×

दो खास मुसलमानों को पद्मश्री

हर 26 जनवरी पर भारत सरकार पद्मश्री आदि पुरस्कार बांटती है। इन पुरस्कारों के लिए कई लोग दौड़-धूप करते हैं। नेताओं, अफसरों और पत्रकारों से सिफारिश करवाते हैं।

Roshni Khan
Published on: 28 Jan 2020 7:22 AM GMT
दो खास मुसलमानों को पद्मश्री
X

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

हर 26 जनवरी पर भारत सरकार पद्मश्री आदि पुरस्कार बांटती है। इन पुरस्कारों के लिए कई लोग दौड़-धूप करते हैं। नेताओं, अफसरों और पत्रकारों से सिफारिश करवाते हैं। उन्हें लालच भी देते हैं। लेकिन कई लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें ये पुरस्कार देने पर सरकार खुद तुली रहती है। वे इन पुरस्कारों के लिए किसी के आगे अपनी नाक नहीं रगड़ते। जब उन्हें बताया जाता है तो ज्यादातर लोग इन पुरस्कारों को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं और अपने आप को भाग्यशाली समझते हैं लेकिन देश में ऐसे लोग भी हैं, जो इस तरह के पुरस्कारों को लेने से मना कर देते हैं।

ये भी पढ़ें:मुलायम का ये राज: ऐसी थी इनकी प्रेम कहानी, बहुत कठिन था राजनितिक सफ़र

उनका तर्क यह भी होता है कि मैं तो पुरस्कार के योग्य हूं लेकिन पुरस्कार देनेवाले की योग्यता क्या है ? ऐसे पुरस्कारों की प्रामाणिकता या प्रतिष्ठा क्या है ? खैर, इस बार दो खास मुसलमानों-अदनान सामी और रमजान खान को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा हुई। यों तो आजकल लोग इन सरकारी पुरस्कारों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते लेकिन इन दोनों पुरस्कारों पर मेरा ध्यान भी गया। अदनान सामी अच्छे गायक हैं लेकिन उन्होंने इस पुरस्कार के लिए अपने आप को कतार में खड़ा किया होगा, इसमें मुझे शक है। यह उन्हें जान-बूझकर दिया गया होगा ? क्यों दिया गया होगा ? शायद सरकार ऐसा प्रभाव पैदा करना चाहती हैं कि वह मुसलमान-विरोधी नहीं है। यह बात रमजान खान के बारे में भी लागू होती है।

ये भी पढ़ें:CAA-NRC का असर: गुपचुप तरीके से भाग रहे घुसपैठिए, लापता हुए 5 हजार बांग्लादेशी

उसने नए नागरिकता कानून के बहाने घर बैठे जो मुसीबत मोल ले ली है, इससे शायद उसे राहत मिलने की उम्मीद रही होगी। सामी, जिनके पिता पाकिस्तानी हैं, उन्हें भारत की नागरिकता भी दी गई है। रमजान खान का मामला तो और भी मजेदार हैं। वे अपने भरण-पोषण के लिए राजस्थान के मंदिरों और हिंदू कार्यक्रमों में भजन गाते हैं। गोसेवा भी करते हैं। ऐसे व्यक्ति को बिना मांगे पद्मश्री देकर यह हिंदूवादी सरकार अपनी उदारवादी छवि भी बना रही है लेकिन इससे लोग पूछेंगे कि रमजान खान के बेटे फिरोज खान को अपनी नौकरी क्यों छोड़नी पड़ी ? उसे बनारस हिंदू युनिवर्सिटी में संस्कृत क्यों नहीं पढ़ाने दी गई ? तब इस सरकार ने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया ? वैचारिक दिग्भ्रम बने रहने के कारण ऐसे सही और गलत काम एक साथ होते रहते हैं।

Roshni Khan

Roshni Khan

Next Story