीं खुले हुए हैं ? यदि ईश्वर सबका पिता है तो पूरा मानव-समाज एक-दूसरे के रीति-रिवाजों का सम्मान क्यों नहीं कर सकता ? लेकिन दुर्भाग्य यह है कि मजहब के नाम पर सदियों से निम्नतम कोटि की राजनीति होती रही है।

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मनुष्यों ने अपने-अपने मनपसंद भगवान गड़ लिये हैं

धर्म-ध्वजियों या मजहबियों ने अपने बर्ताव से यह सिद्ध कर दिया है कि ईश्वर मनुष्यों का पिता नहीं है, मनुष्य ही ईश्वर के पिता हैं। मनुष्यों ने अपने-अपने मनपसंद भगवान गड़ लिये हैं और उन्हें वे अपने हिसाब से आपस में लड़ाते रहते हैं। उन्हें एक-दूसरे से ऊंचा-नीचा दिखाते रहते हैं। मस्जिद में हिंदू विवाह करवाकर मलयाली मुसलमानों ने सिद्ध कर दिया है कि वे पक्के मुसलमान तो है ही, पक्के भारतीय भी है। वे ऊंचे इंसान हैं, इसमें तो कोई शक है ही नहीं।

SK Gautam

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