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यह लव के लिए जिहाद तो नहीं ?

मुझे पिछले 70-75 साल में सारी दुनिया में ऐसे लोग शायद दर्जन भर भी नहीं मिले, जो वेद-उपनिषद् पढ़कर हिंदू बने हों, बाइबिल पढ़कर यहूदी और ईसाई बने हों या कुरान-शरीफ़ पढ़कर मुसलमान बने हों।

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Published on: 28 Dec 2020 5:26 AM GMT
यह लव के लिए जिहाद तो नहीं ?
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यूपी और मध्यप्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में लव जिहाद के मामलों पर रोक लगाने के लिए कानून पास किया गया था। गुजरात ने भी इसी सिलसिले में राज्य में बिल पेश करने का फैसला किया था।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

लखनऊ: अब मध्यप्रदेश ने भी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड की तरह 'लव जिहाद' के खिलाफ जिहाद बोल दिया है। मप्र सरकार का यह कानून पिछले कानूनों के मुकाबले अधिक कठोर जरुर है लेकिन यह कानून उनसे बेहतर है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का यह कथन भी गौर करने लायक है कि यदि कोई स्वेच्छा से अपना धर्म-परिवर्तन करना चाहे तो करे लेकिन वह लालच, डर और धोखेबाजी के कारण वैसा करता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। उस पर 10 साल की सजा और एक लाख रु. तक जुर्माना ठोका जा सकता है। यह तो ठीक है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि लोग किसी धर्म को क्यों मानने लगते हैं या वे एक धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म में क्यों चले जाते हैं ?

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मुझे पिछले 70-75 साल में सारी दुनिया में ऐसे लोग शायद दर्जन भर भी नहीं मिले, जो वेद-उपनिषद् पढ़कर हिंदू बने हों, बाइबिल पढ़कर यहूदी और ईसाई बने हों या कुरान-शरीफ़ पढ़कर मुसलमान बने हों। लगभग हर मनुष्य इसीलिए किसी धर्म (याने संस्कृत का 'धर्म' नहीं) बल्कि रिलीजन या मजहब या पंथ या संप्रदाय का अनुयायी होता है कि उसके माँ-बाप उसे मानते रहे हैं। लेकिन जो लोग अपना 'धर्म-परिवर्तन' करते हैं, वे क्यों करते हैं ? वे क्या उस 'धर्म' की सभी बारीकियों को समझकर वैसा करते हैं ? हाँ, करते हैं लेकिन उनकी संख्या लाखों में एक-दो होती है। ज्यादातर 'धर्म-परिवर्तन' थोक में होते हैं, जैसे कि ईसाइयत और इस्लाम में हुए हैं।

ये काम तलवार, पैसे, ओहदे, वासना और डर के कारण होते हैं

ये काम तलवार, पैसे, ओहदे, वासना और डर के कारण होते हैं। यूरोप और एशिया का इतिहास आप ध्यान से पढ़ें तो आपको मेरी बात समझ में आ जाएगी। जब ये मजहब शुरु हुए तो इनकी भूमिका क्रांतिकारी रही और हजारों-लाखों लोगों ने स्वेच्छा से इन्हें स्वीकार किया। लेकिन बाद में ये सत्ता और वासना की सीढ़ियां बन गए। मजहब तो राजनीति से भी ज्यादा खतरनाक और खूनी बन गया। मजहब के नाम पर एक मुल्क ही खड़ा कर दिया गया। मजहब ने राजनीति को अपना हथियार बना लिया और राजनीति ने मजहब को ! अब हमारे देश में 'लव जिहाद' की राजनीति चल पड़ी है।

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असली प्रश्न यह है कि आप लव के लिए जिहाद कर रहे हैं या जिहाद के लिए लव कर रहे हैं ? यदि किन्हीं दो विधर्मी औरत-मर्द में ‘लव’ हो जाता है और वे अपने मजहब को नीचे और प्यार को ऊपर करके शादी कर लेते हैं तो उसका तो स्वागत होना चाहिए। उनसे बड़ा मानव-धर्म को माननेवाला कौन होगा ? लेकिन जो लोग जिहाद के खातिर लव करते हैं याने किसी लड़के या लड़की को प्यार का झांसा देकर मुसलमान, ईसाई या हिंदू बनने के लिए मजबूर करते हैं, उनको जितनी भी सजा दी जाए, कम है। हालांकि इस मजबूरी को अदालत में सिद्ध करना बड़ा मुश्किल है।

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