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रंग दे मोहे, रंग दे

रंग के उलट पुलट दोनों अर्थ बनते हैं। ये हर आदमी की ज़िंदगी का हिस्सा हैं। ज़िंदगी में रंग न हो तो बेजान मानी जाती है। रंग का जान से सीधा रिश्ता है। रंग को लेकर हमारे यहाँ मनाये जाने वाले होली पर्व की भी संस्कृति व समाज में बड़ी मान्यता है।

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Published on: 30 March 2021 12:26 PM IST
रंग दे मोहे, रंग दे
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Holi photo- social media

योगेश मिश्र

योगेश मिश्र (Yogesh Mishra)

रंग के उलट पुलट दोनों अर्थ बनते हैं। ये हर आदमी की ज़िंदगी का हिस्सा हैं। ज़िंदगी में रंग न हो तो बेजान मानी जाती है। रंग का जान से सीधा रिश्ता है। रंग को लेकर हमारे यहाँ मनाये जाने वाले होली पर्व की भी संस्कृति व समाज में बड़ी मान्यता है। यह शायद इकलौता पर्व है जिसे समाज, कला, ज्योतिष, जीवन , संस्कृति व सिनेमा में सबसे अधिक स्थान हासिल हुआ। शायद ही कोई ऐसी फ़िल्म हो जिसमें रंगों के इस पर्व का वर्णन हो और वह सफलता की सींढी पर न चढ़ी हो।

रंग को लेकर सबसे अधिक लोकोक्तियां, कहावतें व कहानियाँ भी हैं। रंग बरसते भी है। लोग रंग को तरसते भी हैं। आदमी बिना रंग लगायें भी लाल पीला होता देखा जा सकता है। आदमी के नीले पड़ने के प्रयोग भी अनसुने नहीं हैं। जो समझ से बड़ा है, वह सब नीला होगा। कृष्ण के शरीर का रंग नीला माना जाता है। यह नहीं है कि उनकी त्वचा का रंग नीला था। क्योंकि सभी को साथ लेकर चलना उनका गुण था। जो रंग सबसे ज्यादा आपका ध्यान अपनी ओर खींचता है वो है-लाला रंग। यह सबसे ज्यादा चमकीला है। महत्वपूर्ण चीजें लाल होती हैं। रक्त व उगते सूरज का रंग लाल है। मानवीय चेतना में अधिकतम कंपन यही पैदा करता है। चैतन्य का नारी स्वरूप इसी रंग में है।

आइजक न्यूटन ने सबसे पहले बताया कि प्रकाश की श्वेत किरण में सात रंग होते हैं। उन्होंने एक प्रिज्म में से प्रकाश की किरण को गुजारा। रंगों का स्पेक्ट्रम देखा- दिखाया। प्रकाश के स्पैक्ट्रम में 100 से भी ज्यादा रंग होते हैं। हमारी आखें केवल सात रंगों को देख पाती हैं। रंग के लिए प्रकाश का होना आवश्यक है। बिना प्रकाश के रंग की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

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सृष्टि राग और रंगों का खेल है। फागुन में यह खेल अपने चरम पर होता है। हर इंसान किसी न किसी रंग में रंगा है। किसी न किसी राग में मस्त है। रंग वह नहीं है, जो कोई दिखाता है, बल्कि वह है जो त्यागा जाता है। आप जो भी रंग बिखेरते हैं, वही आपका रंग है। आप जो अपने पास रख लेंगे, वह आपका रंग नही है। बिल्ली, कुत्ता, बैल और खरगोश रंग देख ही नहीं पाते। हमारी आखों में दो तरह की रंग कोशिकाएं होती है। एक, देखने में सहायता करती हैं। दूसरी, रंगों को पहचानने में। यदि किसी व्यक्ति में रंगों को देखने वाली कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हों, तो वह केवल सफेद और सलेटी रंग ही देख पायेगा।

