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यह ध्रुवीकरण नहीं, धुंआकरण है

एक पुरानी कहावत है कि प्रेम और युद्ध में किसी नियम-कायदे का पालन नहीं होता। मैं सोचता हूं कि यह कहावत सबसे ज्यादा लागू होती है हमारे चुनावों पर !

Roshni Khan
Published on: 30 Jan 2020 4:41 AM GMT
यह ध्रुवीकरण नहीं, धुंआकरण है
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डॉ. वेदप्रताप वैदिक

एक पुरानी कहावत है कि प्रेम और युद्ध में किसी नियम-कायदे का पालन नहीं होता। मैं सोचता हूं कि यह कहावत सबसे ज्यादा लागू होती है हमारे चुनावों पर ! चुनाव जीतने के लिए कौन-सी मर्यादा भंग नहीं होती ? कोई भी प्रमुख उम्मीदवार यह दावा नहीं कर सकता कि उसने चुनाव-अभियान के लिए अंधाधुंध पैसा नहीं बहाया है। चुनाव आयोग द्वारा बांधी गई खर्च की सीमा का उल्लंघन कौन प्रमुख उम्मीदवार नहीं करता ? शराब, नकदी और तरह-तरह के तोहफों का अंबार लगा रहता है। दिल्ली में आजकल जो चुनाव-अभियान चल रहा है, उसमें उक्त मर्यादा-भंग तो हो ही चुका है लेकिन कुछ नेताओं ने ऐसे बोल बोले हैं, जो उनकी अपनी प्रतिष्ठा को तो धूमिल करते ही है, उनकी पार्टी को भी बदनाम करते हैं।

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वे बयान भारतीय राजनीति को उसके निम्नतम स्तर पर ले जाते हैं। राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर और भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा, दोनों ही युवक मुझे प्रिय हैं। इन दोनों के पिताजी मेरे मित्र रहे हैं। दोनों का व्यक्तित्व आकर्षक है लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि दोनों ने ऐसी बातें कैसे कह दीं, क्यों कह दीं ? 'देश के गद्दारों को, गोली मारो इन सालों' को और 'ये लोेग तुम्हारे घरों में घुसकर बलात्कार करेंगे'- यह सब कहने या नारे लगवाने का अर्थ क्या है ? इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान की तुक क्या है कि यदि युद्ध हुआ तो हम पाकिस्तान को 7 से 10 दिन में धूल चटा सकते हैं ? गृहमंत्री अमित शाह और कुछ अन्य भाजपा नेता ‘शाहीन बागों’ को पाकिस्तान कह रहे हैं। ऐसी उग्रवादी बातें, क्या इसलिए की जा रही हैं कि हिंदू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो जाए ? क्या अब भाजपा का आखिरी सहारा पाकिस्तान और मुसलमान ही बचे हैं ? क्या वे ही अब एक मात्र ब्रह्मास्त्र बचे हैं, जो केजरीवाल पर चलाए जा रहे हैं ?

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भाजपा के नेताओं ने दिल्ली की जनता को इतना बेवकूफ क्यों समझ रखा है ? यह हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण नहीं, धुंआकरण है। यह सांप्रदायिक धुंआकरण आखिरकार भारत के लिए दमघोंटू सिद्ध हो सकता है। भाजपा को चाहिए था कि उसकी केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों ने जो उत्तम काम किए हैं, उनका वह प्रचार करती और दिल्लीवालों को बेहतर सरकार देने का वादा करती। उसके पास दिल्ली में मुख्यमंत्री के लायक कोई नेता नहीं है तो इसका नतीजा यह भी होगा कि दिल्ली के चुनाव के बाद अरविंद केजरीवाल, राष्ट्रीय स्तर पर शायद नरेंद्र मोदी के खिलाफ उभर आए और प्रधानमंत्री पद की चुनौती बन जाए।

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