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Mother's Day Special: मां शब्द एक सुखद अनुभूति
Mother's Day Special: मां के बारे में जितना बोलिए , लिखिये या करिए बहुत कम है। यहां तक कहा जाता है कि हम लोग भगवान को नहीं देख सकते । लेकिन जो इस बाहरी दुनिया से हमें अवगत कराता है वो क्या भगवान से कम है?
Mother's Day Special: मां एक ऐसा शब्द हैं जिसमें पूरी दुनिया सिमट कर समा जाती है। हो भी क्यों ना, जब हम मां के पेट में नौ महीने अपने को पूर्ण रूप से बाहर आने के लिए तैयार करते हैं । तो हमारी असली दुनिया वहीं से शुरू जो होती है। मां के बारे में जितना बोलिए , लिखिये या करिए बहुत कम है। यहां तक कहा जाता है कि हम लोग भगवान को नहीं देख सकते । लेकिन जो इस बाहरी दुनिया से हमें अवगत कराता है वो क्या भगवान से कम है?
जी हां, हमारे असली भगवान मां- बाप ही होते हैं। अगर आप प्रतिदिन उनके साथ हैं तो किसी पूजा स्थल में जाने की भी जरूरत नहीं। दरअसल मां का दर्जा भगवान से भी ऊपर का होता है। मां सिर्फ जन्म देने वाली ही नहीं होती बल्कि पालन पोषण करने वाली भी मां कहलाती है। खैर आज के इस आधुनिक युग में मां की कई परिभाषा हो सकते हैं। व्याख्या हो सकती है। मानदंड हो सकते हैं। बनाये जा सकते हैं।
कई बच्चें जन्म लेकर अपने मां का सुख नहीं पा पाते। कारण कई हो सकते हैं, जैसे शहरों में रहने वाली मां घर चलाने के लिए पैसे की आड़ में या अपने करियर की चाह में आया पर नवजात बच्चों को छोड़ कर सारा दिन बाहर रहती हैं। दिन का समय जो बच्चों को अपनी खेल कूद और खाने पीने की दुनिया दिखाता है । उस दौरान रहने वाली वो हर स्त्री जो प्यार से बच्चे का ख्याल रखती है, उनके लिए मां से कम थोड़े ही ना है। इसलिए बच्चे उन्हें आई मां का दर्जा दे देते हैं।
मैंने इसका एहसास तब किया जब मैं मां बनी। मेरी बेटी अपना दिनभर का समय मेरी खासकर उसके देखभाल के लिए रखी गई बाई के साथ बिताती थी। नौकरी के पागलपन में आजकल की महिलाएं जिन्हें बच्चे मां तो बुलाते हैं । लेकिन अपने बच्चों के बचपन का आनंद नहीं ले पाती। मैं अपनी बेटी की पसंदीदा मां समान दोस्त को आज भी तहेदिल से शुक्रिया करती हूं । जिसने उसे मां जैसा देखभाल और प्यार किया । साथ ही अच्छे तौर तरीके सिखाए। आज वो महिला इस दुनिया में नहीं है लेकिन हमारे परिवार में उसकी याद हमेशा रहेगी।
मैंने देखा हमारी मां हम बहनों के देखभाल और आज के इस दुनिया में पुरुषों के मुकाबले में काबिल बनाने में अपने जीवन के आधे पल लगा दिए। उस जमाने में हम अपनी मां के हाथों से बना खाना खाते थे। लेकिन आज के इस आधुनिकता ने मां के बने हाथों का खाना सपना कर दिया है। ज्यादातर माताएं खाना बनाने वाली रखती हैं या बाहर से खाना मंगाती हैं। जो प्यार मां के बने हाथों के खाने का होता है वो दूसरे में वो स्वाद कैसे आए?
मुझे कभी- कभी अफसोस होता है की मुंबई की जिंदगी में मैंने अपने बच्चे के बचपन का आनंद नहीं लिया , हां एक बात का गर्व रहता है कि भले मैं बहुत अच्छी रसोइया नहीं हूं । लेकिन मैंने खुद से ही हमेशा अपने घरवालों को खाना बनाकर खिलाया। और शायद यह गुण मुझे मां बनाने और बने रहने में एक सुखद अनुभव कराता है।
मां वो है जो अपने बच्चों के सुख के लिए सही गलत दोनों का फर्क बताए, बच्चे वैसे आजकल के बहुत समझदार हैं । उन्हें अपनी बात रखने आती है । जरूरत है आप उन्हें खुश रखने के लिए अगर वो रास्ता सही नहीं है तो कोई तरीका समझाएं। उसे कैसे सुधारा जा सकता है न की उनकी भावनाओं के साथ खेल करें।
इस तनाव भरे और मतलबी दुनिया में आज सच्चे दोस्त बहुत कम मिलते हैं। लेकिन अपने बच्चों के लिए मां एक दोस्त बन जाए उससे अच्छा उपहार जिंदगी के लिए क्या हो सकता है। इस बात का मलाल उन लोगों को ज्यादा रहता है जिन्होंने किसी कारण वश अपनी मां को खो दिया है।
मैंने कई ऐसी मांओं को भी देखा है जो छोटी सी उम्र में अपने बच्चों को अपने सुख या अभिमान के कारण छोड़ जाती हैं। उस समय उस बच्चे के लिए एक पिता उसके मां से कहीं अधिक भूमिका निभाता है। लेकिन दिल के किसी कोने में उस बच्चे के अपनी असली मां की याद जरूर रहती है। मेरी उन सभी माताओं से एक प्रार्थना है भले ही आप अपने मां के जैसा नहीं बन सकतीं। लेकिन अपने बच्चे को किसी रूप में खुशी देकर अपने मां बनने के इस ईश्वरीय उपहार पर गर्व करने का अनुभव जरूर करिए।