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रंग हज़ारों वर्षों से हमारे जीवन में अपनी जगह बनाए हुए हैं। मोहनजोदड़ो व हड़प्पा की खुदाई में जो चीजें मिलीं उनमें ऐसे बर्तन और मूर्तियाँ भी थीं, जिन पर रंगाई की गई थी। उनमें एक लाल रंग कपड़े का टुकड़ा भी मिला। विशेषज्ञों के अनुसार इस पर मजीठ या मजिष्‍ठा की जड़ से तैयार रंग चढ़ाया गया था। हजारों वर्षों तक मजीठ की जड़ और बक्कम वृक्ष की छाल लाल रंग का मुख्‍य स्रोत थी। पीपल, गूलर और पाकड़ जैसे वृक्षों पर लगने वाली लाख की कृमियों की लाह से महाउर रंग तैयार किया जाता था। पीला रंग और सिंदूर हल्दी से प्राप्‍त होता था।

पश्चिम में औद्योगिक क्रांति के फलस्‍वरूप कपड़ा उद्योग का तेजी से विकास हुआ। ऐसी स्थिति में कृत्रिम रंगों की तलाश आरंभ हुई। उन्हीं दिनों रॉयल कॉलेज ऑफ़ केमिस्ट्री, लंदन में विलियम पार्कीसन एनीलीन से मलेरिया की दवा कुनैन बनाने में जुटे थे। कुनैन तो नहीं बन पायी। लेकिन बैगनी रंग बन गया। 1856 में तैयार हुए इस कृत्रिम रंग को मोव कहा गया। 1860 में रानी रंग, 1862 में एनलोन नीला और एनलोन काला, बिस्माई भूरा, 1880 सूती काला जैसे रासायनिक रंग अस्तित्त्व में आये। शुरू में रंग तारकोल से तैयार किए जाते थे। जर्मन रसायनशास्त्री एडोल्फ फोन ने 1865 में कृत्रिम नील के विकास का कार्य शुरू हुआ, 1882 में वह नील की संरचना निर्धारित कर सके। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए बइयर को 1905 का नोबेल पुरस्कार मिला।

मुंबई की कामराजजी फर्म ने सबसे पहले 1867 में रानी रंग (मजेंटा) का आयात किया था। 1872 में जर्मन रंग विक्रेताओं का एक दल एलिजिरिन नामक रंग लेकर यहाँ आया था। इन लोगों ने भारतीय रंगरेंजों के बीच अपना रंग चलाने के लिए तमाम हथकंडे अपनाए। बाद में अच्छा ख़ासा ब्याज वसूला। वनस्पति रंगों के मुक़ाबले रासायनिक रंग काफ़ी सस्ते थे। चमक-दमक भी खूब थी। आसानी से उपलब्ध भी हो जाते थे। इसलिए आसानी से क़ब्ज़ा जमाने में क़ामयाब हो गये।

ख़ूबसूरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करते हैं। इस आनंद का राज हैं। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है। कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है। कुछ रंग शांति का एहसास कराते हैं। जीवन पर रंग का बहुत असर है। हर एक रंग अलग-अलग तरीके से आन्दोलित करता है। नीला रंग शरीर में कम होता है, तो क्रोध अधिक आता है, नीले रंग के ध्यान से इसकी पूर्ति हो जाने पर गुस्सा कम हो जाता है। श्वेत रंग की कमी होती है, तो अशांति बढ़ती है, लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता पनपती है। पीले रंग की कमी होने पर ज्ञानतंतु निष्क्रिय बन जाते हैं। ज्योतिकेंद्र पर श्वेत रंग, दर्शन-केंद्र पर लाल रंग और ज्ञान-केंद्र पर पीले रंग का ध्यान करने से क्रमशः शांति, सक्रियता और ज्ञानतंतु की सक्रियता उपलब्ध होती है।

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रंगों का हमारे जीवन से जुड़ाव सिर्फ होली तक सीमित नहीं है। रंग हमारे जीवन के हर पहलू पर असर डालते हैं। रंगों का एक व्यापक स्पेक्ट्रम होता है जिसके दो बेसिक रंग होते हैं– लाल और नीला। कलर स्पेक्ट्रम में लाल रंग की रेंज में जो रंग आते हैं उनको गर्म रंग कहते हैं। इन रंगों में लाल, ऑरेंज और पीला शामिल होते हैं। शांत रंग में नीला, हल्का हरा और सफेद शामिल हैं। ये शांत और इमोशनल विचार बढाते हैं। दूसरी ओर, काला व भूरा रंग हैं जो उदासी को प्रसारित करते हैं। ये रंग डिप्रेशन और एकाकीपन से जुड़े होते हैं।

