×

TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

आदर्श पति शिव

इस वर्ष विश्व महिला दिवस के तुरंत बाद महाशिवरात्रि का आना काफी प्रासंगिक महत्व रखता है। तमीजदार, स्नेहिल जीवन साथी पाने हेतु युवतियां शिव की उपासना करतीं हैं। मसलन सोमवारी व्रत रखना।

Newstrack
Published on: 10 March 2021 6:03 PM IST
आदर्श पति शिव
X
फोटो— सोशल मीडिया

के. विक्रम राव

के. विक्रम राव (K. Vikram Rao)

इस वर्ष विश्व महिला दिवस के तुरंत बाद महाशिवरात्रि का आना काफी प्रासंगिक महत्व रखता है। तमीजदार, स्नेहिल जीवन साथी पाने हेतु युवतियां शिव की उपासना करतीं हैं। मसलन सोमवारी व्रत रखना। बेलवृक्ष को पूजना। शिव की जटा से निकली मां गंगा को पियरी चढ़ाने का वादा करतीं हैं। इसके आधार में गहरी आस्था है। इतने कलावन्त है कि हर कुमारी शिवोपासना करती है कि शिव जैसा पति मिले। जनक नन्दिनी ने ऐसा ही किया था तो राम मिल गये।

शिव एक आदर्श गृहस्थ हैं। पार्वती ने कठिन तपस्या से उन्हें पाया और सम्पूर्ण प्यार भी हासिल किया। शिव केवल एक पत्नीव्रती है तथा उनके दो ही पुत्र हैं। बड़ा नियोजित, सीमित कुटुम्ब है। अन्य विशिष्टतायें भी है। यशोदानन्दन की तीन पत्नियों और राधा तथा अलग से हजारों गोपिकायें सखा थीं। अयोध्यापति ने तो धोबी के प्रलाप के आधार पर ही महारानी को निर्वासित कर दिया था। नारी को सर्वाधिक महत्व शिव ने दिया जब पार्वती को अपने बदन में ही आधी जगह दे दी। अर्धनारीश्वर कहलाये।

इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड: सही साबित हुई Newstrack की न्यूज, सीएम हुए तीरथ सिंह रावत

शिव कला के सृजनकर्ता हैं। ताण्डव नृत्य द्वारा उन्होंने नई विधा को जन्म दिया। नटराज कहलाये। डमरू बजाकर संगीत को पैदा किया। प्रकृति के, पर्यावरण के शिव रक्षक और संवारने वाले हैं। किसान के साथी हैं। बैल शिव ने अपना वाहन बनाकर मान दिया। नन्दी इसका प्रतीक है। पंचभूत को शिव ने पनपाया। क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, वे तत्व हैं जिनमें संतुलन बिगाड़कर आज के लोगों ने प्रदूषण, विकीर्णता और ओजोन परत की हानि कर दी है। यदि सब सच्चे शिवभक्त हो जायें तो फिर पंच तत्वों में सम्यक संतुलन आ जाये।

आज के संदर्भ में शिव, मेरी राय में, समस्त जम्बू द्वीप के एकीकरण के महान शिल्पी है। जब भाषा, मजहब, जाति और भूगोल को कारण बनाकर चन्द भारतीय टुकड़े—टुकड़े करने पर आमादा हों, तो याद कीजिए कैसे सती के शरीर के हिस्सों को स्थापित कर शक्तिपीठों का गठन हुआ तथा समूचा राष्ट्र-राज्य एक सूत्र में पिरोया गया। उधर पूर्वोत्तर में गुवाहाटी की कामाख्या देवी से शुरू करे तो नैमिष में ललितादेवी और उत्तरी हिमालय तक सारा भूभाग जो प्रदेशों और भाषाओं के नाम से अलग पहचान बनाये है, एक ही भारतीय राष्ट्र—राज्य के अंग हैं। भले ही तमिलभाषी आज उत्तरी श्रीलंका के हमराही लिट्टेवालों से हमदर्दी रखें और हिन्दीभाषियों को दूर का मानें, मगर रामेश्वरम में उपस्थित शिवलिंग इन दो सिरों को जोड़ता है। आज के राजनेता दावा करें, दंभ दिखायें, मगर सत्यता यह है कि अयोध्या के राम ने सागरतट पर शिव को स्थापित कर भारत की सीमायें निर्धारित कर दीं। एक बात की चर्चा हो जाय।

