×

राम मंदिर का बूटा सिंह और सिखों से रिश्ता

अजीब बिडबंना है कि अयोध्या विवाद को हिन्दू-मुस्लिम मसले के रूप में ही देखा जाता रहा है। पर इस सारे प्रकरण से सिख नेता भी करीबी से जुड़े रहे।

Roshni Khan
Published on: 3 Jan 2021 11:20 AM GMT
राम मंदिर का बूटा सिंह और सिखों से रिश्ता
X
राम मंदिर का बूटा सिंह और सिखों से रिश्ते पर आर.के. सिन्हा (PC: social media)

आर.के. सिन्हा

लखनऊ: सरदार बूटा सिंह का निधन तब हुआ है जब अय़ोध्या में राम मंदिर का निर्माण कार्य का श्रीगणेश हो चुका है। इस प्रकार, पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह की आत्मा को शांति मिली होगीI इस तथ्य से कम लोग ही वाकिफ है कि बूटा सिंह भगवान राम के अनन्य भक्त थे और सुप्रीम कोर्ट में मंदिर-मस्जिद मसले पर जो केस चला था उसमें उन्होंने हिन्दू पक्ष को एक महत्वपूर्ण सलाह भी दी थी। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि अगर रामलला को इस केस में पक्षकार नहीं बनाया गया होता तो फैसला अलग हो सकता था।

ये भी पढ़ें:Y-Factor Yogesh Mishra | Jinnah का इस्लाम से नहीं था दूर-दूर का कोई नाता… | Epi- 117

गांधी सरकार में गृह मंत्री बूटा सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी

यह जानना दिलचस्प है कि रामलला को पक्षकार बनाने के पीछे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में गृह मंत्री बूटा सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी। जब राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ने लगा और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ताला खुलवा दिया तो बूटा सिंह ने शीला दीक्षित के जरिए विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल को संदेश भेजा कि हिन्दू पक्ष की ओर से दाखिल किसी मुकदमे में जमीन का मालिकाना हक नहीं मांगा गया है और इसलिए उनका मुकदमा हारना तय है।

राम मंदिर निर्माण में सिख

अजीब बिडबंना है कि अयोध्या विवाद को हिन्दू-मुस्लिम मसले के रूप में ही देखा जाता रहा है। पर इस सारे प्रकरण से सिख नेता भी करीबी से जुड़े रहे। बूटा सिंह की भूमिका इसी बात की पुष्टि करती है। इस पहलू की अभी तक अनदेखी ही हुई है या यह कहें कि यह पक्ष सही रूप से जनता के सामने नहीं आया है। देखा जाए तो बूटा सिंह उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे थे जिसकी नींव बाबा नानक ने भी सन 1510-11 के बीच में डाल दी थी। बाबा नानक ने अयोध्या जाकर राम जन्म मंदिर के दर्शन किए थे। प्रभाकर मिश्र ने अपनी पुस्तक ''एक रुका हुआ फैसला'' में लिखा है कि ''बाबा नानक अय़ोध्या में बाबर के आक्रमण (सन 1526) से पहले आए थे। बाद में नौवे, गुरु तेग बहादुर जी और दसवे गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी ने भी श्रीराम मंदिर के दर्शन किए थे।''

28 नवंबर 1858 को दर्ज एक शिकायत का हवाला दिया गया

161 साल पहले विवादित ढांचे के अंदर सबसे पहले घुसने वाला व्यक्ति एक निहंग सिख था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में 28 नवंबर 1858 को दर्ज एक शिकायत का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि 'इस दिन एक निहंग सिख फकीर सिंह खालसा ने विवादित ढांचे के अंदर घुसकर पूजा का आयोजन किया।' 20 नवंबर 1858 को स्थानीय निवासी मोहम्मद सलीम ने एक एफआईआर दर्ज करवाई जिसमें कहा गया कि ''निहंग सिख, बाबरी ढांचे में घुस गया है, राम नाम के साथ हवन कर रहे है।''

buta-singh buta-singh (PC: social media)

यानी राम मंदिर के लिए पहली एफआईआर हिन्दुओं के खिलाफ नहीं, सिखों के खिलाफ ही दर्ज हुई थी। अब जरा सोचिए कि ये निहंग सिख पंजाब से कितना लंबा सफर तय करके अयोध्या तक पहुंच गया होगा।