लाल रंग शरीर का ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है। इससे एड्रिनल ग्रंथि एक्टिव हो जाती है। शरीर में ताकत बढ़ती है। लाल रंग पसंद करने वाला इंसान उर्जा से भरा, आशावादी, महत्वाकांक्षी होता है। ऐसा व्यक्ति आकर्षण का केन्द्र रहता है। लेकिन लाल रंग के कुछ साइड इफ़ेक्ट भी हैं। कुछ लोगों में लाल रंग इरीटेशन भी पैदा करता है। लाल रंग ब्लडप्रेशर और दिल की धड़कन बढ़ा देता है।

ऑरेंज या नारंगी रंग हमारी पाचन क्रिया से सम्बंधित है। ये रंग भूख बढ़ाता है, यौन शक्ति बढ़ाता है, शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। कुछ स्टडी में बताया गया है कि ऑरेंज रंग फेफड़े के रोगों में अच्छा असर दिखाता है। ऑरेंज रंग को पसन्द करने वाला व्यक्ति साहसी, दृढ़ प्रतिज्ञ और अच्छे मिलनसार स्वभाव के होते है। ऐसा व्यक्ति न्यायपूर्ण होता है। पीला रंग भी लाल स्पेक्ट्रम का हिस्सा है। पीला रंग दिमाग तेज करता है। अत्यंत सावधान बनाता है। इनसान को मतलबी भी बनाता है। इस रंग को पसंद करने वाला व्यक्ति बुद्धिमान, प्रैक्टिकल, उत्सुक, एकाकी और बेहद कल्पनाशील होता है।

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हरा रंग दूसरे स्पेक्ट्रम का हिस्सा है जिसे शीतल रंग कहा जाता है। हरा रंग हृदय के लिये फायदेमंद होता है। क्योंकि ये शीतलता प्रदान करता है। ये रंग तनाव और स्ट्रेस दूर करता है। माना जाता है कि हरा रंग हाईबीपी वालों के लिए फायदेमंद होता है। हरे रंग को पसंद करने वाले व्यक्ति के स्वभाव में स्थिरता और संतुलन बना रहता है। ऐसा इंसान सम्मानित होता है। ऐसा व्यक्ति गलत निर्णय नहीं लेता है। हमेशा सोच समझ कर काम करता है।

नीला रंग ब्लड प्रेशर घटाता है। ये पिट्यूटरी ग्लैंड को उत्तेजित करता है। नीला रंग नींद संबंधी परेशानी दूर करता है। इस रंग में मन को शांत करने का गुण है। इस रंग को पसंद करने वाला व्यक्ति टेंशन से दूर रहता है। शांत स्वभाव का होता है। ऐसे व्यक्ति भरोसा करने के काबिल माने जाते हैं। लेकिन इस रंग को पसंद करने वाले परम्परावादी माने जाते हैं। ये रंग भी शीतल केटेगरी में आता है। बैंगनी रंग भूख को घटाता है। मेटाबोलिस्म को सुधारता है। इस रेंज के प्रयोग से स्किन की बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। बैंगनी रंग पसंद करने वाले लोग क्रिएटिव होते हैं। उनमें संवेदनशीलता होती है। और हाई लेवल के आर्ट्स में माहिर होते हैं।

हमारी शारीरिक सेहत पर भी रंगों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता हैं। पश्चिमी देशों में कलर थेरेपी या क्रोमोथेरेपी काफी इस्तेमाल की जाती है। इस थेरेपी के अनुसार शरीर में हरे, नीले व लाल रंग के असंतुलन से भी बीमारी पैदा होती हैं।