Mahashivratri

रेत का शिवलिंग बनाकर राम ने उसमें प्राण प्रतिष्ठान करने हेतु उस युग के महानतम शिवभक्त, लंकापति दशानन रावण को आमंत्रित किया गया। रावण द्विजश्रेष्ठ था मगर पुत्र मेघनाथ ने पिता को मना किया कि वे शत्रु खेमें में न जायें। प्राणहानि की आशंका है। पर रावण ने बताया कि अंतर्राष्ट्रीय कानून और युद्ध नियमों के अनुसार निहत्थे पर वार नहीं किया जाता है। रामेश्वरम का महज धार्मिक महत्व नहीं हैं। कूटनीतिक और मनोवैज्ञानिक भी है। पांच सदियों पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा ''जो रामेश्वर दरसु करिहहिं, ते तनु तजि मम लोक सिधारहि।'' इतना बड़ा आकर्षण है कि गंगाजल को रामेश्वरम में अर्पित करे तो मोक्ष मिलेगा। अतः निर्लोभी और विरक्त हिन्दू भी दक्षिण की यात्रा करना चाहेगा। गोस्वामी जी की एक काव्यमय पंक्ति ने राष्ट्रीय एकीकरण और शैव-वैष्णव सामंजस्य में इतना गजब का कार्य कर डाला जिसे न भारत सरकार और न तो किसी संगठन ने कभी कर पाया।

इसे भी पढ़ें: इस जूते की कीमत जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान, जाने कितनी है इसकी कीमत

भले ही अलगाववादी आज कश्मीर को भारत से काटने की साजिश करे, वे ऐतिहासिक तथ्य को नजरन्दाज नहीं कर सकते। शैवमत कभी हिमालयी वादियों में लोकधर्म होता था। जब शिव यात्रा पर निकले तो नन्दी को पहलगाम में, अपने अर्धचन्द्र को चन्दनवाड़ी में और सर्प को शेषनाग में छोड़ आये। अमरनाथ यात्री इन्हीं तीनों पड़ावों से गुजरते हैं। शिवलिंग से आशय लक्षणों से भी है। शिवालय में जाने—आने की कोई पाबंदी नहीं है जो अन्य मंदिरों में होती है। न छुआछूत, न परहेज और न कोई अवरोध। सब शिवमय है।

श्रद्धालुजन द्वादश ज्योतिर्लिय की पूजा करते हैं। इसमें आजके सार्वभौम लोकतांत्रिक गणराज्य की दृष्टि से सोमनाथ सर्वाधिक गौरतलब है। वह इस्लामी साम्राज्यवादियों के हमले का शिकार रहा था। अंग्रेजों के भाग जाने के बाद पहला कार्य सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया कि भग्नावशेष सोमनाथ का पुनर्निर्माण कराया। तब विवाद चला था कि सेक्युलर भारत में क्या मन्दिर का पुनर्निर्माण कराने में सरकारी मंत्री का योगदान हो? जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि सोमनाथ निर्माणकार्य से सरकारी तंत्र दूर ही रहे। सरदार का जवाब सीधा था। सोमनाथ मंदिर सदैव विदेशी आक्रमण का शिकार रहा। स्वाधीन राष्ट्र की अस्मिता और गौरव का प्रश्न है कि सोमनाथ में शिवलिंग स्थापित हो। तब नेहरुवादी आलोचक खामोश हो गये। आज पुनर्निमित सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग भारत की ऐतिहासिक कीर्ति का प्रतीक है। शिव के मायने भी हैं प्रतीक। इसीलिए सोमनाथ का शिवलिंग सागर की लहरों से धुलकर देदीप्यमान रहता है, भले ही उत्तर में बाबा विश्वनाथ अभी भी मुगल आक्रामकों से बाधित हों।

इसे भी पढ़ें: महाशिवरात्रि पर लोधेश्वर के जलाभिषेक को उमड़े शिवभक्त, कई जिलों से पहुंचे महादेवा

एक चर्चा अक्सर होती है। अन्य देवताओं का जन्मोत्सव मनाया जाता है, मगर शिव का विवाहोत्सव ही पर्व क्यों हो गया? शिव दर्शाना चाहते हैं कि सृजन और निधन शाश्वत नियम हैं। उन्हें कभी भी विस्मृत नहीं करना चाहिए। कृष्ण ने अगहन चुना मगर शिव ने श्रावण को पसंद किया क्योंकि तब तक सारी धरा हरित हो जाती है। सिद्ध कर दिया कि जल ही जीवन है। ऊबड़ खाबड़, सर्वहारा जनों को बटोरकर भोलेनाथ पार्वती को ब्याहने चले थे। समता का संदेश दिया। शुभ कामना का भी उदबोधन है: “शिवस्तु पंथा”, सब कुशल क्षेम रहे।

महाशिवरात्रि पर्व की शुभाकांक्षायें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(यह लेखक के निजी विचार हैं)



\
Newstrack

Newstrack

Next Story