वैमनस्य पैदा करने वाले कौन

पर अफसोस यह देखिए कि आज कल बहुत से शातिर तत्व हिन्दुओं और सिखों में वैमनस्य पैदा करने की हर मुमकिन कोशिशें कर रहे हैं। भगवान राम की महिमा सिख परंपरा में भी बखूबी विवेचित है। सिखों के प्रधान ग्रंथ ''गुरुग्रंथ साहब'' में साढ़े पांच हजार बार भगवान राम के नाम का जिक्र मिलता है। सिख परंपरा में भगवान राम से जुड़ी विरासत रामनगरी में ही स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में पूरी शिद्दत से प्रवाहमान है। गुरुद्वारा में प्रति वर्ष राम जन्मोत्सव मनाया जाता है। पूर्वाह्न अरदास-कीर्तन के साथ भगवान राम पर केंद्रित गोष्ठी एवं मध्याह्न भंडारा आयोजित होता है।

इसी तरह से सभी सिख गुरु भी समस्त हिन्दुओं के लिए भी आराध्य हैं। निश्चित रूप से भगवान राम, अयोध्या में बन रहे राम मंदिर और सिखों के गहरे संबंधों पर शोध और चर्चा होनी चाहिए। जाहिर है, जब इस बिन्दू पर अध्ययन होगा तो बूटा सिंह का उल्लेख भी बड़े आदर पूर्वक होगा। उन्हें सिर्फ एक राजनीतिक हस्ती या केन्द्रीय मंत्री बता देने भर से बात नहीं बनेगी। उनकी मृत्यु पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी शोक जताया है। यह इस बात का प्रमाण है कि बूटा सिंह को किसी दल का नेता कहना सही नहीं होगा।

बूटा सिंह अनुभवी प्रशासक तो थे ही

बूटा सिंह अनुभवी प्रशासक तो थे ही, वे गरीबों के साथ-साथ दलितों के कल्याण के लिए एक प्रभावी आवाज थे। बूटा सिंह के देहांत से देश ने एक सच्चा जनसेवक और निष्ठावान नेता खो दिया है। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा और जनता की भलाई के लिए समर्पित कर दिया, जिसके लिए उन्हें सदैव याद रखा जाएगा।

वे अंतरंग बातचीत में बताते थे कि वाल्मिकी समाज में जन्म लेने के कारण उन्हें बचपन में कितने घोर कष्ट सहने पड़े। उनसे ही स्कूल के टीचर सुबह क्लास साफ़ करने को कहते थे, क्योंकि वे वाल्मिकी समाज से थे। वे उस दौर को याद करते हुए उदास हो जाते थे। बूटा सिंह लगातार सफाई कर्मियों के हक़ में बोलते रहे। वे साफ़ कहते थे कि दलितों में भी सबसे खराब स्थिति वाल्मिकी समाज की है।

उन्हें सीवर साफ करते हुए सफाई कर्मियो की मौत बहुत विचलित कर देती थी। वह इस लिहाज से सही भी थे। किसी सफाई कर्मी की मौत पर ले-देकर उसके घऱ वाले ही आंसू बहा लेते हैं। इनके मरने की खबरें एक दिन आने के बाद अगले दिन से ही कहीं दफन होने लगती हैं। इन बदनसीबों के मरने पर न कोई अफसोस जताता है, न ही ट्वीट करता है। कोई तथाकथित प्रगतिवादी मोमबत्ती परेड भी नहीं निकालता।

ये भी पढ़ें:रायबरेली धर्मांतरण मामला: डरा मुस्लिम से हिंदू बना ये परिवार, जिंदा जलाने की कोशिश

मामला किसी बेसहारा गरीब की मौत से जुड़ा है

चूंकि मामला किसी बेसहारा गरीब की मौत से जुड़ा है, तो उसे रफा-दफा करना भी आसान होता है। इन गरीबों का न तो कोई सही नाम पता ठेकेदार के पास रहता है न वे घटना के बाद कुछ बताने का कष्ट ही करते हैं। बूटा सिंह जब देश के केन्द्रीय गृह मंत्री या शहरी विकास मंत्री थे, वे तब भी अपने वाल्मिकी समाज से जुड़े मसलों के प्रति बेहद सजग और संवेदशील रहे। इससे समझा जा सकता है कि देश के असरदार और शक्तिशाली पद को पाने के बाद भी उन्होंने अपनों को अपने से दूर नहीं किया था। बूटा सिंह के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि देश के दलित और वाल्मीकि समाज की शैक्षणिक और सामाजिक स्थिति में सुधार किया जाए।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Roshni Khan

Roshni Khan

Next Story