कलर थेरेपी के अनुसार लाल रंग का सम्बन्ध लिवर से है। लाल रंग को रीड़ की हड्डी से भी जोड़कर देखा जाता है। इसका असर किडनी पर होता है। ऑरेंज रंग का ताल्लुक थोयरोइड और पेट के निचले हिस्से से है। ऑरेंज रंग ब्लड क्लाटिंग से भी सम्बंधित है। पीले रंग का रेटिना, हरे रंग का पिट्यूतटरी ग्लैंड, गहरे नीले रंग का मस्तिष्क की पिनियल ग्लैंड, हलके नीले का पैराथोयरोइड और बैंगनी रंग का स्प्लीन से संबंध होता है।

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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर राशि का अपना अलग रंग होता है। मेष राशि वालों को गुलाबी, लाल, पीला रंग से होली खेलनी चाहिए। मेष के स्वामी मंगल हैं, ऐसे में मंगल और उसके मित्र गुरु के रंगों का प्रयोग जीवन को सुख और शांति से भर सकता है। वृषभ राशि के लिए नीला, हरा और चमकीला रंग सबसे ज्यादा भाग्यशाली रंग है। इस राशि वालों को गहरे लाल रंग से होली खेलने से बचना चाहिए। वृषभ राशि का स्वामी शुक्र है और शुक्र का असर सभी चमकीले रंगों पर रहता है।

मिथुन राशि के लोगों का प्रिय रंग हरा है। मिथुन राशि पर बुध का असर रहता है। इस राशि के लोग हल्का नीला या हरे रंग के शेड्स का उपयोग कर सकते हैं। कर्क राशि पर चंद्रमा का असर रहता है। चंद्रमा के असर के कारण ये लोग शांत बने रहते हैं। भावनात्मक रूप से भी कमजोर हो सकते हैं। कर्क राशि के लोग, गुलाबी, लाल और हल्के रंग से होली खेल सकते हैं।

सिंह राशि के लोगों को केसरिया, लाल, गुलाबी, हरा, हल्के पीले रंग से होली खेलना चाहिए। कन्या राशि के लोग बुध प्रधान होते हैं। इस राशि के लिए प्रकृति से जुड़े रंग जैसे हरा, हल्का हरा, आसमानी, समुद्री नीला रंग होली खेलने के लिए सबसे अधिक सौभाग्यशाली होगा। तुला राशि के लोगों को सभी तरह के रंगों से प्यार होता है। उन पर शुक्र का असर होता है। तुला राशि के लोगों के लिए गुलाबी, नीला या किसी भी तरह का चमकीला रंग होली खेलने के लिए अत्यंत शुभ होता है।

वृश्चिक राशि जल तत्व की राशि जरूर है, लेकिन वृश्चिक राशि के लोगों को अच्छा सौभाग्य प्राप्त करने के लिए पानी से होली खेलने से बचना चाहिए। वृश्चिक राशि के लोगों के लिए लाल, गहरा लाल, गुलाबी, जैसे रंग होली खेलने के लिए अत्यंत शुभ रहते हैं।

धनु राशि के लोगों पर गुरु का असर होता है। धनु राशि के लोगों को पीले, हल्के पीले, हल्के लाल, सिंदुरी, केसरिया जैसे रंगों से होली खेलना शुभ रहता है। मकर राशि के लोगों पर शनि का असर रहता है। शनि प्रधान लोगों को काले रंग से होली खेलने से बचना चाहिए। इसलिए मकर राशि के लोगों को नीला, हल्का नीला, आसमानी और हरे रंग का उपयोग होली खेलने के लिए करना चाहिए।

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कुंभ राशि के राशि स्वामी भी शनि है। मकर राशि की तरह इन्हें भी काले रंग से होली खेलने से बचना चाहिए। होली खेलने के लिए कुंभ राशि के लोगों को नीला, बैंगनी, जामुनी जैसे रंगों का प्रयोग करना चाहिए। मीन राशि का स्वामी गुरु है। मीन राशि के लोगों को गुरु ग्रह और उसके मित्रों के पसंदीदा रंगों से होली खेलनी चाहिए। मीन राशि के लिए होली में पीला, गहरा पीला, गुलाबी, हल्का लाल रंग का उपयोग उनके जीवन में सकारात्मकता बढ़ाता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)



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