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कमलनाथ का कोरोना
स्पर्शक्रामक विषाणु ने सोनिया–कांग्रेस की सरकार को मध्यप्रदेश में चन्द दिनों के लिए जीवन दान दिला दिया| सांस कुछ दिन तो और चलेगी| मगर विधायी इतिहास भोपाल में सर्जा है|
के. विक्रम राव
स्पर्शक्रामक विषाणु ने सोनिया–कांग्रेस की सरकार को मध्यप्रदेश में चन्द दिनों के लिए जीवन दान दिला दिया| सांस कुछ दिन तो और चलेगी| मगर विधायी इतिहास भोपाल में सर्जा है| मेडिकल वजह दी विधान सभा के अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने विश्वासमत का मुहूर्त तय करने में|
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राज्यपाल लालजी टंडन ने इसे अस्वीकार कर दिया| हालाँकि उनका ज्ञान रोगों तथा दवाइयों पर कम ही है| बस इतना ही है कि टंडनजी लखनऊ में मेडिकल कॉलेज से सवा किलोमीटर दूर चौक में पुश्तैनी मकान में अस्सी वर्ष से रह रहे हैं| वे आस पड़ोस दवाइयों की दुकानों से घिरे हैं| कभी मुम्बई में निर्मित रबर के जूते (केरोना कम्पनीवाले) पहनते थे| कला विषय में लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट रहे| मेरे सीनियर थे| चिकन के कुर्ते बेचा करते थे| अटल बिहारी वाजपेयी के झन्डाबरदार रहे| अतः उन्हें लगा कि विधान सभा अध्यक्ष करोना का केवल बहाना कर रहे हैं| करोना का रोना रोकर पार्टी सरकार के निश्चित अवसान को टालने की साजिश रच रहे हैं|
कांग्रेसी सत्ताधीशों के लिए ऐसा नया नहीं रहा| मगर इस पुरानी पार्टी की नैतिकता का एक नायाब उदाहरण दिया जा सकता है| उत्तर प्रदेश विधान सभा के चौथे आम चुनाव में बमुश्किल न्यूनतम बहुमत पाकर चंद्रभान गुप्त मुख्यमंत्री बने थे| किन्तु अतिमहत्वाकांक्षी चरण सिंह अपने सत्रह कांग्रेसी विधायकों के साथ संयुक्त विधायक दल बनाकर मुख्यमंत्री बन बैठे| तब पहला कदम गुप्तजी ने उठाया कि वे सीधे राजभवन गये| राज्यपाल डॉ. बुर्गुल रामकृष्ण राव को त्यागपत्र दे दिया| जोड़ तोड़ द्वारा सत्ता से सटे रहने से इंकार कर दिया| अर्थात् वे एक सत्यवान कांग्रेसी स्वतंत्र भारत के दूसरे दशक वाले थे, और आज सोनिया-कांग्रेस वाले कमलनाथ हैं| पार्टी के चरित्र का स्खलन तेज और गहरा हुआ है|
गुप्तजी जैसा उदाहरण मोरारजीभाई देसाई वाला भी था| भारतीय गणराज्य के प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधान मंत्री (मोरारजी देसाई) ने साथी चरण सिंह द्वारा दगा दिए जाने पर (जुलाई 1989) राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को त्यागपत्र दे दिया था| चरण सिंह, जिन्हें राजनारायणजी बड़ी आत्मीयता से “चेयर सिंह” कहते थे, ने दूसरी बार पाली पलटी| याद कीजिये 16 मई 1996 जब लोकसभा में भावुक भाषण देकर लखनऊ के सांसद अटल बिहारी वाजपेयी ने तेरह दिन बाद प्रधान मंत्री पद तज दिया था| राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा मूक साक्षी रहे|
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उसी सन्दर्भ में परखें कमलनाथ की कुर्सी से चिपके रहने की नीयत को| इसका कारण एक पुरातन कांग्रेसी परिपाटी है| जवाहरलाल नेहरू भी अपने कार्यकाल (1947-1964) में पांच बार त्यागपत्र की अखबारी घोषणा कर चुके थे| एक बार तो उनके चहेते रफ़ी अहमद किदवई ने कह भी दिया कि वे प्रधान मंत्री का काम कर सकते है, “पर नेहरू इस्तीफा तो दें|” आखिर इंदिरा गाँधी के तीसरे पुत्र का दावा करने वाले यही कमलनाथ ही थे जो बिना लोकसभाई बहुमत के सोनिया गाँधी (17 अप्रैल 1999) को प्रधान मंत्री बनवा रहे थे|
राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने तीन दिन बाद सोनिया को सरकार बनाने का निमंत्रण भी दे दिया था| प्रधान मंत्री पद रिक्त हुआ था जब अटल वाजपेयी जी की सरकार मात्र एक वोट से गिर गई थी| तब सोनिया गाँधी के समर्थन के दावे को झुठलाते हुए मुलायम सिंह यादव ने लंगड़ी लगा दी थी| वर्ना फिर परिवार राष्ट्र पर छा जाता| एक विदेशी सत्ता पर बैठ जाती| दो सदियों पूर्व पाटलीपुत्र में सिकंदर के कमांडर सेल्युकैस निकाटोर की बेटी हेलेना चन्द्रगुप्त मौर्य की रानी बनी थी|
आज भोपाल में सत्ता लोलुपों का ताण्डव हो गया था| करोना तो बस बहाना है|
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