भारत में विपक्ष की भूमिका

इस बार संसद ने 8 दिन में 25 विधेयक पारित किए। जिस झपाटे से हमारी संसद ने ये कानून बनाए, उससे ऐसा लगने लगा कि यह भारत की नहीं, माओ के चीन या स्तालिन के रुस की संसद है।

Shivani
Published on: 25 Sep 2020 7:10 AM GMT
भारत में विपक्ष की भूमिका
X

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

इस बार संसद ने 8 दिन में 25 विधेयक पारित किए। जिस झपाटे से हमारी संसद ने ये कानून बनाए, उससे ऐसा लगने लगा कि यह भारत की नहीं, माओ के चीन या स्तालिन के रुस की संसद है। न संसदीय समितियों ने उन पर विचार किया और न ही संसद में उन पर संगोपांग बहस हुई।

विपक्ष की सांसद में बहस

बहुत दिनों बाद मैंने टीवी चैनलों पर संसद की ऐसी लचर-पचर कार्रवाई देखी। मुझे याद है 55-60 साल पुराने वे दिन जब संसद में डाॅ. लोहिया, आचार्य कृपालानी, मधु लिमये, नाथपाई और हीरेन मुखर्जी जैसे- लोग सरकार की बोलती बंद कर देते थे। प्रधानमंत्रियों और मंत्रियों के पसीने छुड़ा देते थे। इस बार विपक्ष के कुछ सांसदों को सुनकर उनकी बहस पर मुझे बहुत तरस आया।

ये भी पढ़ेंः वाहनचालकों को राहत: इतना सस्ता हुआ पेट्रोल-डीजल, जान लें नया रेट

सरकार ने तीन विधेयक किसानों और अन्य तीन विधेयक औद्योगिक मजदूरों के बारे में पेश किए थे। इन विधेयकों का सीधा असर देश के 80-90 करोड़ लोगों पर पड़ना है। इन विधेयकों की कमियों को उजागर किया जाता, इनमें संशोधन के कुछ ठोस सुझाव दिए जाते और देश के किसानों व मजदूरों के दुख-दर्दों को संसद में गुंजाया जाता तो विपक्ष की भूमिका सराहनीय और रचनात्मक होती लेकिन राज्यसभा में जैसा हुड़दंग मचा, उसने संसद की गरिमा गिराई।

ये भी पढ़ेंः भारत बंद: इन राज्यों में बिगड़ा माहौल, किसानों की चीखों से गूंज रहे ये क्षेत्र

अब 25 सितंबर को भारत-बंद का नारा दिया गया है। भारत तो वैसे भी बंद पड़ा है। महामारी कुलांचे मार रही है। अब किसानों और मजदूरों को अगर प्रदर्शनों और आंदोलनों में झोंका जाएगा तो वे कोरोना के शिकार हो जाएंगे। उन्हें क्या विपक्षी नेता सम्हालेंगे ?

पक्ष और विपक्ष सभी के नेता तो इतने डरे हुए हैं कि भूखों को अनाज बांटने तक के लिए वे घर से बाहर नहीं निकलते। संसद से वेतन और भत्ते तो सभी ले रहे हैं लेकिन सदन में कितने सदस्य दिखाई पड़ते थे ?

ये भी पढ़ेंः आज होंगे बड़े खुलासेः एनसीबी को मिली रकुल-रिया की चैट, होगी पूछताछ

खैर, ये विधेयक अब कानून बन जाएंगे। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर भी हो जाएंगे। लेकिन सरकार और भाजपा का कर्तव्य है कि वह किसानों और मजदूरों से सीधा संवाद करे, विपक्षी नेताओं से सम्मानपूर्वक बात करे और विशेषज्ञों से पूछे कि किसान और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए वह और क्या-क्या प्रावधान करे ?

ये भी पढ़ेंः मोदी सरकार के खिलाफ किसान: 6 सालों में इतनी बार किया विरोध, आए थे सड़कों पर

भाजपा सरकार को जो अच्छा लगता है, वह उसे धड़ल्ले से कर डालती है। उसके पीछे उसका सदाशय ही होता है लेकिन विपक्ष से मुझे यह कहना है कि वह इन कानूनों को साल-छह महिने तक लागू तो होने दे। फिर देखें कि यदि ये ठीक नहीं है तो इन्हें बदलने या सुधारने के लिए पूरा देश उनका साथ देगा। कोई भी सरकार कितनी ही मजबूत हो, वह देश के 80-90 करोड़ लोगों को नाराज़ करने का खतरा मोल नहीं ले सकती।

दोस्तों देश दुनिया की और खबरों को तेजी से जानने के लिए बनें रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलों करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Shivani

Shivani

Next Story