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माकपा पर भाग्यवती का जिहाद

केरल के महाबलशाली मार्क्सवादी मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन को उनके धर्मदम विधानसभा क्षेत्र (कन्नूर) में एक दलित मजदूर की विधवा वी. भाग्यवती पुरजोर चुनौती दे रही है।

Newstrack
Published on: 25 March 2021 8:00 PM IST
माकपा पर भाग्यवती का जिहाद
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देश में कोरोना काल में पहला चुनाव बिहार में होने जा रहा है। बदले माहौल में चुनावी कलेवर भी बदला हुआ है। भीड़ भड़क्का तो हो नहीं सकता सो सब कुछ डिजिटल और वर्चुअल है।

K-Viram-rao के. विक्रम राव

केरल के महाबलशाली मार्क्सवादी मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन को उनके धर्मदम विधानसभा क्षेत्र (कन्नूर) में एक दलित मजदूर की विधवा वी. भाग्यवती पुरजोर चुनौती दे रही है। ''विजयन के विरुद्ध'' अपना विजय संकल्प पूरा करने हेतु उसने सिर मुंडवा लिया है। यह चुनाव क्षेत्र भाजपा और माकपा का गढ़ माना जाता है।

मुकाबला सीधा हो सकता है

विपक्षी कांग्रेस ने अभी तक इस क्षेत्र से अपना प्रत्याशी नामित नहीं किया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामाचन्द्रन ने कहा कि इस दलित का समर्थन पार्टी कर सकती है। मुकाबला सीधा हो सकता है। अत: पिनरायी विजयन का व्यग्र होना स्वा​भाविक है। यूं भी खाड़ी देश से सोना तस्करी में उनके प्रमुख सचिव एम. शिवशंकर और उनके सरकारी कार्यालय की लिप्तता के कारण माकपा गठबंधन विपदा में पड़ा है। इस पर यह नयी आफत आन पड़ी है।

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दलित महिला मजदूर भाग्यवती द्वारा चुनावी उम्मीदवारी का कारण है, उसकी दो नाबालिग बेटियों का पांच माकपा कार्यकर्ताओं ने चार साल पूर्व बलात्कार किया था। बड़ी पुत्री तेरह की और दूसरी केवल नौ वर्ष की थी। पुलिस की रपट के अनुसार इन दोनों ने आत्महत्या की थी, जबकि दोनों की लाशें टंगी मिलीं थीं। विधवा मां तीन वर्षों से दर—दर भटकती रही, न्याय की गुहार लगाती रही।

पांचों हत्यारें बरी

जनपदीय न्यायालय में पांचों हत्यारें बरी कर दिये गये ​थे। अदालत ने पाया कि पुलिस तथा अभियोजन पक्ष हत्या सिद्ध नहीं कर पाया। पर्याप्त सबूत नहीं उपलब्ध करा पायी थी। इस निर्णय के बाद मलयालयम मीडिया, विशेषकर हमारे ''आईएफडब्ल्यूजे'' के पत्रकार पदाधिकारियों ने राज्यव्यापी अभियान चलाये। मीडिया के कारण जगह—जगह माकपा कार्यालयों के सामने धरना प्रदर्शन हुये। जनसंघर्ष का नतीजा था कि केरल हाई कोर्ट ने मुकदमें की दुबारा सुनवाई का आदेश दिया।

फिर से जिला अदालत हत्या के आरोप पर सुनवायी कर रही है। इसी दरम्यान वालायार (पलक्काड जनपद) की वासी दलित विधवा भाग्यवती ने मुख्यमंत्री कार्यालय में शिकायत दर्ज करायी कि माकपा शासन ने मुकदमें को सोच—समझकर कमजोर करने, सबूत झुठलाने और हत्यारों को बरी किये जाने में मदद करने वाले इंस्पेक्टर सोजन को डिप्टी सुप्रीन्टेन्डेन्ट और सब—इंस्पेक्टर को इंस्पेक्टर पद पर प्रोन्नत कर दिया। अर्थात मार्क्सवादी पार्टी ने उन पांच कार्यकर्ताओं (अभियुक्तों) का साथ देने वालों को पुरस्कृत कर दिया।

मजदूर भाग्यवती ने संवाददाताओं को बताया उसके करुण कुन्दन से भी माकपा मुख्यमंत्री और पार्टी मुखिया नहीं पसीजे। माकपा राष्ट्रीय महासचिव येचूरी सीताराम भी मौन हैं। भला हो हाई कोर्ट का कि मामला फिर खुला।

सत्याग्रह समाप्त करने का आग्रह

अब धर्मदम विधानसभा क्षेत्र पर सारे राज्य की जनता की नजरें टिकीं हैं। उपने हर चुनावी सभा में पिनरायी विजयन सफाई देते फिर रहें हैं कि वे तथा उनकी सरकार ने भाग्यवती के साथ समुचित साथ न्याय किया है। मदद की पेशकश भी की थी। उससे अपना सत्याग्रह समाप्त करने का आग्रह भी सरकार ने किया था।

सरकारी दावा है कि इन दो नाबालिग ​बालिकाओं ने दुष्कर्म के बाद लोकलाज के डर से आत्महत्या की। इस बात को वालायार कस्बे के वासी मनगढ़ंत करार दे रहें हैं। उनका मानना है कि इतनी छोटी बालिकाओं को इतनी बुद्धि भी नहीं थी कि जानें कि लोकलाज क्या होता है। कद में वे इतनी लम्बी भी नहीं थीं कि छत तक पहुंचकर फांसी पर झूल जाये।

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तेरह साल की लड़की का बलात्कार हुआ, नौ वर्ष की छोटी बच्ची ने देखा था, अपराधियों को पहचान लिया था। अत: पन्द्रह दिनों बाद हत्यारे दुबारा आये और उस बालिका को मार डाला। साक्ष्य ही मिटा दिया। पुलिस ने इस तरह का बयान तक दे दिया था कि बालिकाओं की योनि में घाव दुष्कर्म से नहीं वर्ना बवासीर के कारण हुआ था। इस फूहड़पन पर विधानसभा में कांग्रेस विपक्ष ने बवाल खड़ा किया था। मगर माकपा शीर्ष नेतृत्व है कि टस से मस भी नहीं हुआ। पसीजा तक नहीं।

अब तो जनता की अदालत से ही दलित भाग्यवती को न्याय की आशा है। एक अचरज भी। मायावती तथा प्रियंका वाड्रा की प्रतिक्रिया अभी तक नहीं मिली। सौ दिन बीते। माकपा के साथ कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में महागठबंधन बनाया है। यही वजह हो सकती है क्या?

(नोट- ये लेखक के निजी विचार हैं)

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