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आज के ही दिन पहली बार गाया गया था वंदे मातरम, जानिए इसका इतिहास

संस्कृत में 'बंदे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है और 'वंदे मातरम्' कहने से 'माता की वन्दना करता हूं' ऐसा अर्थ निकलता है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् कहा गया।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 28 Dec 2020 10:33 AM IST
आज के ही दिन पहली बार गाया गया था वंदे मातरम, जानिए इसका इतिहास
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राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत क्यों बनाया गया। वंदे मातरम को साल 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में लिखा था। जिसे उन्होंने साल 1881 में अपनी नॉवल आनंदमठ में भी जगह दी।

नई दिल्ली : वंदे मातरम्, वंदे मातरम्!

सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,

शस्यश्यामलाम्, मातरम्!

वंदे मातरम्!...............

बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित ‘वंदे मातरम्’ गीत भारत का राष्ट्रीय गीत है। 'वंदे मातरम्' का स्थान राष्ट्रीय गान 'जन गण मन' के बराबर है। यह गीत स्वतंत्रता की लड़ाई में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था। वंदे मातरम को लेकर आज का इतिहास बेहद ही खास है, क्योंकि आज 28 दिसंबर के ही दिन कलकत्ता में साल 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में पहली बार 'वंदेमातरम्' गाया गया था। यह भारत का संविधान सम्मत राष्ट्रगीत है।

इस तरह बना राष्ट्रगीत

इस बहुत कम लोग जानते होंगे कि वंदे मातरम को पहले राष्ट्रगान बनाने की बात कही जा रही थी। लेकिन फिर इसे राष्ट्रगीत बनाने का फैसला लिया गया। क्योंकि उसकी शुरुआती चार लाइन देश को समर्पित हैं बाद की लाइने बंगाली भाषा में हैं और मां दुर्गा की स्तुति की गई है। जानते हैं वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रगीत है, लेकिन क्या जानते हैं कि इसे राष्ट्रगान ना बनाकर राष्ट्रगीत क्यों बनाया गया। वंदे मातरम को साल 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में लिखा था। जिसे उन्होंने साल 1881 में अपनी नॉवल आनंदमठ में भी जगह दी। जिसके बाद धीरे-धीरे इस गीत की लोकप्रिय और भी बढ़ती गई, जिससे घबराए अंग्रेज सरकार इसे प्रतिबंधित करने की योजना भी बनाने लगी थी। इसे पहली बार इसे राजनीतिक संदर्भ में रबींद्रनाथ टैगौर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया था।

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राष्टगीत से जुड़ी खास बातें...

इस दौरान सन् 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इस गीत को गया। पांच साल बाद यानी सन् 1901 में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में श्री चरणदास ने यह गीत को फिर से गाया, जिसके बाद साल 1905 में बनारस अधिवेशन के दौरान इस गीत को सरलादेवी चौधरानी ने भी गया।

ये था अर्थ- बंदे या वंदे जानें...

वहीं अगर बांग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाए तो इसका शीर्षक 'वदें मातरम' नहीं बल्कि 'बंदे मातरम्' होना चाहिए क्योंकि हिन्दी और संस्कृत भाषा में 'वंदे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बांग्ला में लिखा गया था और बांग्ला लिपि में 'व' अक्षर है ही नहीं इसलिए बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे 'बन्दे मातरम्' ही लिखा था। संस्कृत में 'बंदे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है और 'वंदे मातरम्' कहने से 'माता की वन्दना करता हूं' ऐसा अर्थ निकलता है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् कहा गया।

बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत में ब्रिटिश शासन था। ब्रिटेन का एक गीत था 'गॉड! सेव द क्वीन'। भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य कर दिया गया। बंकिमचंद्र उस समय सरकारी नौकरी करते थे। अंग्रेजों के बर्ताव से बंकिम को बहुत बुरा लगा और उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया 'वन्दे मातरम्'।

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आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत

'वंदेमातरम्' बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बांग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस गीत का प्रकाशन सन् 1882 में उनके उपन्यास आनन्द मठ में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनायी थी।

आजादी की लड़ाई में जोश भरने का काम

बता दें कि बंगाल में चले स्वाधीनता-आन्दोलन के दौरान विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए 'वंदेमातरम्' का गायन किया जाता । जब लाला लाजपत राय ने लाहौर से 'जर्नल' का प्रकाशन शुरू किया था तब उन्होंने उसका नाम भी वन्दे मातरम् ही रखा था। इसके अलावा अंग्रेजों की गोली का शिकार हुए आजादी की दीवानी मातंगिनी हाजरा की जुबान पर भी आखिरी शब्द "वन्दे मातरम्" ही था।

सबसे फेमस गीत

साल 2002 में बीबीसी के एक सर्वेक्षण के अनुसार ‘वंदे मातरम्’ विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत बना। सर्वेक्षण में उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिए दुनिया भर से लगभग 7000 गीतों को चुना गया था और करीब 155 देशों के लोगों ने इसमें मतदान किया था। इस सर्वे में वंदे मातरम् शीर्ष 10 गीतों में दूसरे स्थान पर रहा था।



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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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